---

बुधवार, 25 अक्टूबर 2023

3924.पहली बारिश में ज़िंदगी ढूँढे

 ।।‌प्रातः वंदन।।

 देखे हैं कितने तारा-दल

सलिल-पलक के चञ्चल-चञ्चल,

निविड़ निशा में वन-कुन्तल-तल

फूलों की गन्ध से बसे !


उषाकाल सागर के कूल से

उगता रवि देखा है भूल से;

संध्या को गिरि के पदमूल से

देखा भी क्या दबके-दबके..!!


~ सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' 

प्रस्तुतिकरण को आगे बढ़ाते हुए आज बात कुछ इस तरह के स्याही के बूंटो से ✍️

आओ मौसम की पहली बारिश में ज़िंदगी ढूँढे


 पिछली बारिश के जमा पलों की गुल्लक खोलें 
उसमें थे बंद कुछ पल रजनीगंधा से ...

🌟

  शिकायत ख़ुद से भी अनजान हुई 



खुद से खुद की जब पहचान हुई

ज़िंदगी फ़ज़्र की ज्यों अजान हुई 


जिन्हें गुरेज था चंद मुलाक़ातों से 

गहरी हरेक से जान-पहचान हुई 

🌟

रावण

हममें रावण

तुममे रावण

हम सब में 

रावण रावण


ऊपर रावण

नीचे रावण

क्षितिज क्षितिज

🌟

सुनो स्त्री

#सुनो_स्त्री

#दुर्गा पूजा पंडालों में

बजते घंटे, घड़ियाल

आरती की गूंज

धूप, दीप, नौवेद्य

अछत, अलता

🌟

।। इति शम।।

धन्यवाद

पम्मी सिंह 'तृप्ति'...✍️

2 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात
    शानदार अंक
    आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभात ! निराला की काव्य प्रतिभा का आनंद देती सुंदर प्रस्तुति, आभार पम्मी जी !

    जवाब देंहटाएं

आभार। कृपया ब्लाग को फॉलो भी करें

आपकी टिप्पणियाँ एवं प्रतिक्रियाएँ हमारा उत्साह बढाती हैं और हमें बेहतर होने में मदद करती हैं !! आप से निवेदन है आप टिप्पणियों द्वारा दैनिक प्रस्तुति पर अपने विचार अवश्य व्यक्त करें।

टिप्पणीकारों से निवेदन

1. आज के प्रस्तुत अंक में पांचों रचनाएं आप को कैसी लगी? संबंधित ब्लॉगों पर टिप्पणी देकर भी रचनाकारों का मनोबल बढ़ाएं।
2. टिप्पणियां केवल प्रस्तुति पर या लिंक की गयी रचनाओं पर ही दें। सभ्य भाषा का प्रयोग करें . किसी की भावनाओं को आहत करने वाली भाषा का प्रयोग न करें।
३. प्रस्तुति पर अपनी वास्तविक राय प्रकट करें .
4. लिंक की गयी रचनाओं के विचार, रचनाकार के व्यक्तिगत विचार है, ये आवश्यक नहीं कि चर्चाकार, प्रबंधक या संचालक भी इस से सहमत हो।
प्रस्तुति पर आपकी अनुमोल समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक आभार।