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बुधवार, 3 मई 2023

3746 ....हम अपनों से ही ठोकर खाये हुये है

 सादर अभिवादन

आज और अगले बुधवार को मैं ही रहूंगी
फिर सखी पम्मी ही आएंगी
अब देखिए रचनाएँ....



आहोजारी करें तो भी किससे करें,
हम अपनों से ही ठोकर खाये हुये है।
कहने को रिश्तों के रूप बहुत है मगर,
हम कुछ रिश्ते को निभाकर साये हुये हैं।




दुनिया चल रही थी
दुनिया चलती रहेगी
औरत इसी प्रकार बदहवास हो
सड़कों पर रोती हुई डोलती रहेगी
कोई नहीं पूछेगा उसके गम की वजह
पूछ लिया तब भी
ठहरायेगा उसे ही दोषी
नियति के पिस्सू काट रहे हैं
और वो है कि मरती भी नहीं
स्वर्णिम अक्षरों में
उम्रकैद लिखा है आज भी उसके माथे पर
फिर वो आज की जागरूक
कही जाने वाली स्त्री ही क्यों न हो




हवा कब रुख बदल दे कहना है मुश्किल
औरों की पुरवाई पर फैसला लिया न जाए।

छुवीं ऐसी न लगे कि चिंगारी बडांग बने,
फिर पूरे गाँव को जद से बचाया न जाए।

वजह के लिए उलझना हो तो उलझो,
बेवजह फंसने के लिए उलझा न जाए।




मालकिन है ठसक वाली
चढ़ के बतलाने लगेगी
दो मिनट में हाव सारा
भाव भी तेरा पढ़ेगी
देखना चढ़ना नहीं हत्थे पे
उसके है हमें
चल सखी अब मोल करना
तोल पर तुझको सिखा दूँ॥




समंदर ने पानी उधार लिया है
नदियों से
जैसे उधार लेते हैं
कुछ एक पिता बेटियों से
उनकी संपत्ति
और अधिकार के साथ चलाते हैं
पितृसत्ता का साम्राज्य




ये सूरज की धाती
ये किरणों की पाती
ये अंबर से किस किस के
संदेस लाए
ये तितली की पांखी
ये जुगनू की भाती
धरा के नयन में
ज़िंदगी वन टिमटिमाए




ताबीज बनी थी जो आयतें उस शरद पूनम की रात l
कर अधर अंश मौन महका गयी अश्वगंधा बयार ll

शरारतों की बगावत थी वो रूमानी साँझ l
शहनाई धुन घुल गयी चूडियों की बारात ll

काश थम जाती वो करवटें बदलती साँस l
मिल जाती दो लहरें एक संगम तट समाय ll

आज के लिए बस
सादर

4 टिप्‍पणियां:

  1. वाह
    बहुत बढ़िया लिंक्स की रंगोली सजी

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत ही बढियां संकलन धन्यवाद मेरी रचना शामिल करने के लिए

    जवाब देंहटाएं
  3. सुंदर और पठनीय रचनाएं। Meei रचना को शामिल करने के लिए बहुत आभार आपका।

    जवाब देंहटाएं
  4. वेहतरीन संकलन, मेरी रचना को स्थान देने का आभार

    जवाब देंहटाएं

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