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सोमवार, 21 फ़रवरी 2022

3311 ...क्या चाणक्य ने अखण्ड- भारत कीस्थापना के लिए, हिंसा का सहारा नहीं लिया

 सादर नमन

द्वितीय पक्ष की रचनाएँ..
एक ही ब्लॉग से
श्री ब्रजेन्द्र नाथ जी का ब्लॉग "मर्मज्ञ" से
रचनाएँ .....



देवघर में बाबा  बैजनाथ,
बुंडू में  रहती माता देउली।
रजरप्पा में छिन्नमस्तिका
पारसनाथ में जैन तपस्थली।

कण - कण में  माँ तेरी कहानी है।
झारखंड की मिट्टी में रवानी है।




अनहद को सुनने को आतुर
प्राण - प्राण जब विकल हो उठे।
अमृत आनंद का हो संचरण
हिय गह्वर में कमल खिल उठे।



शिशिर अब विदा ले रहा,
बसंत के आने की आहट।
मन्मथ के मृदुल राग ले
मदिर समीर की अकुलाहट।
हर्ष का सर्वत्र बसेरा है।
निकला नया सवेरा है।




क्या चाणक्य ने अखण्ड-
भारत-स्थापन के लिए,
हिंसा का सहारा नहीं लिया,
विद्रोह-दमन के लिए?

या कृष्ण ने नहीं दी सीख
छल का प्रतिउत्तर दो छल से,
अगर साध्य है, दुर्भेद्य करना
राष्ट्र को अरि से, खल से।




क्षमा, कृपा , समता की रस्सी,
ईश भजन हो सारथी,
विराग, संतोष का कृपाण हो,
युद्ध में बने रहे परमार्थी।



इसलिए मित्र बनाने से पहले
मित्रता निभाने की सोचिए।
बार-बार त्याग और तप
की लौ पर तप्त कीजिये।
फिर मित्र बनाने पर विचारिये।
एक बार मित्र बन जाने पर,
मित्रता निभाने की सोचिए।
.....
जब तक हम-क़दम प्रारम्भ नहीं होता
तव तक ज्ञात-अज्ञात ब्लॉग की रचनाएँ ही दी जाएगी
.....
मुझमें भारी-भरकम प्रस्तुति बनाने की माद्दा नहीं न है
अतः आज बस
सादर

13 टिप्‍पणियां:

  1. प्रिय दिव्या, बहुत बढ़िया प्रस्तुति बनाई आपने। और भारी भरकम क्यों नहीं ये भी बहुत वजनदार प्रस्तुति है। आदरणीय सर को प्रतिलिपी में पहली बार पढ़ा। उनकी दो पुस्तकें भी पढ़ी मैंने। बहुत अच्छा लिखते है। उनको ढेरों बधाइयां और शुभकामनाएं। पांच लिंक का आज का दिन उनके नाम रहा। पाठकों को एक अत्यन्त विनम्र और विद्वान रचनाकर से परिचय का अवसर मिल रहा। बृजेंद्र सर को पुनः बधाई। और आपको भी आभार और शुभकामनाएं इस रोचक प्रस्तुति के लिए। हमकदम का इंतजार है 🙏🌷🌷💐💐🎊🎊🎉

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  2. उत्तर
    1. आदरणीया रेणु जी, आपने इतने सुंदर और आत्मीयता से ओतप्रोत शब्दों से मेरा परिचय कराकर, और मेरी रचनाओं ओर अपने विचार व्यक्त कर अभिभूत कर फ़िया है। हमलोग अपने सराहना के शब्दों में कंजूसी कर जाते है। जब कोई रचना अच्छी लगे, तो उसके लिए अपने शब्द सुमन की टोकरी उड़ेल दें। किसी भी रचनाकार के लिए इससे बड़ा कोई पुरस्कार नहीं होता। आप अच्छी रचनाओं पर त्वरित, सटीक और विस्तृत प्रतिक्रिया देती रही है। मेरी रचनाओं पर आपकी प्रतिक्रिया के लिए किन शब्दों में आभार व्यक्त करुं, समझ नहीं आ रहा है। कभी - अभी आभार शब्द भी छोटा पड़ जाता है। हार्दिक स्नेह!--ब्रजेंद्रनाथ

      हटाएं
  3. शिशिर अब विदा ले रहा,
    बसंत के आने की आहट।
    मन्मथ के मृदुल राग ले
    मदिर समीर की अकुलाहट।
    हर्ष का सर्वत्र बसेरा है।
    निकला नया सवेरा है।
    शानदार अंक..
    आभार दिबू
    सादर...

    जवाब देंहटाएं
  4. आदरणीया यशोदा जी, नमस्ते👏! आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया मुझे सृजन के लिए प्रेरित करती रहेगी। हार्दिक आभार!--ब्रजेंद्रनाथ

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  5. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  6. सुंदर सृजन
    हार्दिक शुभकामनाएं
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  7. प्रिय दिव्या, आज की प्रस्तुति ना देखती तो बहुत ही अनमोल व सार्थक रचनाओं से अपरिचित रह जाती। आपको बहुत बहुत धन्यवाद। आदरणीय ब्रजेंद्रनाथजी के ब्लॉग पर बहुत सुंदर रचनाएँ हैं, धीरे धीरे सभी पढूँगी।
    आज आप जो रचनाएँ यहाँ लाई हैं वे सागर के चंद मोती हैं, अभी और मोती खोजने हैं। यहाँ शामिल सभी रचनाएँ संग्रहणीय हैं। 'छिन्न संशय' और 'मित्रता' तो विशेष पसंद आईं। इतनी सुंदर प्रस्तुति के लिए आपको हृदय से धन्यवाद व स्नेह।
    आदरणीय ब्रजेंद्रनाथ जी, आपको सादर प्रणाम एवं बधाई। आप अपनी और भी रचनाएँ साझा करते रहें, आपसे हम भी सीखते रहें यही शुभकामनाएँ।

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  8. सराहनीय संकलन।
    बधाई एवं शुभकामनाएँ।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  9. हर्ष का सर्वत्र बसेरा है।
    निकला नया सवेरा है।

    कण - कण में माँ तेरी कहानी है।
    झारखंड की मिट्टी में रवानी है।

    या कृष्ण ने नहीं दी सीख
    छल का प्रतिउत्तर दो छल से

    क्षमा, कृपा , समता की रस्सी,
    ईश भजन हो सारथी,

    इसलिए मित्र बनाने से पहले
    मित्रता निभाने की सोचिए।

    -जीवन के सभी रंगों से मिलना हुआ
    साधुवाद

    जवाब देंहटाएं

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