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मंगलवार, 24 अक्टूबर 2023

3923....पावन दशहरा

मंगलवारीय अंक में
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
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दस इंद्रियों को जीत लो
यही विजयादशमी पर्व है
राम सद्गुण के सम्मुख
पराजित दशानन गर्व है।


पाँच लिंक परिवार की ओर से
आपसभी को विजयादशमी की 
हार्दिक शुभमंगलकामनाएँ
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बुराइयाँ हम सभी में हैं, और जो लोग बुराइयों से स्वयं को 
दूर रखने का प्रयास करते हैं वो मूकद्रष्टा और नपुंसक की तरह दर्शक बनकर रह जाते हैं,कुछ करना नहीं चाहते, ऐसे लोग अपनी अच्छाई के खोल में घुसे घोंघे की तरह भीरू बनकर जीने लगते हैं।
  दशहरा पर्व हम सभी के लिए आत्मचिन्तन दिवस के रूप में सामने है। हम सभी इस बात को सोचें कि रावण हमसे खराब क्यों था, हम रावण से अच्छे कैसे हैं।
हम क्या सचमुच ईमानदारी से यह विश्लेषण कर सकते हैं
कि हमारे अंदर राम के गुण ज्यादा है या रावण के...?
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आइये चिट्ठाजगत से इतर 
आज की रचनाएँ पढ़ते हैं-

१.नीलकंठ
कितने हैं 
नीलकंठ 
मेरी कपाल-अस्थियों में 
कितनी बार मनाई 
विजयादशमी 
कितनी बार हो आया मैं 
लंका 
फिर भी 
भटक जाते हैं 
तलुओं से चले 
धरती के शीतल संकेत 
बार-बार 
बार-बार।
-राकेश मिश्र

२.पावन दशहरा
फिर हमें संदेश देने
आ गया पावन दशहरा
तम संकटों का हो घनेरा
हो न आकुल मन ये तेरा
संकटों के तम छटेंगें
होगा फिर सुंदर सवेरा
धैर्य का तू ले सहारा
द्वेष हो कितना भी गहरा
हो न कलुषित मन यह तेरा
फिर से टूटे दिल मिलेंगें
होगा जब प्रेमी चितेरा
बन शमी का पात प्यारा
सत्य हो कितना प्रताडित
पर न हो सकता पराजित
रूप उसका और निखरे
जानता है विश्व सारा
बन विजय स्वर्णिम सितारा
-सत्यनारायण सिंह


३. स्वर्ण लंकाएँ
क्या करोगे
अब बनाकर सेतु सागर पर
राजपथों पर खड़ी हैं स्वर्णलंकाएँ।
पाप का रावण
चढ़ा है स्वर्ण के रथ पर,
हो रहा जयगान उसका
पुण्य के पथ पर,
राक्षसों ने पाँव फैलाए गली-कूचे
आज उनसे स्वर मिलाती हैं अयोध्याएँ।
राम तो अब हैं नहीं
उनके मुखौटे हैं,
सती साध्वी के चरण
हर ओर मुड़ते हैं,
कैकई की छाँह में हैं मंथरायें भी
नाचती हैं विवश होकर राज सत्ताएँ।
दर्द के साये
हवा के साथ चलते हैं,
सत्य के पथ पर
सभी के पाँव जलते हैं,
घूमती माँएँ अशोक बाटिकाओं में
अब नहीं होती धरा पर अग्नि परीक्षाएँ।
आम जनता रो रही है
ख़ास लोगों से,
युग-मनीषी खेलते हैं
स्वप्न-भोगों से,
अब नहीं नवकुश लड़ें अस्तित्व की ख़ातिर
छूटती हैं हाथ से अभिशप्त वल्गाएँ
-ओमप्रकाश सिंह

४. विजयदशमी
बोलकर जो जय उठाते हाथ,
उनकी जाति है नत-शीश,
उनका देश है नत-माथ,
अचरज की नहीं क्या बात?

इष्ट जिनके देवता हैं राम
उनकी जाति आज अशक्त,
उनका देश आज गुलाम,
विधि की गति नहीं क्या वाम?

मुक्ति जिनके जन्म का आदर्श
बंधन में पड़े वे आज,
बंधन की तजे वे लाज
क्यों हैं? बोल, भारतवर्ष!

-हरिवंशराय बच्चन

५.राम-सा सम्मान
मेले में रावण का पुतला
हर साल जलाया जाता है।
इस तरह पर्व विजयादशमी
हर जगह मनाया जाता है।।

मम्मी कहती हैं रावण ने
जन-जन को बहुत सताया था।
इसलिए राम ने मार उसे
पापी का पाप मिटाया था।।

रावण की चिता जली थी जब
आनन्द हर तरफ छाया था।
यह पर्व दशहरा उसी समय से
बीच हमारे आया था।।

करता जो अच्छे काम सदा
सम्मान राम-सा पाता है।
औरों को सदा सताता जो
वह फल रावण सा पाता है।।
-रामनरेश उज्ज्वल


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