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शुक्रवार, 24 मई 2024

4136....झंझावातों के इस प्रलयकाल में

शुक्रवारीय अंक में
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन।
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सत्य कड़ुवा होता है ऐसा ही सुनती और समझती आयी हूँ। 
सत्य की  सदा जीत होती है।
बदलते  दौर में सच में झूठ की ऐसी मिलावट पायी जा 
रही है कि मालूम होता है सत्य को काठ मार गया है।
किसी भी सत्य को नमक मिर्च मसाला लगाकर मनमुताबिक 
परोसता, आज मीडिया की भूमिका  उस सेल्समैन की भाँति है 
जो जनमानस को लुभावने और प्रचलित उत्पाद सनसनी 
बनाकर परोसता है। 
हाँ मानती हूँ चंद मुट्ठीभर ईमानदार हैंं
पर उनका भी वही हश्र है जो हर क्षेत्र में ईमानदारी का है।
किन चेहरों में मुखौटे हैं किन मुखौटों में चेहरे हैं
सवाल तो अनगिनत है ज़ेहन में आकर ठहरे है
ग़म इसका नहीं आवाम की चीख सुनाई नहीं देती
दर्द इस बात का है अब सिसकियों पे भी पहरे हैं
-श्वेता

आज की रचनाएँ
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झंझावातों के इस प्रलयकाल में
सर्द-सत्वर झकोरे तिरस्कृत हुए;
मेदिनी अनमनी सी धरा पर पड़ी
कृष्ण-मेघों के उत्पल पुरस्कृत हुए।
#रात गणिका बनी, भृत्य बन चंद्रमा
इन कुंतल-कथाओं में किंकर बने;
पीड़ितों की व्यथा मंद करने सबब
गेसुओं के भ्रमर नेक सहचर बने।।




शहर के इस तंग मुहल्ले में
एक ही पेड़ था
जो ठीक मेरी खिड़की के नीचे खिलता था

उन्हें छू कर
अपने उखड़ने का दुख भूल जाती थी
यह वृक्ष नहीं, एक सेतु था






छाँव भी डरकर कोने बैठी,
रश्मि तपिश दे तनकर ऐंठी ।

बदरा जाने कहाँ खो गये,
पर्णहीन सब वृक्ष हो गये ।

माँ धरती भी दुःखी रो रही,
दया आपकी कहाँ खो गयी ?




वही रूप वो ही समरूपक सर्वविदित वो 
सर्वाग्रह सर्वव्याप्त जगत मन में जागृत जो
जगा रहा वह जग को प्रतिपल स्वयं जागकर
मार्ग बनाता जाता है क्षण-क्षण प्रमुदित वो
किरन काटती अवरोधन को बिना कटार
गौण हो चुके रस्तों पर एक दीप जला वो॥



एक कउआ उड़ता हुआ चोंच में एक तिनका दबाए हुए आया और बैठ गया हिरण की पीठ पर। उछलते-उछलते गरदन पर चढ़ गया और कान में तिनका घुसेड़ने लगा। हिरण घबड़ा कर दौड़ा और कउआ उड़ चला!

एक नीम के खोते में बैठा था उल्लूओं का जोड़ा, मैं जैसे-जैसे पास जाता, उनकी ऑंखें चौड़ी होती जाती! मैने सोचा, उजाले में उल्लू कहाँ देख पाते हैं और पास चलते हैं। पास जा कर फोटू खींचने लगा तो फुर्र से उड़ गए!!! 


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आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में ।
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4 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर रचनाएं
    पठनीय व संग्रहनीय
    आभार
    सादर वंदन

    जवाब देंहटाएं
  2. सुन्दर रचनाएं

    जवाब देंहटाएं
  3. बदलते दौर में सच में झूठ की ऐसी मिलावट पायी जा रही है कि मालूम होता है सत्य को काठ मार गया है।
    सार्थक भूमिका के साथ लाजवाब प्रस्तुति
    सभी रचनाएं उम्दा एवं पठनीय ।
    मेरी रचना को यहाँ स्थान देने हेतु तहेदिल से धन्यवाद एवं सस्नेह आभार प्रिय श्वेता !

    जवाब देंहटाएं

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