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सोमवार, 19 फ़रवरी 2024

4041 ...देखो! धरा ने ओढ़ ली वासंती चुनर

 सादर अभिवादन

अयोग्यता एक ही है 
और वह है स्वयं के प्रति 
अविश्वास, 
यदि आप अपना समय-समय पर  
उचित मूल्यांकन कर 
उससे प्राप्त निष्कर्षों पर 
काम करते हैं तो 
कोई भी बाधा 
आपको सफल होने से 
नहीं रोक सकती।

आज की रचनाएँ




सब कुछ तो है क्या ढूँढती रहती हैं निगाहें
क्या बात है, मैं वक्त पे घर क्यूँ नहीं जाता..

वो एक ही चेहरा तो नहीं सारे जहाँ में
जो दूर है वो दिल से उतर क्यूँ नहीं जाता..




आज मेरे मन में
सैकड़ों दीप जगमगाये है
दिवाली बेमौसम आज
मेरे घर आयी है।





और रोज़ मुझ ही से लड़ते हैं
कुछ बिल्कुल मुझ से लगते हैं
और कुछ मुझसे अलग
जिनको मैं पहचान ही नही पाती




किसी अक्षर के जरिए नहीं बताया जा सकता
क्या था वह जो  घटित हुआ था हमारे मध्य
जो आज भी आता रहता है याद अक्सर।




कृष्ण की मधुर बांसुरिया सुनकर
प्रीत की पावन रीत निभाने
राधे रानी चली आई यमुना तट पर
देखो! धरा ने ओढ़ ली वासंती चुनर।



कल सखी आएगी
सादर

2 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात ! सुंदर भूमिका के साथ अभिनव प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  2. सुंदर रचनाओं का संकलन।
    इसमें मेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार।

    जवाब देंहटाएं

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