---

बुधवार, 31 जनवरी 2024

4022..मील के पत्थर..

 ।। भोर वंदन ।।


"निर्धन जनता का शोषण है

कह कर आप हँसे

लोकतंत्र का अंतिम क्षण है

कह कर आप हँसे 

सबके सब हैं भ्रष्टाचारी 

कह कर आप हँसे 

चारों ओर बड़ी लाचारी 

कह कर आप हँसे 

कितने आप सुरक्षित होंगे 

मैं सोचने लगा 

सहसा मुझे अकेला पा कर 

फिर से आप हँसे "

रघुवीर सहाय

सहज भाव से सामाजिक जीवन की संपूर्णता को इंगित करतीं पंक्तियों के साथ चलिये अब नज़र डालें चुनिंदा लिंकों पर..

न बिकती हर चीज



लज्जा का आभूषण

करुणा के बीज

कौशल्या सी नारी.

🟡


जल 

हम छोटे-छोटे पोखर हैं 

धीरे-धीरे सूख जाएगा जल 

भयभीत हैं यह सोचकर 

सागर दूर है 


🟡

मैं इश्क़ लिखता हूँ, तो तेरी याद आती है...



मैं इन दिनों

सादे खत लिखता हूँ,

शब्द जैसे इस रूखी धूप में

सूख से जाते हैं...

🟡

रिक्त स्थान - -



क्रूसबिद्ध भावनाओं का पुनर्जन्म सम्भव नहीं,

एक दीर्घ प्रतीक्षा के बाद निशि पुष्प झर

जाते हैं, मील के पत्थर अपनी

जगह ख़ामोश खड़े रहते

हैं लोग अनदेखे से..

।।इति शम। ।

धन्यवाद 

पम्मी सिंह 'तृप्ति'...✍️


मंगलवार, 30 जनवरी 2024

4021....चलो फिर बापू को याद कर लें

 मंगलवारीय अंक में
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
-------

आज महात्मा गाँधी जी की

पुण्यतिथि है।

वैचारिक मतभेदों को

किनारे रखकर,

फालतू के तर्क-वितर्क में

पड़े बिना

आइये सच्चे मन से कुछ

श्रद्धा सुमन अर्पित करें।



------


दुख से दूर पहुँचकर गाँधी।

सुख से मौन खड़े हो

मरते-खपते इंसानों के

इस भारत में तुम्हीं बड़े हो


- केदारनाथ अग्रवाल 


एक दिन इतिहास पूछेगा

कि तुमने जन्म गाँधी को दिया था,

जिस समय अधिकार, शोषण, स्वार्थ

हो निर्लज्ज, हो नि:शंक, हो निर्द्वन्द्व

सद्य: जगे, संभले राष्ट्र में घुन-से लगे

जर्जर उसे करते रहे थे,

तुम कहाँ थे? और तुमने क्या किया था?


- हरिवंशराय बच्चन


गाँधी तूफ़ान के पिता

और बाजों के भी बाज थे ।

क्योंकि वे नीरवताकी आवाज थे।


-रामधारी सिंह "दिनकर"


तुम मांस-हीन, तुम रक्तहीन,

हे अस्थि-शेष! तुम अस्थिहीन,

तुम शुद्ध-बुद्ध आत्मा केवल,

हे चिर पुराण, हे चिर नवीन!

तुम पूर्ण इकाई जीवन की,

जिसमें असार भव-शून्य लीन;

आधार अमर, होगी जिस पर

भावी की संस्कृति समासीन!


- सुमित्रानंदन पंत


युग बढ़ा तुम्हारी हँसी देख

युग हटा तुम्हारी भृकुटि देख,

तुम अचल मेखला बन भू की

खींचते काल पर अमिट रेख


-सोहनलाल द्विवेदी

 

कुछ रचनाएँ आपकी लेखनी से-

प्यादे
नये 
जमाने की हवा खाये खिलखिलाये होते हैं
समझदारी से अपनी टाँगों का बीमा भी कराये होते हैं
टाँग अढ़ाने वाले को मुँह बिल्कुल नहीं लगाते हैं
पूरा फसाने वाले पर दिलो जान से कुर्बान बातों बातों में हो जाते हैं
मौज में आते हैं
तो कम्बल 
डाल कर फोटो भी खिंचवाने में जरा भी नहींं शर्माते हैं


'हे राम'की करुण कराह,
में राम-राज्य चीत्कारे।
बजरंगी के जंगी बेटे,
अपना घर ही जारे।
और अल्लाह की बात,
न पूछ,दर दर फिरे मारे।
बलवाई कसाई क़ाफ़िर,
मस्ज़िद में डेरा डारे।


बापू तेरे सपनों वाली...

राजा जितना गूंगा -बहरा 
उतने ही हरकारे हैं ,
बंजर धरती ,कर्ज किसानी 
हम कितने बेचारे हैं ,
रामराज के सपनों वाली 
वह शहजादी कहाँ गयी |




समय की कीमत को पहचानें, स्वच्छता से प्रेम बहुत था
मेजबानी में थे पारंगत, अनुशासन जीवन में था !

पशुओं से भी प्रेम अति था, कथा-कहानी कहते सुनते
मितव्ययता हर क्षेत्र में, उत्तरदायित्व सदा निभाते !

मैत्री भाव बड़ा गहरा था, पक्के वैरागी भी बापू
थी आस्था एक अडिग भी, बा को बहुत मानते बापू !




कहाँ पड़ा है वो खद्दर का चोला 
जाने कहाँ रख दी है वो उजली टोपी
सत्य के प्रयोग रखें हैं धूल  में दबे 
चलो पुरानी  अल्मारी  साफ़ कर लें
चलो आज आँखे कुछ नम कर लें 
चलो फिर बापू को याद कर लें 


बापू,

तुम्हारे तीनों बन्दर 

सही सलामत हैं,

न बुरा देखते हैं,

न बुरा बोलते हैं,

न बुरा सुनते हैं, 

पर समझ में नहीं आता 

कि तुमसे अलग होकर

वे इतने ख़ुश क्यों हैं? 


------
आज के लिए बस इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में।
-------

सोमवार, 29 जनवरी 2024

4020 ..हर साल 29 जनवरी को बीटिंग द रिट्रीट (Beating The Retreat) समारोह होता है

 सादर अभिवादन

हर साल 29 जनवरी को बीटिंग द रिट्रीट (Beating The Retreat) समारोह होता है. यह समारोह विजय चौक पर आयोजित होगा. इसी को साथ गणतंत्र दिवस समारोह का औपचारिक समापन किया जाता है. इस कार्यक्रम में थल सेना, वायुसेना और नौसेना का बैंड ट्रेडिशनल बीट के साथ मार्च करते हैं और राष्ट्रपति को नेशनल सैल्यूट दिया जाता है. इस बार कैसे होगी सेरेमनी ...

बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी का आयोजन, रिहर्सल देखने पहुंचे लोगों में दिखा उत्साह


 अब देखिए कुछ रचनाएं ...




हर  कोई  अचम्भा  कर रहा,
अति भीड़ जुटी बाहर महल।
विप्र  छानी  जगह रातों रात,
कैसे  बना  यह  भव्य  महल।।

नाथ मुरलीधर  की रही कृपा,
जो रातों रात  बन गया महल।
नाथ हमने कुछ भी माँगा नहीं,
अब  तो  पधारो  अपने महल।।




वह पहाड़ियों की ढलान से
भेड़ें हाँककर आता है
और वह उसे पश्मीना ओढ़ा देती है
वह खाली गिलास की ओर देखता है
वह पानी लिए हाजिर होती है
वह पाँवों की उँगलियों को भीतर की ओर मोड़ता है




मुख पर है तेज़ , होंठ हैं मुस्कुराते
ऐसे मेरे राम लला,अवध में विराजे !!




महफिल में दीपक सोच रहा अकेला
है वह  कितना अकेला सहभागियों के बिना
पहले वह  सोचता था उसे किसी की जरूरत नहीं
तभी चला आया अकेले महफिल में |
यहाँ देखा वह ही  अकेला था
कोई न था उसका साथ देने के लिए
कीट पतंगेपूँछ रहे थे कहां गए तुम्हारे सहचर



फिर किसी से शिकायत क्या ?
सब कुछ पड़ेगा स्वयं ही करना ।
झाड़ना-बुहारना,सुधारना,बदलना,
अपने ही तंत्र को दुरुस्त करना ।
दुरुस्त रखना ..गणतंत्र




जब एक
'उलूक' तक
अपने कोटर में

तिरंगा लपेटे
“जय हिंद”
बड़बड़ाते हुऐ

गणतंत्र
दिवस के
स्वागत में
सोता सोता
सा रह गया था ।

आज बस
कल सखी आएगी
सादर

रविवार, 28 जनवरी 2024

4019...चालीस वर्षों के बाद पहली बार महामहिम शाही बग्घी में

 सादर अभिवादन



********
महीना माघ का शुरू पावन पवित्र महीना
प्रेम का महीना इसे ही वसंत कहते हैं
बसंत उत्तर भारत तथा समीपवर्ती देशों की छह ऋतुओं में से एक ऋतु है, जो फरवरी मार्च और 
अप्रैल के मध्य इस क्षेत्र में अपना सौंदर्य बिखेरती है। ऐसा माना गया है कि माघ महीने की 
शुक्ल पंचमी से बसंत ऋतु का आरंभ होता है। फाल्गुन और चैत्र मास वसंत ऋतु के माने गए हैं। 
फाल्गुन वर्ष का अंतिम मास है और चैत्र पहला। इसी माह में
सात दिनों का प्रेम पर्व भी मनाया जाता है


बसंत इस बार तुम और भी बौराना,
अपने सारे बाण चलाना।
तुम आओगे तो इस बार,
केसर बिखरेगा आसमान तक।
सेवंती और भी इतरा जाएगी,
गुलाब थोड़े और गर्वीले हो जाएंगे।
तुम्हारी आहट पाकर,
नन्हीं सी कोपलें झट से निकल आएंगी बाहर।

कुछ रचनाएं




हमने भी तो केवल
इतना कम ही जाना और सीखा।
बंधनों और व्यर्थ नियमों में जीना,
निरर्थक बातें सुनना,
अकारण सिर हिलाना,
समर्थन दर्ज करवाना,
बंद मस्तिष्क के साथ,
सवाल पूछने से पहले ही,
किसी के वक्तव्य पर
सहमत हो जाना,




अभिव्यक्ति का हनन
या
संस्कारों का भार
एक तीव्र पीड़ा
काश की बागडोर
साथ कुछ भी
नहीं सिवाय मौन के





तन्विक नामक आदमी ने एक भूत पकड़ लिया और उसे बेचने शहर गया , संयोगवश उसकी मुलाकात सेठ रघुवीर से हुई, सेठ ने उससे पूछा - भाई यह क्या है?

उसने जवाब दिया कि यह एक भूत है। इसमें अपार बल है कितना भी कठिन कार्य क्यों न हो यह एक पल में निपटा देता है। यह कई वर्षों का काम मिनटों में कर सकता है

सेठ रघुवीर भूत की प्रशंसा सुन कर ललचा गया और उसकी कीमत पूछी.......,

उस तन्विक ने कहा कीमत बस पाँच सौ रुपए है ,





कितने रत्न पहनूं
कितने चिन्ह सजाऊं
चौखट पर
जो तुम आओ ।।

कहो तो, मंत्र जपूं
और तीर्थ कर आऊं
नंगे पांव जो तुम आओ।।




सुनो तो !
जूड़े में जीवन नहीं
प्रतीक्षा बाँधी है
महीने नहीं! क्षण गिने हैं
मछलियाँ साक्षी हैं
चाँद! आत्मा में उतरा
मरु में समंदर!
यों हीं नहीं मचलता है।
******
एक अप्रकाशित रचना
रूपा सिंह द्वारा रचित
पूरी रचना यहीं पढ़े ,
ये रचना ब्लॉग पर नहीं है

हाथ थाम कर भी तेरा सहारा न मिला.....


हाथ थाम कर भी तेरा सहारा न मिला
मैं वो लहर हूँ जिसे किनारा न मिला

मिल गया मुझे जो कुछ भी चाहा मैंने
मिला नहीं तो सिर्फ साथ तुम्हारा न मिला

वैसे तो सितारों से भरा हुआ है आसमान मिला
मगर जो हम ढूंढ़ रहे थे वो सितारा न मिला

कुछ इस तरह से बदली पहर ज़िन्दगी की हमारी
फिर जिसको भी पुकारा वो दोबारा न मिला

एहसास तो हुआ उसे मगर देर बहुत हो गयी
उसने जब ढूँढा तो निशान भी हमारा न मिला
- रूपा सिंह

आज बस
कल फिर कुछ
सादर



शनिवार, 27 जनवरी 2024

4018 ..उनका नाम है - सुनयना, किन्तु अधिकतर लोग उनका नाम नहीं जानते

 सादर अभिवादन

कल गणतंत्र दिवस बीत गया
बस वीटिंग द रिट्रीट तक धुआ दिखेगा
फिर बस फरवरी चालू
कुछ रचनाएं



राम विराजे अवधपुरी, मची देश में धूम ।
राम राम जपते सभी, नाच रहे हैं झूम ।

नाच रहे हैं झूम, लगी गणतंत्र में झाँकी ।
राम हि बस देखें सुने, भक्ति राम की आँकी ।





यूं सफ़र-ए-हयात का अंजाम लिख दिया
हर ख़ुशी हर ग़म पे तेरा नाम लिख दिया

ख़ुद को ख़त लिखते रहे तेरे नाम के
आख़िरी अलविदा भी कल शाम लिख दिया




सबसे खतरनाक होता है
मुर्दा शांति से भर जाना
तड़प का न होना
सब कुछ सहन कर जाना
घर से निकलकर काम पर
और काम से लौटकर घर आना




इन दिनों भगवान श्री राम की लहर देश भर में चल रही है | सभी राममय हैं | मेरे मन में यूँ ही विचार कौंधा कि 
माता सीता की माता कौन हैं ये कौन कौन जानता होगा बिना गूगल किये | जनक दुलारी को सब जानते हैं 
किन्तु जननि को बहुत कम लोग | उनका नाम है - सुनयना, किन्तु अधिकतर लोग उनका नाम नहीं जानते



आज बस
कल फिर कुछ
सादर

शुक्रवार, 26 जनवरी 2024

4017....जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ....

शुक्रवारीय अंक में
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन।

---–--
आप सभी को गणतंत्र दिवस की
 हार्दिक शुभकामनाएँ।

राष्ट्र बलिदानों का कर्ज़दार है 
करबद्ध नत हिय श्रद्धाहार है।
प्रथम नमन है वीर सपूतों को
जो मातृभूमि के खरे श्रृंगार हैं।


विविधतापूर्ण संस्कृति से समृद्ध हमारे देश में अनेक त्योहार मनाये जाते हैं। बहुरंगी छवि वाले हमारे देश के राष्ट्रीय त्योहार ही हैं, जो जनमानस की एकता का संदेश प्रसारित करते हैं। भारत ने वर्षों संघर्ष करने के बाद आजादी हासिल की। २६जनवरी को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन हमारा संविधान १९५० में लागू हुआ। यह  वो लिखित दस्तावेज़ है जिसमें हर एक आम और ख़ास के अधिकार और कर्तव्य अंकित है। 

 

"गणतंत्र का मतलब एक ऐसी प्रणाली जो आम जन के सहयोग से विकसित हो।"


"गणतंत्र यानि एक ऐसा शासन जिसमें  निरंकुशता का अंत करके आम जनमानस के सहमति और सहयोग से जनता के सर्वांगीण विकास के लिए शासन स्थापित किया गया।"

"गणतंत्र मतलब हमारा संविधान,हमारी सरकार हमारे अधिकार और हमारे कर्तव्य"


हमारा संविधान हमें यह याद दिलाता है कि हम सभी एक समान और एक ही देश के नागरिक हैं। हमें अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए अगली पीढ़ियों के लिए एक बेहतर भविष्य बनाना है।

राष्ट्र निर्माण की समसामयिक चुनौतियों की चर्चा करने का उपयुक्त  मौक़ा तो  गणतंत्र दिवस ही है .

हम देश के नागरिकों को मिला, क्या मिल रहा, क्या खोया क्या पाया,

यह विश्लेषण और आलोचनात्मक बहस

 कभी नहीं समाप्त होना चाहिए,

नाउम्मीदी और असंतोष से उपजा संघर्ष

नयी संभावनाओं की राह बनाते है;

पर आज का पावन दिन

स्वतंत्र भारत के संविधान के द्वारा

 हम नागरिकों को प्राप्त अपने 

अधिकारों एवं कर्तव्यों की

खुशियों को महसूसने का है।


हम एक लंबा सफर तय कर चुके हैं, और आज भारत एक मजबूत और विविध अर्थव्यवस्था, एक समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और एक जीवंत नागरिक समाज के साथ एक संपन्न लोकतंत्र के रूप में खड़ा है। तो चलिए हम सभी जाति ,धर्म , सम्प्रदाय और भाषाई विभाजन से ऊपर उठकर नागरिक बोध को क्रियाशील करें ताकि हम अपने देश अपने समाज के उन्नति में, नवनिर्माण में अपना योगदान दे सकें।


"जननी जन्मभूमिश्च स्वार्गादपि गरीयसी।"


आइये देशभक्ति के रंग में रची आज की रचनाएँ पढ़े-



महापुरूषों के स्वेद से,
मकरन्द यह निकला है।
योद्धाओं के सोणित से, 
हमें लोकतंत्र मिला है।।

चित से उन महामानवों के,
बलिदान का गुणगान करें।
लोकतंत्र के महाग्रंथ का,
अन्तःकरण से सम्मान करें।।

आ लौटकर कभी तो...



साया न साय-दार दरख़्तों के क़ाफ़िले
आ फिर उसी पलाश के दहके चमन में आ
 
भेजा है माहताब ने इक अब्र सुरमई
लहरा के आसमानी दुपट्टा गगन में आ


आँख मिलाता सूरज से 
यह आँधी से टकराता ,
युद्ध काल में प्रलय
शांति में सबकी जान बचाता,
अनगिन वीर,शहीदों का यह
स्वप्न और बलिदान है ।



देखो ये उन्मुक्त मन,
आकर खड़ा हो सरहदों पे जैसे,
लेकिन कल्पना के चादर,
आरपार सरहदों के फैलाए तो कैसे,
रोक रही हैं राहें
ये बेमेल सी विचारधाराएं,
भावप्रवणता हैं विवश,
खाने को सरहदों की ठोकरें,
देखी हैं फिर मैने विवशताएँ,
आर-पार सरहदों के,
न जाने क्यूँ उठने लगा है,
अंजाना दर्द कोई
इस सीने में..!



काजल है
धुलाई है
निरमा है
सफेद है
जल है
सफाई है

दावेदारी है
दावेदार हैं
कई हैं
प्रबल हैं



-----///----

आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में
------

वंदे मातरम्!!!