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रविवार, 19 दिसंबर 2021

3247...मौंके पर डँसना जो मंज़ूर न होता उनको...

 शीर्षक पंक्ति: आदरणीय दिगंबर नासवा जी की रचना से। 

 

सादर अभिवादन। 

रविवारीय अंक लेकर हाज़िर हूँ। 

 आइए अब आपको आज की पसंदीदा रचनाओं की ओर ले चलें-

दो दुरुस्त किए गए चुनावी अशआर

हमें जो उम्र अता की गयी थी जीने को

वो हमने जान बचाने में खर्च कर डाली

सैयद सरोश आसिफ़

एक वोटर की आपबीती -

हमें जो वोट का हक़ था मिला व्यवस्था से

वो हमने चोर-लुटेरों पे खर्च कर डाला

 हो तलवार तो हम ढाल में ढाले जाते ...




सिंदूरी सपने फिर चहके

दीप जले मन आँगन।

बिन बारिश के बरसा है कब

प्रेम भरा यह सावन।

आस मिलन की राह देखती

छोड़ रही तरुणाई।

तारों के....

*****

आज बस यहीं तक 
फिर मिलेंगे आगामी गुरुवार। 

रवीन्द्र सिंह यादव 

7 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर प्रस्तुति
    आभार..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. सुंदर प्रस्तुति ।
    सार्थक लिंक्स चयन ।
    सभी रचनाकारों को बधाई।
    सादर सस्नेह।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।सभी रचनाएँ अति उत्तम।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुंदर प्रस्तुति। मेरी रचना को मंच पर स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय।

    जवाब देंहटाएं
  5. अत्यंत महत्वपूर्ण और भावपूर्ण प्रस्तुति आदरणीय रवीद्र भाई। गजल, कविता और कहानी सभी शानदार। सभी रचनाकारों को बधाई और शुभकामनाएं। आपको भी शुभकामनाएं। अपको भी ढेरों शुभकामनाएं और आभार इस सुंदर लिंक संयोजन के लिए 🙏🙏

    जवाब देंहटाएं
  6. स्थ्सुन्दर संकलन ...
    आभार मेरी गज़ल को जगह देने के लिए ...

    जवाब देंहटाएं

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