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रविवार, 10 सितंबर 2023

3876 ..इच्छाएँ पत्तों की तरह उगती हैं मन के पेड़ पर

 सादर अभिवादन

जी-समिट चालू आहे
कुछ अच्छे के लिए
कुछ विश्व के लिए
कुछ दृश्य के लिए
कुछ ठंडक के लिए
कुछ जलन के लिए
जिसके भाया वो आया
जो नहीं आया उसे शायद
नहीं भाया...
आज की रचनाएं देखें ....



बहुत साफ़ रहता है यह घर,
न कोई काग़ज़ फेंकता है,
न छिलका, न कुछ और,
तुम्हारे जाने पर जाना
कि इतनी सफ़ाई
मुझे पसंद नहीं है.





इच्छाएँ पत्तों की तरह उगती हैं
मन के पेड़ पर
कुछ झड़ जाती हैं आरम्भ में ही
कुछ बनी रहती हैं देर तक
कभी समाप्त नहीं होतीं
यह एक सदानीरा नदी सी



मेरा जीवन एक कैनवस था
और तुम्हारे हाथों में रंगों की बाल्टियाँ
मुझे प्रेम में फूल होना था
और तुम्हें तितलियों का जीवन जीना था




विद्रोही नहीं जाते हैं वन में
वर्षों तप करके किसी
रहस्य को जानने के लिए
विद्रोही समाज में रहकर ही
खड़े हो जाते हैं इसके सुधार के लिए।

आज बस इतना ही
सादर

3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूबसूरत प्रस्तुति. आभार

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय यशोदा जी मेरे ब्लॉग के लिंक को यहां प्रस्तुत करने के लिए।🙏

    जवाब देंहटाएं
  3. सुप्रभात ! देर से आने के लिए खेद है, बहुत बहुत आभार 'मन पाये विश्राम जहां को 'कल के अंक में स्थान देने हेतु यशोदा जी !

    जवाब देंहटाएं

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