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रविवार, 28 जनवरी 2024

4019...चालीस वर्षों के बाद पहली बार महामहिम शाही बग्घी में

 सादर अभिवादन



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महीना माघ का शुरू पावन पवित्र महीना
प्रेम का महीना इसे ही वसंत कहते हैं
बसंत उत्तर भारत तथा समीपवर्ती देशों की छह ऋतुओं में से एक ऋतु है, जो फरवरी मार्च और 
अप्रैल के मध्य इस क्षेत्र में अपना सौंदर्य बिखेरती है। ऐसा माना गया है कि माघ महीने की 
शुक्ल पंचमी से बसंत ऋतु का आरंभ होता है। फाल्गुन और चैत्र मास वसंत ऋतु के माने गए हैं। 
फाल्गुन वर्ष का अंतिम मास है और चैत्र पहला। इसी माह में
सात दिनों का प्रेम पर्व भी मनाया जाता है


बसंत इस बार तुम और भी बौराना,
अपने सारे बाण चलाना।
तुम आओगे तो इस बार,
केसर बिखरेगा आसमान तक।
सेवंती और भी इतरा जाएगी,
गुलाब थोड़े और गर्वीले हो जाएंगे।
तुम्हारी आहट पाकर,
नन्हीं सी कोपलें झट से निकल आएंगी बाहर।

कुछ रचनाएं




हमने भी तो केवल
इतना कम ही जाना और सीखा।
बंधनों और व्यर्थ नियमों में जीना,
निरर्थक बातें सुनना,
अकारण सिर हिलाना,
समर्थन दर्ज करवाना,
बंद मस्तिष्क के साथ,
सवाल पूछने से पहले ही,
किसी के वक्तव्य पर
सहमत हो जाना,




अभिव्यक्ति का हनन
या
संस्कारों का भार
एक तीव्र पीड़ा
काश की बागडोर
साथ कुछ भी
नहीं सिवाय मौन के





तन्विक नामक आदमी ने एक भूत पकड़ लिया और उसे बेचने शहर गया , संयोगवश उसकी मुलाकात सेठ रघुवीर से हुई, सेठ ने उससे पूछा - भाई यह क्या है?

उसने जवाब दिया कि यह एक भूत है। इसमें अपार बल है कितना भी कठिन कार्य क्यों न हो यह एक पल में निपटा देता है। यह कई वर्षों का काम मिनटों में कर सकता है

सेठ रघुवीर भूत की प्रशंसा सुन कर ललचा गया और उसकी कीमत पूछी.......,

उस तन्विक ने कहा कीमत बस पाँच सौ रुपए है ,





कितने रत्न पहनूं
कितने चिन्ह सजाऊं
चौखट पर
जो तुम आओ ।।

कहो तो, मंत्र जपूं
और तीर्थ कर आऊं
नंगे पांव जो तुम आओ।।




सुनो तो !
जूड़े में जीवन नहीं
प्रतीक्षा बाँधी है
महीने नहीं! क्षण गिने हैं
मछलियाँ साक्षी हैं
चाँद! आत्मा में उतरा
मरु में समंदर!
यों हीं नहीं मचलता है।
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एक अप्रकाशित रचना
रूपा सिंह द्वारा रचित
पूरी रचना यहीं पढ़े ,
ये रचना ब्लॉग पर नहीं है

हाथ थाम कर भी तेरा सहारा न मिला.....


हाथ थाम कर भी तेरा सहारा न मिला
मैं वो लहर हूँ जिसे किनारा न मिला

मिल गया मुझे जो कुछ भी चाहा मैंने
मिला नहीं तो सिर्फ साथ तुम्हारा न मिला

वैसे तो सितारों से भरा हुआ है आसमान मिला
मगर जो हम ढूंढ़ रहे थे वो सितारा न मिला

कुछ इस तरह से बदली पहर ज़िन्दगी की हमारी
फिर जिसको भी पुकारा वो दोबारा न मिला

एहसास तो हुआ उसे मगर देर बहुत हो गयी
उसने जब ढूँढा तो निशान भी हमारा न मिला
- रूपा सिंह

आज बस
कल फिर कुछ
सादर



4 टिप्‍पणियां:

  1. शानदार लिंकों की सुंदर प्रस्तुति।
    इसमें मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुंदर सराहनीय संकलन आदरणीया दीदी।
    मुझे स्थान देने हेतु हार्दिक आभार।
    सादर नमस्कार।

    जवाब देंहटाएं

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