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गुरुवार, 1 फ़रवरी 2024

4023...मेरे रास्ते में न साहिल है न भँवर...

शीर्षक पंक्ति: आदरणीया डॉ. जेन्नी शबनम जी की रचना से। 

सादर अभिवादन।

गुरुवारीय अंक में पढ़िए आज की पसंदीदा रचनाएँ-

771. अन्तिम लक्ष्य

पानी पर फिसलते-फिसलते
मैं अब थक गई हूँ
मेरे रास्ते में न साहिल है न भँवर
न ज़मीं है न सहर
न आसमाँ न रात का क़मर
एक बाँध है जिसने रास्ता रोक रखा है
कहीं मिल न जाए समुन्दर।

नादान लम्हा ...

दूर  कहीं मुस्कुराती है ख़ामोशी
और खिलखिलाता है जंगली गुलाब का आवारा पेड़
आज भी उस लम्हे पर, वक़्त की नादानी पर
प्रेम को कब कहाँ किसने समझा है ..

.शायरी | दर्द | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

दर्द सीने  में  रहे  तो  बेहतर

वरना लावा ही  बहेगा हरसूं

गमलों में बरगद...

खून-पसीने की रोटी कोई कहानी लगती  थी

मोल  तब  जाना जब अपनी रोटी कमाया मैंने।

बरगद  गमलों  में उगा  देख  हंसा था हाकिम

फटी रह गयी आंखें जब बगीचे में लगाया मैंने।

यह 'ब्रेन चिप' क्या आपके विचार भी छीनेगा?

इस खबर के पहले पिछले साल मई में अमेरिका की सर्वोच्च चिकित्सा संस्था फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने न्यूरालिंक को मानवीय अध्ययन की और उसके चार महीने बाद इस चिप के परीक्षण की अनुमति दी। उसके पहले रायटर्स ने यह खबर भी दी थी कि इस कंपनी की इससे पहले की एप्लीकेशंस को अनुमति नहीं मिल रही है। अनुमति न मिलने के पीछे सुरक्षा जैसे अनेक कारण थे।

*****

फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव 

 

3 टिप्‍पणियां:

  1. स्तरीय रचनाओं का संगम
    आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. सभी लिंक बहुत अच्छे … आभार मेरी रहना को जगह देने के लिए …

    जवाब देंहटाएं
  3. उत्कृष्ट लिंकों के साथ लाजवाब प्रस्तुति ।

    जवाब देंहटाएं

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