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मंगलवार, 28 फ़रवरी 2023

3683...दुविधा की चादर लिए खुशी से हुई मीलों दूर...

शीर्षक पंक्ति: आदरणीया आशा लता सक्सेना जी की रचना से। 

सादर अभिवादन। 

मंगलवारीय अंक लेकर हाज़िर हूँ। 

आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ- 

मेरी दुविधा

मन उलझनों की गुत्थी लिए घूम रहा दुविधा में

मैं सोच में पड़ी हूँ क्या करूँ

दुविधा की चादर लिए

खुशी से हुई मीलों दूर।

जी चाहता है - -

हर ओर है, नितांत नीरवता, गहन निद्रित हैं पुरवासी,
न टूटे स्वप्न किसी का, निःशब्द गुजरने को जी चाहे,

अद्भुत सा लगे, लोगों का देख कर भी अनजान बनना,
एक शब्द भी कहा न जाए जब कुछ कहने को जी चाहे,

आंचलिक संवेदना वाले समादृत कथाकार थे फणीश्वरनाथ रेणु, पढ़िए उनकी कहानी- रसप्रिया

उनके द्वारा रचित कहानी संग्रह: 'ठुमरी', 'अग्निखोर', 'आदिम रात्रि की महक', 'तीसरी कसम' आदि। उपन्यास: 'मैला आँचल', 'परती परिकथा' आदि। निबंध-संग्रह: 'श्रुत अश्रुतपूर्व। ' थे। उपन्यास रेणु को जितनी ख्याति हिंदी साहित्य में अपने उपन्यास मैला आँचल से मिली, उसकी मिसाल मिलना दुर्लभ है। इस उपन्यास के प्रकाशन ने उन्हें रातो-रात हिंदी के एक बड़े कथाकार के रूप में प्रसिद्ध कर दिया। 

ज़िंदगी का पाठ

"ऐसे क्लेश में कौर भी गले से न उतरेगा अम्मा। मेरा खाना तुम दुकान पर ही खाना भिजवा देना। और हाँ दीदी अब यह शोर वहाँ तक न आए,ध्यान रहे। तमाशा बना दिया मोहल्ले में हमारा..!"बलदेव घर का झगड़ा देख गुस्से से तमतमाता वापस चला गया।

गेहूँ-चने से भरे-लदे खेतों में एक दिन

https://youtu.be/-yI_xwP7GZ0

 विश्व पुस्तक मेला 2023 ,प्रगति मैदान ,दिल्ली

इन दिनों विश्व पुस्तक मेला 2023 ,प्रगति मैदान ,दिल्ली में 25 फ़रवरी से 5 मार्च 2023 तक आयोजित किया जा रहा है। संयोग से रविवार 26 को ही जाने का अवसर मिला। प्रगति मैदान द्वार संख्या 4 से प्रवेश और यहीं से निकास भी था। मैंने टिकट paytm से ऑनलाइन बुक कर लिया था।  शाम पौने चार पहुँची तब ऑनलाइन टिकट बिक्री बंद हो चुकी थी। 

*****

फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव 

सोमवार, 27 फ़रवरी 2023

3682 / फिर छिड़ी बात फूलों की ....

 

नमस्कार !   बदलता मौसम ...... बदलती ऋतु ..... कुल मिला कर  मन की अजब - गज़ब की दशा .... शायद ऐसा मुझे ही लग रहा है   ................. लेकिन  ब्लॉग्स  पढ़ते हुए  लगा की औरों का मन भी बड़ा चलायमान है  .... कब कहाँ पहुँच जाये , नहीं   कह सकते ....  एक रचना  पढ़िए  और महसूस कीजिये की आपका मन भी तो ऐसा नहीं ? 

भ्रमणकारी पाँव मन के


मन है मैं हूँ और दूजा

है नहीं कोई यहाँ।

लौट आया फिर भटक कर 

दूर तक जाने कहाँ?



इस मन की भटकन को रोकने का एक ही साधन है और वो है ईश्वर ...... इसी के तहत एक खूबसूरत रचना .......


तू सबब है यहाँ


हर घड़ी ख़ास है 

तू मेरे पास है, 

भर रहा नित नयी 

हृदय में आस है !



आस ही है जो मन में उमड़ते भावों को अपने अनुसार गढ़ लेती है ......आपको पुनर्जन्म में विश्वास है ? मुझे तो है ....लेकिन पिछले जन्म का याद कुछ नहीं रहता , ये भी पता है , तो अगले जन्म में मुलाक़ात होगी या नहीं इस पर कुछ नहीं कह सकती ...... फिर भी देखिये लिखने वाले क्या क्या लिखते हैं ?


 इंतज़ार


होने को तो हो सकता था

कि तुम सुनकर उछल पड़ती, 

कह देती कि तुम्हें इसी का इंतज़ार था, 

पर यह भी तो हो सकता था

कि तुम्हें इसमें मेरा छिछोरापन दिखता। 


अब ये तो इंतज़ार कर सकते हैं लेकिन दिल्लीवासी भला किस बात का इंतज़ार कर रहे हैं ? जाइए घूम कर आइये अमृत उद्यान जिसका वर्णनं आपको इस पोस्ट पर मिलेगा ....... और हाँ अमृत उद्यान का पूरा आनंद लेना हो तो पोस्ट के नीचे दिए लिंक पर जाना न भूलियेगा ......





इस अद्भुत उद्यान को देखने के बाद मन यूँ ही प्रफुल्लित था कि  इस पोस्ट को पढ़ कर मन और भी आनंदित हो गया ......   सच कहूँ तो  आनंद से ज्यादा गर्व  की बात है ....... 

भारतीय गणना की श्रेष्ठता सिद्ध करता एक अद्भुत अंक, 2520


लेकिन हमारे महान गणितज्ञ रामानुजन ने गहन अध्ययन और शोध के बाद एक ऐसी संख्या खोज ही निकाली, जिसे 1 से लेकर 10 तक के सभी अंकों से विभाजित किया जा सकता है, यानी भाग दिया जा सकता है। एक अद्भुत संख्या, जो सम और विषम दोनों से पूर्णतया विभाजित हो जाती है, गणित के विशेषज्ञ भी आश्चर्यचकित हैं इसकी प्रकृति पर ! यह संख्या है, 2520 !    

 और इस अद्भुत जानकारी के साथ  ही आज  पाँच लिंकों का आनंद को भी मैंने सार्थक कर दिया है ..........ये सब मैंने सार्थक नहीं किया है बल्कि  हमारे ब्लॉगर साथियों ने किया है  जो आज कल  ब्लॉग की दुनिया से विमुख हो रहे हैं ......  

मिलते हैं अगले सोमवार को इसी मंच पर कुछ नयी  रचनाओं के साथ ......

नमस्कार 
संगीता स्वरुप 








रविवार, 26 फ़रवरी 2023

3681....मैं वो बेटी हूँ जो है जानती हर भाव को पढ़ना ॥

 
जय मां हाटेशवरी.....
स्वप्न मेरे कुछ भूले बिसरे
कागज को तरसे बरसों
सादर नमन......
आज के आनंदमय सफर में.....
कुछ भूली बिसरी और प्यारी-प्यारी  रचनाएं......


कि बेटी चाहती है अब !
मैं वो बेटी हूँ जो है जानती
हर भाव को पढ़ना ॥
मैं इतना जानती हूँ
बाप को इज़्ज़त बड़ी प्यारी ।
उसी इज़्ज़त की ज़िद पर
बेटियाँ जाती रहीं मारी ॥
हमें तो अश्रुओं में डूबकर
आया सदा बचना ॥
मेरे मन के सलोने भाव
तुमसे और माँ से हैं
मेरे विश्वास की पूँजी
जुड़ी ही मायके से हैं
अतः ये ध्यान रखना कि
नज़र को न पड़े गिरना ॥
वहाँ मैं संस्कारों का
तुम्हारे मान रक्खूँगी ।


माँ की यादें,
कभी एक-दो दिन बात करना भूल क्या जाता मैं कि
तुझे होने लगती थी मेरी भारी चिंता
और तू शिकायत के साथ फोन मिलाती मुझे
फिर पूछने बैठती-
'क्यों, क्या, सब ठीक तो है, मुझे बड़ी चिंता हो रही है'
ऐसे जाने कितने ही सवाल एक साथ दाग देती
मैं चुपचाप सुनकर तुझसे कहता-
'तू हमारी नहीं अपनी चिन्ता किया कर
तू हमारी चिन्ता करके क्या करेगी?'
मेरे यह कहने पर तू मुझे समझाती-
'बेटा, मां हूं न इसीलिए सबकी चिंता-फिकर करती हूं'


कड़वा सच
लड़खड़ा कर गिरते स्वाभिमान को संभालते हुए चेतना ने
गंभीरता से कहा ।
इस कड़वे सच को सुन व्यवहारिकता इतरा रही थी और परम्परा
के झुके माथे पर चिन्ता भरी सिकुड़न थी ।


सच्ची मित्र ये किताबें
देती हैं जीवन को गति,
शुद्ध-बुद्ध होती है मति।
मिटाती हैं ये अंधकार,
ज्ञान का ये करती हैं प्रसार।
हैं ये जीवन का दर्शन ,
विचारों का करें संवर्धन।


मेरी गली में वो चाँद जलवानुमा सा है..,
आँखे जैसे सूरज की पहली किरण,
तेरा चेहरा जैसा दुवा सा हैं,
नदिया गिरती रही मौजे जुड़ती रही,
बोझ वही अब भी दिल पे धरा सा है
दिन निकलता हैं ना कालिया खिलती है,
चंद रोज़ से वो शोख़ खफ़ा सा है....
 
धन्यवाद।

शनिवार, 25 फ़रवरी 2023

3680... प्रीत

 
हाज़िर हूँ...! पुनः उपस्थिति दर्ज हो...

  मत दावा करो.., त्याग, सेवा और समर्पण के बिना प्रेम हो ही नहीं सकता..

प्रीत

प्रीत

प्रीत

तुहीं बताव विश्वास भला कोई कइसे करी,

अपना जान का आगे, जान कइसे धरी !

हम त लूटा दिहनी सब कुछ तोहरे नाम पर,

बूतल दियना अब 'संजय' भला कईसे जरी !!

प्रीत

गुंजित अंतर्मन की अभिलाषा,

आत्मिक प्रणय की नव रीत बनो,

आल्हादित हृदय के प्राँगण में,

तुम नूतन भावों का स्रौत बनो,

प्रीत

कभी-कभी तो लगता है

कोई इंसान ही नहीं बचा संसार में,

जिससे कुछ कह सकूँ

अपना हर्ष, विषाद या फिर अन्तर्भावनाओं को,

कहीं भी मन एकाग्र नहीं हो पाता।

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पुनः भेंट होगी...
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शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2023

3679 ..कल्पित भय दिखाकर आस है कि तुम फिर चले आओगे।

 सादर अभिवादन

आज सखी श्वेता अपरिहार्य कारणों से
नहीं आएगी सो हम हैं न

कहते हैं कि प्रजा का भाग्य उसके राजा से जुड़ा हुआ होता है और यदि राजा का भाग्य अच्छा हो तो वहां की प्रजा सम्पन्न और खुशहाल रहती है भारत जैसे विविध प्रकार की भौगोलिक संरचना वाले देश में कीमती खनन मिलना भी देश के नेतृत्व की किस्मत से जोड़ा जा सकता है जम्मू कश्मीर में लिथियम के 32000 अरब रुपए के भंडार मिलना यही इंगित करता है 90 के दशक में वहां लिथियम के भंडार मिलने की संभावना बताई गई थी लेकिन लालफीताशाही के कारण फाईल सरकारी विभागों में चक्कर काटती रही और अब लिथियम का बेशकीमती भंडार भारत को तब मिला है जब भारत को इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है मोबाइल के अलावा भारत अगले कुछ सालों में इलेक्ट्रिक वाहनों का बड़े पैमाने पर उत्पादन करने के लिए तैयार है लेकिन उसके लिए प्रयुक्त होने वाले लिथियम के लिए भारत को चीन और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों पर निर्भर रहना पड़ता था लेकिन अब भारत खुद लिथियम उत्पादन के लिए ना केवल आत्मनिर्भर हो गया है बल्कि अब वो अन्य देशों को निर्यात करने की स्थिति में है अब भारत चिली के बाद लिथियम (जिसे मै सफेद सोना कहना चाहता हूँ) का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश बन गया है 2023 की संभवत भारत के लिए यह सबसे बड़ी अच्छी खबर है 33000 लाख करोड़ रुपये का भंडार आप गिनते गिनते थक जाएंगे यह इतनी बड़ी धनराशि हैं कश्मीर पर आजतक जितना निवेश किया गया था उससे कई गुना अधिक है यह कीमत 

सभी राष्ट्रभक्तो को बहुत बहुत बधाई  

रचनाएं देखिए..
 


राष्ट्र में कालाबाजारी वाले जब
धरे -पकडे जाते !
कोने -कोने  से हवाओं में
दुर्गन्ध आतीं !
*
शिक्षा -पुलिस -सेना आदि में
जब फेल आ जाते
तब बीटेक -एमटेक वाले भी
घबरा जाते !




इसकी उत्पत्ति के बारे में एक पौराणिक कथा भी प्रचलित है जिसके अनुसार राजा सत्यव्रत ने एक बार अपने गुरु वशिष्ठ से सशरीर स्वर्ग में जाने की इच्छा व्यक्त की जिसे गुरु वशिष्ठ के नकार देने पर नाराज सत्यव्रत ऋषि विश्वामित्र के पास चले गए ! वशिष्ठ से प्रतिस्पर्द्धा होने और उन्हें नीचा दिखाने का अवसर होने के कारण विश्वामित्र ने राजा सत्यव्रत की बात स्वीकार कर अपने तपोबल से उन्हें स्वर्ग भेज दिया ! इस पर इंद्र क्रोधित हो गए और उन्होंने सत्यवर्त को स्वर्ग से बाहर धकेल दिया पर ऋषि के तपोबल से वह पृथ्वी पर ना आ स्वर्ग और धरती के बीच त्रिशंकु हो उलटे लटकते रह गए ! कथा के अनुसार देवताओं और विश्वामित्र के युद्ध के बीच त्रिशंकु धरती और आसमान में जब उलटे लटक रहे थे तभी इसी बीच उनके मुंह से तेजी से लार टपकने लगी और यही लार धरती पर नदी के रूप में बहने लगी, चूँकि ऋषि वशिष्ठ ने राजा को चांडाल होने का शाप दे दिया था और उनकी लार से नदी बन रही थी, इसलिए इसे शापित कहा और मान लिया गया !




एक औरत दूसरी से तुम क्या करती हो...? मैं एक गृहणी हूँ. हाँ वो तो ठीक है, पर तुम करती क्या हो.? ‘आई मीन यू नो’...? तुम घर में कैसे रह लेती हो यार, मेरा तो जी घबराता है, बुखार आजाता है. अच्छा, तो तुम क्या जंगल में रहती हो.? व्हाट रबिश... मेरे कहने का मतलब था कि "घर के काम एंड ऑल" ओह.! तो उसमें क्या है, तुम जैसों के लिए घर को घर बनाते है और क्या. अरे घर में काम ही क्या होता है.आजकल तो सभी घरों में अधिकतर झाड़ू पोंछे और बर्तन के लिए बाई लगी होती है. बस सिर्फ खाना ही तो बनाना होता है और थोड़ी बहुत साफ सफाई, बस और तुम फ्री.अच्छा...! तुम्हें कैसे पता कि उसके बाद हम फ्री..?






"कभी विद्यालय के शिक्षक और छात्राओं के साथ इसे यहाँ आने की अनुमति मिली थी। इसे यह जगह इतनी पसंद आई थी कि इसने अपनी सखियों के सामने कहा कि यह पुन: आएगी। इसके घर में घुमक्कड़ी का किसी को ना तो शौक था और ना इसे बाहर वालों के साथ कहीं जाने की अनुमति मिलती थी। बहुत ज़िद करने के बाद तो इसे यहाँ आने दिया गया था। उसी साल इसके पिता का तबादला उस इलाके से बहुत दूर हो गया। इसके अभियंता पति को यात्रा का शौक तो था, तभी तो यह पूरा देश घूम चुकी है।




पीली-नीली ओढ़ चुनरिया,हंस रही धरती रानी।
सारी दुनिया से लगे निराली,जैसे कोई महारानी।
पहनी फूलों का प्यारा हार,देखो फागुन आया है।




शिशिर ने बसंत को सौंपी थीं  
मौसम की मासूम धड़कनें
अवनि-अंबर में छट गईं
कोहरे की क़ाएम अड़चनें
फाल्गुन, चैत्र महीने

आज बस
सादर

गुरुवार, 23 फ़रवरी 2023

3678..अदब के साथ ..चलिये

 इसी से जान गया मैं कि वक़्त ढलने लगे 

मैं थक के छाँव में बैठा तो पेड़ चलने लगे

मैं दे रहा था सहारे तो एक हुजूम में था

जो गिर पड़ा तो सभी रास्ता बदलने लगे

-फरहत अब्बास शाह

गर यहीं दुनियादारी हैं तो बड़ी चुनौती भरा है खैर..हम सब निभाते भी है बड़ें अदब के साथ ..चलिये आज की लिंकों पर नज़र डालें..✍️

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किंतु न जानूँ पथ पनघट का

पंथ निहारा, राह बुहारी 

लेकिन तुम आए नहीं श्याम, 

नयन बिछाए की प्रतीक्षा 

बीत गए कई आठों याम !

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लो, कर लो बात ! मेरी आय बढ गई और मुझे पता ही नहीं

एक वातानुकूलित कमरा होता है ! जिसमें अंदर का बाहर और बाहर का अंदर कुछ पता नहीं चलता ! उस कमरे की एक दिवार पर एक बोर्ड़ लगा रहता है। उस पर एक आड़ी-टेढ़ी-वक्र

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वो होगा विश्वसनीय ?


काम बनाने की लोग 

कोशिश में अपनी ,

चलाते है जब तब

#झूठ की #मथनी ।

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चलो न मर जाते हैं


'चलो न मर जाते हैं' लम्बी सुनसान सर्पीली सी सड़क पर दौड़ते-दौड़ते थककर बीच सड़क पर पसरते हुए लड़की ने कहा. यह कहकर लड़की जोर से खिलखिलाई. चीड़ के घने जंगलों में जो धूप फंसी हुई थी लड़की..
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मिलते हैं अगले बुधवार को ..धन्यवाद
पम्मी सिंह 'तृप्ति'...✍️

बुधवार, 22 फ़रवरी 2023

3677..आ गई फिर से ..

 ।।प्रातःवंदन।।


जैसे चींटियाँ लौटती हैं बिलों में
कठफोड़वा लौटता है काठ के पास
वायुयान लौटते हैं एक के बाद एक
लाल आसमान में डैने पसारे हुए
हवाई-अड्डे की ओर !

ओ मेरी भाषा! मैं लौटता हूँ तुम में
जब चुप रहते-रहते अकड़ जाती है मेरी जीभ
दुखने लगती है मेरी आत्मा !

~ केदारनाथ सिंह

अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस (21 फरवरी) पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ। मातृभाषा हमारी सोच, भावनाओं संग संस्कृति का दर्पण होती है।इसी क्रम को आगे बढ़ते हुए आज की प्रस्तुति में शामिल रचनाएँ..✍️

किस्मत की लाना कांवर 

वासन्ती उपहार लिये कब,आओगे गांव हमारे मधुवन 
महकाने, हर्षाने जगती, आह्लादित करने वन, उपवन

व्यग्र शाख पर कोंपल,मुस्कान बिखेरें कैसे
बंजर मरू धरा का मन,हरा-भरा हो कैसे
कैसे आलोक बिखेरे,अंशुमाली कण-कण..
🌼

पंडिताई करने वालों को गरियाने का मौसम

 दयानंद पांडेय 

समझ नहीं पाता कि पंडितों से चिढ़ने वाले लोग , पंडितों के चक्कर में पड़ते क्यों हैं। ऐसे पंडित अगर पढ़े-लिखे होते तो यह और ऐसा काम भी नहीं करते। क्यों करते भला , इतना अपमानजनक काम। नहीं देखा कभी किसी

🌼

गहन प्रणय - -



मेज के आर पार पड़ी रहती है एक मुश्त
शाम की मद्धम रौशनी, चीनी मिट्टी
के दो ख़ाली प्यालों पर ओंठों के
अदृश्य निशान, रेत का इक
टूटा हुआ बांध, बुझी हुई
एक मोमबत्ती, कुछ
मुरझाए से लाल
🌼








ज़िन्दगी  भारी,  उधारी की तरह।

चैन के पल  हो गए हैं  भूमिगत
एक मुजरिम इश्तिहारी की तरह।..
🌼

ऐसा न था नाम कोई..,


आ गई फिर से दुबारा,

भूली बिसरी याद कोई।

कह सके हम जिसको अपना,

ऐसा न था नाम कोई॥

सपनों की सी बात लगती..

🌼

।।इति शम।।

धन्यवाद

पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍️

मंगलवार, 21 फ़रवरी 2023

3676 ...देखते ही देखते साल के दो महीने निकल गए

 सादर अभिवादन

21 फरवरी
देखते ही देखते
साल के दो महीने निकल गए
बाकी के दस भी निकल ही जाएंगे
जाते नहीं न लगती देर
बस बढ़ती जाती है उम्र
मंहगाई की तरह
रचनाएं देखिए.. इसी तरह काट-छांट कर लिखते रहे
तो कविता ज़रूर बन जाएगी
........तो चलें



अचानक मुक्ता का ख्याल प्रतिमा के ड्रेस की तरफ़ गया। उसने सबको सुनाई दे इतनी जोर से कहा,''वा...व्व...प्रतिमा! तुम को तो मेरी बेटी का ड्रेस बिल्कुल फिट आया। ऐसा लग रहा है, मानो तुम्हारा खुद का हो!"

हॉल में उपस्थित सभी लड़किया मुस्करा उठी। प्रतिमा की आंखों में आंसू भर आए। वह बोली,''आंटी, कपड़े तो इंसान का तन ढकने के काम आते है, लेकिन आपके दिए कपड़े ने तो मुझे सबके सामने नंगा कर दिया!!"




गाए रुन-झुन, रिन-झिन, निशदिन
हँसता हिम शिखरों के जैसा,
रत्ती भर भी जगह न छोड़े
बसा पुष्प में सौरभ जैसा !



ना फूल खिले,
ना खिलने के आसार!
ठूंठ वृक्ष, ठूंठ रहे सब डाली,
पात -पात सब सूख रहे,
सूख रही हरियाली,
ना बूंद गिरे,
ना ही, बारिश के आसार!




उनके चेहरे के मुखौटे का पता हमको भी था
जानकर लेकिन हमें अनजान हो जाना पड़ा.

आपकी झोली बड़ी होती गई, भरती गई
आप निर्धन थे मगर धनवान हो जाना पड़ा.




धर्म ग्रंथ मन्दिर कल पूजे
बने बेहया बिसर गए
राम चरित मानस अमृत घट
राहु केतु अब जहर लगे
नेता जी एक दर्पण ले लो
बीच बीच में देखो रूप।




रिक्शेवाला बात ही कर रहा था कि फोन की घंटी बजने लगी,
वो अपने घर बात करने लगा..

"अरे घबराओ मत! सवारी उतार दें बस। आ रहे हम। तुम घाव के जगह पर
रूमाल लगा के अँगोछा से बाँध दो.. खून रुक जाएगा,
तैयारी रखो, आते ही अस्पताल चलेंगे,
रिक्शेवाले के सामने "नया खर्चा" मुँह फाड़े खड़ा था।

आज बस
सादर