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बुधवार, 31 जनवरी 2024

4022..मील के पत्थर..

 ।। भोर वंदन ।।


"निर्धन जनता का शोषण है

कह कर आप हँसे

लोकतंत्र का अंतिम क्षण है

कह कर आप हँसे 

सबके सब हैं भ्रष्टाचारी 

कह कर आप हँसे 

चारों ओर बड़ी लाचारी 

कह कर आप हँसे 

कितने आप सुरक्षित होंगे 

मैं सोचने लगा 

सहसा मुझे अकेला पा कर 

फिर से आप हँसे "

रघुवीर सहाय

सहज भाव से सामाजिक जीवन की संपूर्णता को इंगित करतीं पंक्तियों के साथ चलिये अब नज़र डालें चुनिंदा लिंकों पर..

न बिकती हर चीज



लज्जा का आभूषण

करुणा के बीज

कौशल्या सी नारी.

🟡


जल 

हम छोटे-छोटे पोखर हैं 

धीरे-धीरे सूख जाएगा जल 

भयभीत हैं यह सोचकर 

सागर दूर है 


🟡

मैं इश्क़ लिखता हूँ, तो तेरी याद आती है...



मैं इन दिनों

सादे खत लिखता हूँ,

शब्द जैसे इस रूखी धूप में

सूख से जाते हैं...

🟡

रिक्त स्थान - -



क्रूसबिद्ध भावनाओं का पुनर्जन्म सम्भव नहीं,

एक दीर्घ प्रतीक्षा के बाद निशि पुष्प झर

जाते हैं, मील के पत्थर अपनी

जगह ख़ामोश खड़े रहते

हैं लोग अनदेखे से..

।।इति शम। ।

धन्यवाद 

पम्मी सिंह 'तृप्ति'...✍️


2 टिप्‍पणियां:

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