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गुरुवार, 4 अगस्त 2022

3475...इमारत का दिल बहुत धड़कता है, जब कोई उसकी सीढ़ियाँ चढ़ता है...

शीर्षक पंक्ति: आदरणीय ओंकार जी की रचना से। 

सादर अभिवादन।

गुरुवारीय अंक में पाँच रचनाओं के लिंक्स लेकर हाज़िर हूँ।

तेरी तस्वीर

जब भी मैं कहीं जाती

तेरी यादों मैं खोई रहती

इस तरह कि मैं भूल ही जाती

क्या करने आई थी क्या कर डाला |

गीतिका:- चाँद अब निकोर है।

मन जब निराश हो चले

तब कालिमा अघोर है।

सहचर सुमित्र साथ हो।

आनंद तब अथोर है।।

६५९.इमारत

इस इमारत में कोई नहीं रहता,

यह बस कूदने के काम आती है,

इमारत का दिल बहुत धड़कता है,

जब कोई उसकी सीढ़ियाँ चढ़ता है.

 हिंदी पहेलियाँ

गोल गोल होती हूं मैं पर

लंबी भी हो सकती हूं,

दोनों लोगों संग नाच-नाच कर

अपना भेष बदलती हूँ। ।

 तिरंगा

ये वैधव्य क्या कहूँ इसे... ये सावन है एक सच्चे सिपाही की प्रेमिका का. मेरे मन ने २१ तोपों की सलामी देते हुए काकी को बस इतना ही समझाया..."तेरी इन चूड़ियों के हरे रंग से ही तो तिरंगा बनता है."

*****

फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव 


9 टिप्‍पणियां:

  1. आनन्दित कर गया आज का अंक
    आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुंदर सराहनीय प्रस्तुति ।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुंदर लिंक सुंदर भूमिका, सुंदर अंक।
    सभी रचनाएं बहुत आकर्षक।
    सभी रचनाकारों को बधाई।
    मेरी रचना को पाँच लिकों पर स्थान देने के लिए हृदय से आभार।
    सादर सस्नेह।

    जवाब देंहटाएं
  4. एक से बढ़कर एक लिंक, रोली अभिलाषा की रचना ने दिल जीत लिया। सभी को हार्दिक बधाई।
    मेरी पहेलियों को भी जगह देने के लिए सादर आभार

    जवाब देंहटाएं

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