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शुक्रवार, 5 अगस्त 2022

3476......गति प्रबल पैरों में

शुक्रवारीय अंक में
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
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बहना नदी का उल्टे पाँव,
दूर तक भँवर, दीखते नहीं नाव।
डूबती सभ्यताओं की
साँसों में भर रही है रेत,
दलदली किनारों पर
सर्प,वृश्चिक,मगरों से भेंट,
काई लगी कछार पर
फिसले ही जा रहे गाँव
कैसे बचे प्राण,दीखते नहीं नाव।
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आइये आज की रचनाएं पढ़ते हैं-

प्रेम केवल ख़ुद को ही देता है और ख़ुद से ही पाता है। प्रेम किसी पर ‍अधिकार नहीं जमाता, न ही किसी के अधिकार को स्वीकार करता है। प्रेम के लिए तो प्रेम का होना ही बहुत है। -ख़लील जिब्रान


रास्ते में
प्रेम के कराहने की 
आवाज़ सुनी 
रुका 
दरवाजा खटखटाया 
प्रेम का गीत बाँचा
जब तक बाँचा 
जब तक 
प्रेम उठकर खड़ा नहीं हुआ 
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इन्सान जीवन दर्शन की खोज में दर दर भटकता है लेकिन खोज नहीं पाता है। इन्सान जो सोचता है कि दर्शन उसे खोजने से मिलेगा उसका यह भ्रम अक्सर टूट जाता है। दर्शन खोजने से नहीं मिलता है बल्कि दर्शन आत्मचेतना से अनुभव किया जाता है।

हाथ की लकीरों को
ज़माना पढ़ता रहा हँसता रहा
कितना बीता, कितना बचा?
कितना ज़ख़्म और हाथेली में समाएगा?
यह मुँहज़ोर तक़दीर, न बताती है न सुनती है
हर पल मेरी हथेली में, एक नया दर्द मढ़ती है।  
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 सृजनात्मक विचारों को प्रेषित करने के  अनेक
माध्यम हैं , उन पर गहराई से तब तक विचार करना 
 जब तक कि वे हमारी अनुभूति में जड न जमा लें और उसेकम शब्दों में अभिव्यक्त करने की कला है।


पुराने ख़त

परतों में समेटे

यादों के पुष्प ।


काली घटाएं

गाँव गली में गूँजे

राग मल्हार।

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कविता वह सुरंग है जिसमें से गुज़र कर मनुष्य

 एक विश्व को छोड़ कर दूसरे विश्व में प्रवेश करता है ।
–रामधारी सिंह दिनकर जी की उक्ति कितनी

 सटीक है न..।

जिसमें अपना भला हो


जाना मेरे आस-पास चहुँ ओर है तू।
दिखे जहाँ कमजोर वही दृढ़ छोर है तू।

ना चाहा फिर बल इतना मैं कभी पाऊँ ।
तेरे होने के एहसास को खो जाऊँ ।

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पुराने संदूक़ों में,
गैरज़रूरी सामान की तरह
पड़ी रहती हैं बंद।
स्मृतियाँ मरतीं नहीं,
धँस जाती है।

लोहे का घर


चलना हमारा.काम है

बाहर का दृश्य बहुत सुहाना है। हरी भरी धरती, कहीं खेत चरते चौपाए, कहीं भरे पानी मे डूबे धान, बरश चुके बादलों से खाली हुआ साफ आसमान, हरे/घने पेड़, छा रहा अँधेरा, जा रहा उजाला और घास का भारी गठ्ठर सर पर लादे, मेड़-मेड़ जा रही, भउजाई!

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आज के लिए बस इतना ही
कल का विशेष अंक लेकर
आ रही हैं
प्रिय विभा दी।




13 टिप्‍पणियां:

  1. अप्रतिम अंक
    आभार सखी
    सादर

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  2. बहुत सुन्दर पुष्प गुच्छ सी प्रस्तुति में सृजन को सम्मिलित करने के लिए एवं शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ जी जयन्ती पर उनकी लेखनी से निःसृत अनमोल सृजन को पढ़वाने के आपका हार्दिक आभार । सस्नेह सादर वन्दे !

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  3. संग्रहणीय प्रस्तुति, बहुत अच्छी रचनाओं से परिचित कराया।
    सादर आभार

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुंदर हलचल प्रस्तुति।

    जवाब देंहटाएं
  5. शिवमंगल सिंह सुमन जी को याद करते हुए सुंदर, सरस संकलन । बधाई श्वेता जी ।

    जवाब देंहटाएं
  6. आज की विशेष प्रस्तुति मन को पुरानी यादों में ले गयी । शिव मंगल सिंह सुमन की कविता आप लोग
    भूले तो नहीं होंगे ---
    हम पंछी उन्मुक्त गगन के
    पिंजर बद्ध न गा पाएँगे
    कनक तीलियों से टकरा कर
    पुलकित पँख टूट जाएँगे ।
    1986 -87 में मैंने 7वीं कक्षा के बच्चों को पढ़ायी थी । मुझे बहुत पसंद थी । शिवमंगल सिंह सुमन जी की रचनाएं पढ़ना और सुनना आज के दिन को सार्थक बना गया है ।
    आज की सभी रचनाओं के लिंक बेहतरीन रहे .... चाहे वो हाइकु रहे या क्षणिकाएँ या फिर प्रेम को फफूँद से बचाने का प्रयास हो ,या फिर खुद में आत्म विश्वास होने की बात ,और लोहे के घर में आस पास का अवलोकन .... सब कुछ कुछ न कुछ कहता है ।
    सुंदर प्रस्तुति के लिए बधाई और आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  7. उत्कृष्ट लिंकों एवं शिवमंगल सिंह सुमन जी की लेखनी से निसृत कविता के शानदार वीडियो के साथ लाजवाब प्रस्तुति । मेरी रचना को भी यहाँ स्थान देने हेतु तहेदिल से धन्यवाद प्रिय श्वेता जी !
    सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं ।

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत सुंदर अंक सुमन जी की स्मृतियों को जगाती हुई।

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत सुंदर लिंक संयोजन
    सभी रचनाकारों को बधाई
    मुझे सम्मलित करने का आभार

    सादर

    जवाब देंहटाएं

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