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बुधवार, 30 नवंबर 2022

3593 ...हंसी-खुशी, दुख-आंसू तब तक जब तक भी यह जीवन है

सादर नमस्कार
जब एक मंत्री जी के दफ़्तर के बाहर बैठे 'चपरासी सर'' से पूछा गया कि 
भाई आप भीतर भेजने के लिये धन की आशा क्यों रखते हैं।

'चपरासी सर' ने दार्शनिक अंदाज़ में बताया कि 
उन्हें यह सुविधा हनुमान चालीसा में दी गयी है।
पूछने वाला चकित... पूछ ही बैठा कि बताओ भाई
 संत तुलसीदास आपके लिये यह प्रबंध कब कर गये।
'चपरासी सर' ने कहा - आपको याद है कि 
स्वामी तुलसीदास ने हनुमान चालीसा में कहा है...

'' राम दुआरे तुम रखवारे, होत न आज्ञा बिनु पैसा रे''

यानी कि हनुमान जी की मर्ज़ी के बिना 
प्रभु राम के दर्शन नही हो सकते, ठीक वैसे ही...
अब रचनाएँ पढ़िए



संवाद ही है एक सेतु
संबंधों को बनाने, बढ़ाने
और उसे गहराने का
मधुर से मधुतर बनाने का  |

संवादहीनता एक शून्य
बड़ा नहीं होने देंगे
भर देंगे अपनी बातों से
उदास नहीं होने देंगे  |




मुंह में ज़ुबान तो रखता है, बस बोलता कोई नहीं,
सांप सीढ़ी के बीच झूलते हैं सभी यहां सुबह शाम,

सफ़ेद काले चौकोरों में खड़े हैं, नक़ाब पोश मोहरें,
मौक़ा मिलते ही लोग कर जाएंगे, खेल को तमाम,




रात के दूसरे पहर में रामा को प्रसव पीडा उठी, और थोडी ही देर में उसने एक नन्ही सी अबोध बछिया को जन्म दिया। सभी गायें यह सोच कर रंभानें लगीं कि शायद कोई अपने घर से निकल इस नन्ही सी बछिया और रामा की मदद कर दे। कामधेनु सही थी, मोहल्ले के कई लोग रात के एक बजे भी इन गायों की आवाज सुन घर से निकल आये। नन्ही सी बछिया को देख लोगो को यह समझते देर ना लगी कि यह नवजात बछिया है। कुछ ही देर में एक दो लोग गुड रोटी लाकर रामा को खिलाने लगी, एक ने आकर नन्ही बछिया को मोटे से बोरे से लपेट दिया। सभी गायें तो क्या मोहल्ले भर के लोग भी इस नवजन्मा को आशीष दे रहे थे।



कविगण रास कवित से खेले
भूतल नभ तक के फेरे
अंबर नील भरा सा दिखता
रूपक गंगा के घेरे
मोहक कल्प तरू लहराए
रचना का डोला हिलता।।




बढ़े हाथ को थामा जिसने
पग-पग  में जो सम्बल  भरता,  
वही परम हो लक्ष्य हमारा
अर्थवान जीवन को करता !




चमकती सफेद चाँदी
के रंग में या फिर
स्वर्ण की चमक से
ढले हुऐ हिमालय
कवि सुमित्रानंदन की
तरह सोच भी बने
क्या जाता है
सोच लेने में
वरना दुनियाँ ने
कौन सी सहनी है
हँसी मुस्कुराहट
किसी के चेहरे की




हंसी-खुशी, दुख-आंसू तब तक
जब तक भी यह जीवन है ।।
फिर अनंत तक का सफर अनवरत
टूटा हर एक बंधन है ।।

तिरस्कार, उपहास, मान के
सारे किस्से बेमानी
गागर सागर में डूबी तो
मिलता पानी से पानी
.....
अब बस
सादर


8 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर प्रस्तुति और संकलन, मुझे शामिल करने हेतु असंख्य धन्यवाद ।

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  2. आदरणीय सर , सादर प्रणाम । आज की प्रस्तुति विविध रचनाओं से परिपूर्ण अत्यंत सुंदर लगी । हर एक रचना अत्यंत भावपूर्ण , मन को कोई न कोई संदेश देती हुई और मानवता और प्रेम की ओर अग्रसर करती हुई है । आदरणीया अपर्णा मैम की लघुकथा "रामा " विशेष रूप से हृदय को स्पर्श कर गई । पूरे संसार के लिए माँ जैसी ममता रखने वाली गौमाता की व्यथा और मानव की क्रूरता और उदारता, दोनों का ही सुंदर चित्रण और कहानी का सुखांत होना, सब कुछ ही अत्यंत सुंदर और आनंदकारी लगा । आदरणीया वर्षा मैम की यह सुंदर आध्यात्मिक रचना देख कर मन विह्वल हो गया । भगवान जी ने उन्हें अपने पास बुला कर , उन्हें सभी पीड़ा से मुक्ति दे दी ,उसी तरह जैसा उन्हों ने अपनी रचना में लीखा है । वे अपनी रचनाओं में सदैव अमर रहेंगी । आप सबों को एक बार पुनः प्रणाम ।

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  3. बहुत सुंदर सरस रचनाओं से सज्जित अंक ।

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  4. सार्थक भूमिका के साथ एक भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए आभार आपका।वर्षा जी को आजके अंक में देखकर आँखें नम हो गई।जिस समय उन्होने जीवन दर्शन की ये रचना लिखी होगी उन्हें आभास भी नहीं हुआ होगा कि उनका जीवन कविता के दर्शन की भाँति होने वाला है।उनकी पुण्य स्मृति को सादर नमन।अपने सृजन में वे सदा रहेंगी।सभी भावपूर्ण रच्ग्नाओं के रचनाकारो हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं।

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