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शुक्रवार, 26 मई 2023

3769....पाँव के पंख


शुक्रवारीय अंक में
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन।
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राजनीतिज्ञ हर जगह एक जैसे हैं। वे लोग वहां पुल बनाने का वादा करते हैं जहां नदी ही नहीं होती...!!

राजनीति बिना रक्तपात के युद्ध है जबकि युद्ध रक्तपात से राजनीति है।

राजनीति एक पेंडुलम है जिसकी अराजकता और अत्याचार के बीच झूओं को सदा के लिए भ्रम में डाल दिया जाता है...!!  - अल्बर्ट आइंस्टीन

राजनीति का नैतिकता से कोई संबंध नहीं है...!! -निकोलो मैकियावेली

 राजनीति कोई खेल नहीं है। ये सबसे गंभीर व्यवसाय है...!
-विंस्टन चर्चिल

राजनीति के प्रभाव,दुष्प्रभाव का देश की जनता पर क्या असर हो रहा है आप देख, समझ सकते हैं।
आप क्या सोचते है राजनीति के बारे में कृपया अपने विचार साझा करें।
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आइये अब आज की रचनाओं के संसार में-


रेशम बुनने वाले मन बहुत कोमल होते हैं  
कान लगा कर सुनो ध्यान से उनके मधुर रागिनी में बजते अन्तर्नाद में छिपे विलाप को 
बेशक वे तुम्हारी धूप चुराने का हौसला रखते हों पर धूप से झुलसते वे भी हैं 
पाँव उनके भी  लहुलुहान होते हैं ?
जिन रास्तों से गुजर कर वे तुम तक आए 
बेशक वे फूलों भरे तो न होंगे 
कोई भी रास्ता सिर्फ़ फूलों भरा कब होता है भला ?



शब्द कहाँ गुम हो जाते थे जान नहीं पाए अब तक,
चुपके-चुपके आँखों-आँखों इश्क़ पुराना होता था.

अपनी पैंटें, अपने जूते, साझा थे सबके मोज़े,
चार भाई में, चार क़मीज़ें, मस्त गुज़ारा होता था.

घंटों मोबाइल या लैपटॉप या कंप्यूटर की सिकीं से 

बुझी आँखों के पीछे जो दर्द होता है 

घुटनों का , रीढ़ की हड्डी का या ढीली पड़ती पकड़ का 

उसका जिक्र कहाँ करना चाहता है कोई 

और करे भी कैसे जब कोई सुनना ही नहीं चाहता ।  

यह वह सिरे वाली नदी नहीं है



पहले सिरे का वह बर्फ वाला
नुकीला छोर 
टूटकर नदी के साथ बह गया।
अब उस नदी का 
पहला सिरा भी नहीं है
केवल 
हांफती हुई जिद का कुछ 
सतही आवेग है
और चलते-चलते 
अत्यंत रोचक पुस्तक समीक्षा 



यूरोप के कई स्थानों की यात्राओं को  इस पुस्तक में सहेजा है । ये यात्राएँ  लेखिका द्वारा अलग अलग समय  पर की गई हैं । किस जगह क्या परेशानी आ सकती है ,हर जगह को देखने और समझने के लिए क्या क्या जानना आवश्यक है , सारी ही बातों का ज़िक्र इस पुस्तक में मिलता है । किस जगह शाकाहारी भोजन उपलब्ध होता है और कहाँ केवल मांसाहारी ही उपलब्ध होगा ,  किस शहर का क्या विशेष खाद्य है इसका जिक्र भी शिखा करना नहीं भूली है । यहाँ तक कि उस खाद्य या पेय की रेसिपी भी लिख डाली है । 
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आज के लिए इतना ही

कल का विशेष अंक लेकर

आ रही हैं प्रिय विभा दी।




आज के लिए इतना ही

कल का विशेष अंक लेकर

आ रही हैं प्रिय विभा दी।




8 टिप्‍पणियां:

  1. राजनीतिज्ञ हर जगह एक जैसे हैं। वे लोग वहां पुल बनाने का वादा करते हैं जहां नदी ही नहीं होती...!!
    शानदार अंक
    आभार

    जवाब देंहटाएं
  2. 'राजनीति लड़खड़ाये तो साहित्य सहारा दे सके'
    -यानी तय है कि राजनीति लड़खड़ायेगी ही

    राजनीति कोई खेल नहीं है। ये सबसे गंभीर व्यवसाय है...! -विंस्टन चर्चिल

    -ओ भी ऐसा वैसा व्यवसाय नहीं••• फकीर को शहंशाह बना दे•• बस कुर्सी से चिपकने की देर है

    बढ़िया लिंक्स चयन

    जवाब देंहटाएं
  3. सुंदर हलचल में मुझे शामिल करने का बहुत आभार …. दिगंबर

    जवाब देंहटाएं
  4. हमेशा की तरह बहुत अच्छा अंक है। मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार। सभी ब्लॉगर साथियों से मेरा निवेदन है कि कृपया कर मेरे इस नए ब्लॉग पर एक बार अवश्य आएं...यह ब्लॉग पूरी तरह तरह प्रकृति से संबंधित आलेखों के लिए होगा...इस पर उसकी चिंता होगी, चिंतन होगा, राह होगी और दुनिया भर के संकट की जानकारियां...आप सभी से सहयोग की उम्मीद है...। आभार आप सभी का।

    जवाब देंहटाएं
  5. उत्कृष्ट लिंकों से सजी लाजवाब स्तुति ।
    सभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं ।

    जवाब देंहटाएं
  6. प्रिय श्वेता
    आज कल राजनीति है कहाँ ? केवल कुर्सी नीति है , कुछ भी करेंगे सत्ता पाने के लिए । आज की तारीख में विपक्ष बौखलाया हुआ है और सत्तापक्ष सोच रहा है कि हम ही हम हैं ---- पासा पलट भी जाए तो साधारण जनता को क्या हासिल होने वाला ? जनता को फ्री का लालच दे कर फ्री की अफीम खिला दी जाती है । बृहद विषय है ।
    रचनाएँ सभी एक से बढ़ कर एक । मेरे द्वारा दिये पुस्तक परिचय को शामिल करने के लिए शुक्रिया ।

    जवाब देंहटाएं

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