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सोमवार, 11 सितंबर 2023

3877 ...मेरे शब्द खो गये, दूसरे शब्दों में

 सादर अभिवादन

जी-20 समिट अब
जी -21 हो गया
एक नया देश जुड़ गया
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अंसुवन धारा श्याम से,
धुल  गये  पैर  विप्र  के।
परात अभी  थी खाली,
अंसुवन  से  अब  पूरी।।


पावन  जल  परात  का,
छिड़का  गया  महल में।
पीताम्बर  से   पोंछे  पैर,
श्याम  गद गद थे मन में।।




रिसता रहा
कच्चा घर
टपकती रही
छत
वह बचाती रही
सोते हुए बच्चों को
ढांकती रही
घर का जरूरी सामान
भीग चुकी चादर मोड़कर
लगाती रही पोंछा




तुम्हें पता है! ये जो तारे हैं ना  
ये अंबर की
हथेली की लकीरों पर उगे
चेतना के वृक्ष के फूल हैं
झरते फूलों का
सात्विक रूप है  काया।



मेरे शब्द खो गये,
दूसरे शब्दों में
हिरा गये कहीं।
खोजा मन के हर कोने में,
बाहर भी खोजा गहराई से,
सिर्फ वही नहीं
मेरे भाव भी गुम है

आज के लिए बस
सादर

4 टिप्‍पणियां:

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