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बुधवार, 22 फ़रवरी 2023

3677..आ गई फिर से ..

 ।।प्रातःवंदन।।


जैसे चींटियाँ लौटती हैं बिलों में
कठफोड़वा लौटता है काठ के पास
वायुयान लौटते हैं एक के बाद एक
लाल आसमान में डैने पसारे हुए
हवाई-अड्डे की ओर !

ओ मेरी भाषा! मैं लौटता हूँ तुम में
जब चुप रहते-रहते अकड़ जाती है मेरी जीभ
दुखने लगती है मेरी आत्मा !

~ केदारनाथ सिंह

अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस (21 फरवरी) पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ। मातृभाषा हमारी सोच, भावनाओं संग संस्कृति का दर्पण होती है।इसी क्रम को आगे बढ़ते हुए आज की प्रस्तुति में शामिल रचनाएँ..✍️

किस्मत की लाना कांवर 

वासन्ती उपहार लिये कब,आओगे गांव हमारे मधुवन 
महकाने, हर्षाने जगती, आह्लादित करने वन, उपवन

व्यग्र शाख पर कोंपल,मुस्कान बिखेरें कैसे
बंजर मरू धरा का मन,हरा-भरा हो कैसे
कैसे आलोक बिखेरे,अंशुमाली कण-कण..
🌼

पंडिताई करने वालों को गरियाने का मौसम

 दयानंद पांडेय 

समझ नहीं पाता कि पंडितों से चिढ़ने वाले लोग , पंडितों के चक्कर में पड़ते क्यों हैं। ऐसे पंडित अगर पढ़े-लिखे होते तो यह और ऐसा काम भी नहीं करते। क्यों करते भला , इतना अपमानजनक काम। नहीं देखा कभी किसी

🌼

गहन प्रणय - -



मेज के आर पार पड़ी रहती है एक मुश्त
शाम की मद्धम रौशनी, चीनी मिट्टी
के दो ख़ाली प्यालों पर ओंठों के
अदृश्य निशान, रेत का इक
टूटा हुआ बांध, बुझी हुई
एक मोमबत्ती, कुछ
मुरझाए से लाल
🌼








ज़िन्दगी  भारी,  उधारी की तरह।

चैन के पल  हो गए हैं  भूमिगत
एक मुजरिम इश्तिहारी की तरह।..
🌼

ऐसा न था नाम कोई..,


आ गई फिर से दुबारा,

भूली बिसरी याद कोई।

कह सके हम जिसको अपना,

ऐसा न था नाम कोई॥

सपनों की सी बात लगती..

🌼

।।इति शम।।

धन्यवाद

पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍️

5 टिप्‍पणियां:

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