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मंगलवार, 28 नवंबर 2023

3958...किताब के पन्नों के भीतर...

 मंगलवारीय अंक में आप

सभी का स्नेहिल अभिवादन।
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समय निरंतर बदलता है और उसके साथ जीवन और परिवेश भी। कुछ दशकों पहले राजनीति को सामान्य जीवन से इतर संस्था माना जाता था परन्तु आज जीवन के हर पहलू में राजनीति का आवश्यक हस्तक्षेप है। ऐसा नहीं है कि पहले हस्तक्षेप नहीं था, परन्तु उसका स्वरूप स्पष्ट नहीं था बल्कि एक तरीके से वह अंधकार में था। राजनीति अपनी जगह थी, जीवन अपनी जगह था। जैसे पहले आम नागरिक को यह लगता था कि बैंक ही ऋण देता है और बैंक ही वसूली, कुर्की आदि करता है, परन्तु वर्तमान में बच्चा-बच्चा यह जानने लगा है कि सरकार की नीतियों के तहत बैंक कर्ज देता है जो पिछले चुनाव में घोषणा की गयी थी और उसी पार्टी की सरकार बनेगी तो वह माफ भी हो जायेगा… आदि। 
आज विचित्र दौर है। सरकारें शब्द तक को प्रभावित करती हैं। आज विचार राजनीति के बंधक हैं, 
आज राजनीति हम पर इतनी हावी है कि व्यक्ति अपनी पार्टी की पसंद के विचार को प्रबलता देने के लिए हत्या जैसे जघन्य अपराध को सही ठहराता है। जीवन-यापन को प्रभावित करने
 वाली महंगाई जैसी बला को भी लोग सही ठहरा सकते हैं, वहीं जनसरोकार के मुद्दों को लोग गलत ठहरा सकते हैं। आखिर जो चीज़ गलत ही है वह सही कैसे हो सकती है? 
हमारा साहित्य क्या कुछ लिख रहा है, कितने ईमानदारी से लिख रहा है, यह समझना और जानना जरूरी है। हालांकि साहित्य तो विचारधाराओं की गोलबंदी में पहले से ही बेचैन रहा है। आज समाज और जीवन- राजनीतिक खेमों में गोलबंद हो गया है। क्या ऐसे समय में हमारा साहित्य समाज राजनीति के आगे मशाल लेकर चल रहा है… या उसके तमस की खोह में रास्ता भटक गया है?
आम आदमी आपसी माथा-फुटव्वल में व्यस्त है राजनीतिक प्रतिनिधि अपना मतलब साधकर मस्त हैं और क़लमधारी 
बौखलाए, कन्फ्यूजियाये हुए अस्त-व्यस्त हैं।
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आइये आज की रचनाएँ पढ़ते हैं-



देख मत लेना भरी आँखों से तुम आकाश को,
वर्ना ये बादल लगा देते हैं बूँदों की झड़ी.

रश है कितना मैंने बोला देख लेंगे बाद में,
पर वो पहले दिन के, पहले शो पे है, अब तक अड़ी.



भग्नावशेषों और चट्टानों 

की देह पर अक्सर 

उगा दीखता है प्रेम

सोचती हूँ…,

अमरता की चाह में

 अपने ही हाथों प्रेम को

लहूलुहान..,

 कर देता है आदमी


किताब के पन्नों के भीतर
अबकी
बारिश की जगह बादल आए
और
आ गई अंजाने ही आंधी।
बच्चे ने नाव
सहेजकर रख दी



लिपटी धरा सफेद केसरिया 
फूलों की चादर से
बिखरे हैं धरा पर ज्यों 
अश्रु  तुम्हारे प्यार  के
पलता आंसुओ में प्रेम तेरा
बहते रहे रात भर.जो
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सर्दियों में जब अरु में भारी बर्फबारी होती है, तो स्कीइंग और हेली स्कीइंग का अभ्यास किया जाता है। हमने काफ़ी समय वहाँ घूमते हुए और प्रकृति के नज़ारों को निहारते, फ़ोटोग्राफ़ी करते हुए बिताया।कुछ  व्यापारी यहाँ भी अपने समान बीच रहे थे।घोड़े और खच्चर वाले भी दूरस्थ बर्फ से ढके स्थानों तक ले जाने का आग्रह कर रहे थे, किंतु हमने अपने पैरों पर भरोसा करना ही बेहतर समझा। एक घंटा वहाँ बिताकर हम बेताब वैली के लिए निकल पड़े।  

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आज के लिए इतना ही
फिर मिलते है 
अगले अंक में।

6 टिप्‍पणियां:

  1. जबरदस्त अंक
    आनन्दित हुई
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. अच्छा चयन... सभी रचनाएँ बहुत अच्छी हैं

    जवाब देंहटाएं
  3. गहन चिंतन के साथ संकलन का आग़ाज़ और लाजवाब सूत्र संकलन । बहुत बहुत आभार एवं धन्यवाद श्वेता जी !

    जवाब देंहटाएं
  4. सुप्रभात ! आज सोशल मीडिया का दौर है, पहले कलम मात्र कुछ के पास होती थी, आज सबके हाथ में है। सबको अपनी बात कहने का हक़ है, वाक़ई रचनाकारों को अपनी आवाज़ हर उस बात के लिए उठानी चाहिए जो सही है। विचारणीय भूमिका और पठनीय रचनाओं की खबर देता सुंदर अंक, आभार !

    जवाब देंहटाएं
  5. खूबसूरत हलचल … आभार लेती ग़ज़ल को शामिल करने के लिए

    जवाब देंहटाएं

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