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सोमवार, 23 अक्टूबर 2023

3922 ....फाल्गुनी, तुम नहीं लौटोगी ये मुझे पता है

 सादर अभिवादन

माता रानी को सादर नमन
आमंत्रण ..
सभी पाठक एवं रचनाकारों से निवेदन
उत्सवों को चलते सब उत्सव पर ही लिखने लगे हैं ...
विविधता लाने के उद्देश्य से आपसे आग्रह है कि 
वे अपनी पसंदीदा पांच रचनाएं प्रेषित करें 
कृपया अन्य़था न लेते हुए सहयोग करें
सादर
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सुबह-सुबह दरवाजे की घंटी बजी।  द्वार खोल कर देखा तो पांच से दस  साल की चार - पांच  बच्चियां  लाल रंग के कपड़े  पहने  खड़ी थीं।   छूटते ही  उनमें सबसे  बड़ी  लड़की ने  सपाट आवाज  में सवाल  दागा,   ''अंकल, कन्या खिलाओगे'' ?   मुझे  कुछ सूझा नहीं,  अप्रत्याशित   सा था यह सब। अष्टमी के दिन कन्या पूजन होता है। पर वह सब परिचित चेहरे होते हैं, और आज वैसे भी षष्ठी है। फिर सोचा शायद गृह मंत्रालय  ने कोई अपना विधेयक पास कर दिया हो इसलिये इन्हें बुलाया हो। अंदर पूछा,   तो पता चला कि ऐसी कोई बात नहीं है !  मैं फिर  कन्याओं  की ओर  मुखातिब   हुआ और बोला,  ''बेटाआज नहीं,  हमारे  यहां अष्टमी  को पूजा  की जाती है''। "अच्छा कितने बजे" ? फिर सवाल उछला, जो  सुनिश्चित  कर  लेना  चाहता था,  उस दिन के निमंत्रण को।  मुझसे कुछ कहते नहीं बना, कह दिया,  ''बाद में बताऐंगे''





पाँव में
महावर के
रंग सभी छूटे,
उपवन में
तितली के
पँख नहीं टूटे,
बच्चों की टोली को
देखा क्या हँसते ?






मेरे लिए
सलीके से जीने के लिए
खुद को चाहना और
अभिव्यक्त करना
बड़ा ज़रूरी होता है  
और वो कहीं खो सा गया है ।
शब्द-शब्द बिखरे हैं चारों तरफ।
चुन कर माला गूँथनी भी चाहूँ
तो फिसल जाते हैं मोतियों की मानिन्द





सूरज की जेब से निकल आए 
एक दिन ऐसा भी 
चल पडू मैं किसी यात्रा पर 
और दरवाजे पे ताला नहीं 
किसी की प्रतीक्षा की आंखें लगी हो
काश एक दिन ऐसा भी निकल आता





फाल्गुनी,
तुम नहीं लौटोगी
ये मुझे पता है,
पता नहीं क्यों
आज खुद को विश्वास दिला रहा हूँ।
यह अनकही कविता तुमसे ही लिखवा रहा हूँ।


आज बस
कल मिलिएगा सखी श्वेता से
सादर

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर सूत्रों का संयोजन ।पाँच लिंकों का आनन्द में “उलझन” को सम्मिलित करने के लिए आपका हार्दिक आभार एवं धन्यवाद ।

    जवाब देंहटाएं
  2. आपका हृदय से आभार. सभी लिंक्स अच्छे

    जवाब देंहटाएं

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