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गुरुवार, 23 मई 2024

4135...रह गए दिवस गिनने को!

शीर्षक पंक्ति: आदरणीया मीना शर्मा जी की रचना से। 

सादर अभिवादन।

गुरुवारीय  अंक में पढ़िए चुनिंदा पाँच रचनाएँ-

बीते बरबस, बरस संग के

ना जाने क्यूँ बात-बात पर

भर आती हैं आँखें,

यादों के पंछी इस आँगन

गिरा गए फिर पांखें!

उतरेंगे वे बाग तुम्हारे

कल दाने चुगने को।

बीते बरबस, बरस संग के

रह गए दिवस गिनने को!

*****

भूल हमसे हो गयी

खोलते जो आँख दिख जातीं कई दुश्वारियाँ

बंद आँखों देखने की भूल हमसे हो गई!

रौंद डाला हर कली को नोंच कर जिस शख्स ने

बागबाँ उसको ही समझे भूल हमसे हो गयी!

*****

निष्ठा का संबल

ना भीतर, ना बाहर,काल उपस्थित था,
मर्यादा लांघी जिसकी, वह ड्योढ़ी थी
ना दिन था, ना रात, वह संधिकाल था।
अस्त्र ना शस्त्र, नख पर मृत्यु लिखी थी।

*****

राजा

अनंत ब्रह्मांड में छोड़ दिये गये हैं

जिसके द्वारा हम

दिशाहीन से, उसके लिये

हित अपना साधना है

जहाँ लगता है

पूरी आज़ादी है

लेकिन एक सीमा में

*****

मैं जीवन हूँ

न मैं सुख हूँ न दुख 

न राग न द्वेष 

मैं जीवन हूँ 

बहता पानी 

*****

फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव 

 


3 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर चयन
    आभार
    सादर वंदन

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभात ! बुद्ध पूर्णिमा की सभी को शुभकामनाएँ ! सराहनीय रचनाओं का सुंदर संयोजन, आभार !

    जवाब देंहटाएं
  3. सुंदर सार्थक रचनाओं का चयन। बुद्ध पूर्णिमा की हार्दिक बधाई💐👏

    जवाब देंहटाएं

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