शीर्षक पंक्ति: आदरणीय डॉ.सुशील कुमार जोशी जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक में आज पढ़िए कुछ चुनिंदा रचनाएँ-
गुंडे दबंग बढ़ रहे, राजनीति के
साथ।
क्रिमिनल
भी हैं जुड़ रहे, लिये पोटली हाथ।।2।।
इधर मुक्ति पालो उधर बंधुआ हो लेती है सोच
सबको पता होता है
खुले दिमाग मरीचिका होते हैं
कोई कहता नहीं है मगर गुलाम होता है
इस
किनाराकशी में हैं न जाने ख़म
कितने, कभी डूबता संग
ए साहिल ये ज़िन्दगी,
पढ़कर अखबार
की सुर्खियों में छपा बयान
बागबां
बेरहम पतझडों से बहार मांगने गए।
सरगोशियां
थीं सच को सच ही कहा जायेगा
झूठ की
मंडियां सदका सदाचार मांगने गए।
चलते-चलते पढ़िए आपके मन-मस्तिष्क को झकझोर देने वाली एक लघुकथा-
आकाश में उड़ते बाज की माता ने बिना पँख खुले बच्चे को आकाश के बहुत ऊँचाई पर ले जाकर छोड़ देने की क्रिया की होगी न...! उस सगी माँ को किसी ने सौतेली पुकारा होगा क्या...!
आपका कोख जाया।
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फिर मिलेंगे।
रवीन्द्र सिंह यादव
शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचनाओं से सुसज्जित अंक
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
उम्दा रचनाओं का संकलन।
जवाब देंहटाएंउम्दा संकलन।
जवाब देंहटाएंआभार रवीन्द्र जी|
जवाब देंहटाएंवाह!सुन्दर संकलन
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