---

मंगलवार, 2 मई 2023

3745 ..उलूक को लगी है...चाय की तलब

 सादर अभिवादन

सच मे मेरा फोन खराब ही था
अब तक सेट नहीं हुआ, मेरा फेवरेट गेम नहीं आ रहा है
आएगा..आना ही होगा उसे....
उस गेम को मेरी जरूरत मुझसे ज़ियादा है
खैर...आभार कल की प्रस्तुति के लिए
मजदूरी तो बनती है ..मिलेगी और ज़रूर मिलेगी
अब रचनाएँ ...

आज एक गड़ा मुर्दा उखाड़ लाई हूं आप भी देखिए


चाय की तलब और गलत समय का गलत ख्याल
जाओ
जा कर लिखना शुरु करो
फिर किसी की कहानी का
कबाड़खाना

चाय
अब दूसरी नहीं मिलने वाली है
आधे घंटे बाद
खाना बन जायेगा
खाने की मेज पर आ जाना ।


ये तस्वीर क्या कहती है


बुझ गई आज..कल का
फ़िर यही झमेला है।
धरें आधार कर्म के..जुड़े
विधि विधान ये मेला है ॥
 
तुझे न मुझे ..ले जाना...
हाथ नहीं एको धेला है ।
हैं पेट के ताम झाम..चले
इसी पे..सारा खेला है ॥





मन में बेफिक्र सा गरुर है
गरुर में अपनत्व  का एहसास  है
जिसने जेब खर्च दिया है ,वही तो अपना खास है
मेरे चेहरे की रौनक  देख वो सूकून  पाता है
मुझे मुस्काते देख वो मन ही मन हर्षाता है





आज घर मेरे .....
ना सफेदी .. ना रंगाई ..
ना रंगोली .. ना दिए ..
ना मिठाईयों का प्रकार ..
ना ही कोई झिलमिल रंगीन झालर ...

दरअसल सोचा मैंने ...
देवी ! ... आप और आपका उल्लू ...
थक ही तो जाएगा ना
एक ही रात में
इतने भक्तों के घर-घर जा-जाकर ...


आज के लिए बस
सादर

5 टिप्‍पणियां:

आभार। कृपया ब्लाग को फॉलो भी करें

आपकी टिप्पणियाँ एवं प्रतिक्रियाएँ हमारा उत्साह बढाती हैं और हमें बेहतर होने में मदद करती हैं !! आप से निवेदन है आप टिप्पणियों द्वारा दैनिक प्रस्तुति पर अपने विचार अवश्य व्यक्त करें।

टिप्पणीकारों से निवेदन

1. आज के प्रस्तुत अंक में पांचों रचनाएं आप को कैसी लगी? संबंधित ब्लॉगों पर टिप्पणी देकर भी रचनाकारों का मनोबल बढ़ाएं।
2. टिप्पणियां केवल प्रस्तुति पर या लिंक की गयी रचनाओं पर ही दें। सभ्य भाषा का प्रयोग करें . किसी की भावनाओं को आहत करने वाली भाषा का प्रयोग न करें।
३. प्रस्तुति पर अपनी वास्तविक राय प्रकट करें .
4. लिंक की गयी रचनाओं के विचार, रचनाकार के व्यक्तिगत विचार है, ये आवश्यक नहीं कि चर्चाकार, प्रबंधक या संचालक भी इस से सहमत हो।
प्रस्तुति पर आपकी अनुमोल समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक आभार।