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गुरुवार, 23 फ़रवरी 2023

3678..अदब के साथ ..चलिये

 इसी से जान गया मैं कि वक़्त ढलने लगे 

मैं थक के छाँव में बैठा तो पेड़ चलने लगे

मैं दे रहा था सहारे तो एक हुजूम में था

जो गिर पड़ा तो सभी रास्ता बदलने लगे

-फरहत अब्बास शाह

गर यहीं दुनियादारी हैं तो बड़ी चुनौती भरा है खैर..हम सब निभाते भी है बड़ें अदब के साथ ..चलिये आज की लिंकों पर नज़र डालें..✍️

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किंतु न जानूँ पथ पनघट का

पंथ निहारा, राह बुहारी 

लेकिन तुम आए नहीं श्याम, 

नयन बिछाए की प्रतीक्षा 

बीत गए कई आठों याम !

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लो, कर लो बात ! मेरी आय बढ गई और मुझे पता ही नहीं

एक वातानुकूलित कमरा होता है ! जिसमें अंदर का बाहर और बाहर का अंदर कुछ पता नहीं चलता ! उस कमरे की एक दिवार पर एक बोर्ड़ लगा रहता है। उस पर एक आड़ी-टेढ़ी-वक्र

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वो होगा विश्वसनीय ?


काम बनाने की लोग 

कोशिश में अपनी ,

चलाते है जब तब

#झूठ की #मथनी ।

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चलो न मर जाते हैं


'चलो न मर जाते हैं' लम्बी सुनसान सर्पीली सी सड़क पर दौड़ते-दौड़ते थककर बीच सड़क पर पसरते हुए लड़की ने कहा. यह कहकर लड़की जोर से खिलखिलाई. चीड़ के घने जंगलों में जो धूप फंसी हुई थी लड़की..
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मिलते हैं अगले बुधवार को ..धन्यवाद
पम्मी सिंह 'तृप्ति'...✍️

6 टिप्‍पणियां:

  1. आज का अंक जबरदस्त
    आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभात! चौंका देने वाले शीर्षकों से सजी अनूठी बुधवारीय प्रस्तुति में 'मन पाए विश्राम जहाँ' को स्थान देने हेतु आभार पम्मी जी!

    जवाब देंहटाएं
  3. आदरणीय पम्मी मेम,
    मेरी इस लिखी रचना " वो होगा विश्वसनीय ?" इस मंच में साझा करने के लिए बहुत धन्यवाद एवम आभार ।
    सादर ।

    जवाब देंहटाएं

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