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सोमवार, 20 दिसंबर 2021

3248 --- ब्रेक के बाद का ओवर डोज़ .......पाक्षिक हलचल ....

  नमस्कार !  मैं  संगीता स्वरुप हाज़िर हूँ  ब्रेक के बाद हाँलांकि मैंने लिया तो था दिवाली तक ब्रेक लेकिन थोड़ा लंबा हो गया , चलिए देर आये दुरुस्त आये । आज की हलचल में केवल सब कुछ नया नया नहीं है , यानि कि आज नई पुरानी पोस्ट को मिला कर हलचल तैयार की गई है ..... 

तो जायज़ा लेते हैं कि किस किस पोस्ट से हम रु ब रु होते हैं ......

2021 का साल भी समाप्ति की ओर है .....  कुछ ही दिनों में 2022 का आगमन होने वाला है ...... हर वर्ष नए साल के  इन्तज़ार में कुछ नई उम्मीदें जन्म लेतीं है , सदा उर्फ सीमा जी ने पिछली  दिसम्बर को जो लिखा था शायद आज भी कुछ वैसी ही ख्वाहिश हो ....


जाने की तैयारी में है 
दिसंबर 20 का 
उम्मीदों की पिटारी लिये

अभी आपने पिछले वर्ष की उम्मीदें पढ़ीं  .अब मैं ले चल रही हूँ और भी पीछे .......२०१६ में सुधा जी नव वर्ष के आगमन पर क्या सोच रहीं थीं .....पढ़ते हैं ......

"नववर्ष मंगलमय हो"



                  नववर्ष के शुभ आगमन पर,
                  शुभकामनाएं हैं हमारी।
                  मंगलमय जीवन हो सबका,
                  प्रेममय दुनिया हो सारी।


नए वर्ष के आगमन पर  हर साल जो ठण्ड  पड़ती है उसका अंदाज़ा दिल्ली वालों को तो बखूबी है । देश के बहुत से भागों में कम ठण्ड हो सकती है , लेकिन यदि ऐसी सर्दी में बच्चों के मन में गरीबों के लिए कुछ करने संकल्प हो तो क्या बात .... इसी को उजागर किया है अनिता सुधीर जी ने अपनी लघु कथा में  ....


शीत लहर का  प्रकोप चरम सीमा पर था । शासन के आदेश अनुसार सभी विद्यालय बंद हो गये थे ।बच्चों की छुट्टियाँ थी इतनी ठंड में सभी  काम निबटा  लेकर नीता  रज़ाई  में घुसी ही थी ,कि दरवाज़े  की घंटी बजी ।

इतनी ठंड में  कौन आया ,नीता बड़बड़ाते हुए उठी ।


ठंड में हम गर्मियों की बात करें तो खुद ही गर्मी का आभास हो जाता है ,ऊपर से ढपली की थाप और झुनझुने की आवाज़  क्या गणित प्रस्तुत करती है इसे बता  रही हैं कविता रावत जी अपनी इस कहानी में ---

 गर्मियों के दिन थे। सुबह-सुबह सेठ जी अपने बगीचे में घूमते-घामते ताजी-ताजी हवा का आनन्द उठा रहा थे। फल-फूलों से भरा बगीचा माली की मेहनत की रंगत बयां कर रहा था। हवा में फूलों की भीनी-भीनी खुशबू बह रही थी। सेठ जी फल-फूलों का बारीकी से निरीक्षण कर रहे थे। विभिन्न प्रकार के पौधे और उन पर लदे फूल, पत्तियों की ओर उनका ध्यान आकृष्ट हो रहा था। 

इस गणित के प्रश्नों को हल करते करते बेरोज़गार से पार्टी प्रवक्ता बन जाते हैं लेकिन फिर एक प्रश्न ज़ेहन में उभरता है कि किसी के दर्द को चाहे वो प्रकृति हो या इंसान जान जाओगे तो क्या ?  इसी भावना को सशक्त शब्द दिए हैं कविता भट्ट जी ने ----



बिल्कुल सही कहा आपने कविता जी , कर तो कुछ भी नहीं सकते , अब देखिए न राजीव जी ने एक सच्ची घटना को अपने शब्दों में कैसे बयाँ किया है .....  क्या कोई कुछ कर सका ?  पढ़िए उनकी कविता .......


कई बार देखा है,

लोग झिड़क देते हैं उन्हें।

बच्चे, जवान, प्रौढ़-

हर उम्र का व्यक्ति -

बस झिड़कता है उन्हें। 

कभी किसी के आगे

हाथ नहीं फैलाते वे


काश , सच ही कुछ मन परिवर्तित हो जाता और जिसकी तलाश में कोई  घूम रहा है वो मिल जाता , सब वक़्त की बात है किस पर कैसा वक़्त आता है नहीं पता फिर भी जीवन है तो उम्मीद भी है । इस वक़्त को अपने शब्दों में परिभाषित किया है ऋता शेखर ' मधु '  ने  ----


ये वक़्त भी क्या शय है

कितना कुछ समेटती

कितना कुछ बिखेरती

जाने कितने वादे किए

सपनों की टेकरी में

जाने क्या क्या इरादे  दिए .

और इस वक़्त की बात जहाँ हो तो अचानक ही ख्याल आ जाता है हमारी विशेष टिप्पणीकार रेणु का  जिनका अभी कुछ समय पहले ही काव्य संग्रह आया है "  समय साक्षी रहना तुम "
तो आज  की  इस हलचल में यह कविता तो  आनी ही चाहिए ----- ,

समय साक्षी रहना तुम -


अपने अनंत प्रवाह में बहना तुम ,
 पर समय साक्षी रहना   तुम !!

उस पल के , जो  सत्य सा अटल ,
 ठहर गया है भीतर   गहरे ;
रूठे सपनों से मिलवा जिसने  
भरे पलकों में रंग सुनहरे ;
यदा -कदा  बैठ साथ मेरे  
उन यादों के हार पिरोना तुम   

वक़्त साक्षी है कि उम्र बढाती  है तो  और यौवन ढलता है , रूप कुछ कम होने लगता है लेकिन कुसुम जी की ये रचना पढ़ रूप और यौवन दोनो ही महसूस होने लगते हैं  ज़रा आप भी गौर फरमायें  

खन खनन कंगन खनकते, पांव पायल बोलती हैं।

झन झनन झांझर झनककर रस मधुर सा घोलती हैं।।


और लीजिये बात रूपसी की हो रही थी और मेरी मुलाकात हो गयी योगेश शर्मा जी से ........ वो  किससे बतिया रहे हैं ज़रा ब्लॉग पर पहुंच कर ही पढ़िए -----



मैं तुमसे क्या कहूँ
मैं तुम पे क्या लिखूँ

क्या ये लिखूं कि लगा था
तुम्हें देख के पहली बार
कि जीवन अब तक जिया ही नहीं
रौशनी पायी, देखे मौसम, महसूस की थी हवा
पर रूह तक ऐसा असर हुआ ही नहीं


इतनी श्रृंगार रस की कविता के बाद  मन तो नहीं होता कि यथार्थ से रु ब रु कराया जाय , लेकिन समाज के हर  चेहरे को देखना ज़रूरी है और आइना तो चौथा खम्बा ही दिखा सकता है ........ 
हमारे आस पास कैसी मानसिकता के लोग हैं यह जानना सबके लिए  महत्त्वपूर्ण है ..


कर्नाटक विधानसभा में कांग्रेस विधायक ने जब बलात्कार रोक नहीं सकती तो उसका आनंद लो जैसे घृणास्पद और नीचतापूर्ण बात कही तो यह पितृसत्तात्मक समाज की मानसिकता का जयघोष ही था। यदि ऐसा नहीं होता तो उस विधानसभा के माननीय अध्यक्ष के चेहरे पर मुस्कुराहट नहीं होती। और उसी विधानसभा में बैठे सभी माननीयों के ठहाके नहीं गूंजते। 


और इन सियासी लोगों के क्या दाँव पेंच होते हैं  जानिए आकिब जावेद की इस ग़ज़ल में .....

ये सियासत की ‎ही ‎ख़ुमारी ‎है ‎


नाम लब पे यूँ उसका जारी है,
ज़िन्दगी  साथ  में  गुज़ारी  है।

نام لب پہ یوں اس کا جاری ہے,
زندگی  ساتھ  میں  گزاری  ہے!

वक़्त बे-वक़्त जब सियासत हो,
ये सियासत  की  चाटुकारी है।

और  अंत में आज की विशेष प्रस्तुति ........

आडम्बरों  पर , अंधविश्वासों पर शोध कर लोग पुरस्कार पा जाते हैं  , नाम होता है , न जाने कहाँ कहाँ गोष्ठियों का आयोजन होता है लेकिन क्या सच ही कोई सुधार करने की नीयत से कोई काम किया जाता है या बस सब दिखावा है ...... पढ़िए एक आक्रोशित मन की भावना से निकले शब्द जो बहुत कुछ कहना  चाह  रहे हैं ....

हाशिये पर पड़े 
उपेक्षितों को 
अंधविश्वास से मुक्त कर
स्वस्थ वातावरण प्रदान करने की 
मुहिम में जुटे हुए अनगिनत लोग
संकरी,दुरूह
पगडंडियों से उतरकर 
खोह में बसे
जड़ों को जकड़े अंधविश्वास के कीड़़े को
विश्वास के चिमटे से खींचकर
निकालने का उपक्रम करते हैं...।

आज बस इतना ही ....... वैसे थोड़ी ओवर डोज़  हो गयी है ........बहुत समय से हलचल प्रस्तुत नहीं की थी शायद इसलिए .....कुछ और लिंक्स सहेजे थे पुरानी पोस्ट्स के ......वो फिर कभी सही .......

 अब  इजाज़त दें ....... फिर मिलते हैं पंद्रह दिन बाद ..... सोमवार को .... पाक्षिक रूप से हलचल ले कर आपके समक्ष उपस्थित होऊँगी ........ 

आपकी ही 
संगीता स्वरुप 





32 टिप्‍पणियां:

  1. सादर नमन..
    स्वागत है
    आपके घर में
    आपका..
    ये वक़्त भी क्या शय है
    कितना कुछ समेटती
    कितना कुछ बिखेरती
    जाने कितने वादे किए
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. इतनी शानदार प्रस्तुति वास्तव में मंत्रमुग्ध कर देने वाली थी।रचना को स्थान देने के लिए आपका बहुत शुक्रिया💐

    जवाब देंहटाएं
  3. आपका स्वागत है
    बेहतरीन संकलन
    मेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार

    जवाब देंहटाएं
  4. ब्‍लॉग पोस्‍ट की बात को बहुत ही सुन्‍दर तरीके से प्रस्‍तुत करना और उससे दूसरा लिंक जोडना, यह आपका हलचल प्रस्‍तुति का अंदाज लिंक पढने के लिए मन में रोचकता जगाता है
    आभार आपका मेरी ब्‍लॉग पोस्‍ट को हलचल मेंं सम्मिलित करने हेतु

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. कविता जी ,
      प्रशंसा के शब्द ऊर्जा भर देते हैं । आभार ।

      हटाएं
  5. आपका लिंक चयन और प्रस्तुतिकरण सदैव मन हर लेता है ... हमेशा की तरह बेजोड़ प्रस्तुति सादर वन्दन 🙏🙏

    जवाब देंहटाएं
  6. असाधारण प्रस्तुति! वृहद स्तर पर नये पुराने पोस्ट को चुनना श्रमसाध्य और धैर्य का कार्य।
    इतनी शानदार प्रस्तुति के लिए हृदय से साधुवाद धन्यवाद,आपने बहुत ही शानदार लिंक्स पढ़वाए।
    हर चयनित पोस्ट लाजवाब।
    सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
    मेरी शृंगार रचना को इस विविध फूलों के बीच सजाने के लिए हृदय से आभार आपका संगीता जी।
    आप स्वयं असाधारण क्षमता की मल्लिका हैं।
    सादर सस्नेह।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रस्तुति की प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार । इसी तरह हौसला बढ़ाती रहें ।

      हटाएं

  7. प्रिय दी,
    प्रणाम।

    लंबी प्रतीक्षा के बाद आपके द्वारा संयोजित अंक पढ़कर आनंद और नवीन उत्साह का संचार हुआ।
    इतनी मेहनत और स्नेह से एक-एक सूत्र संजोकर उसे आत्मसात कर उसको विशेष रचना बनाकर प्रस्तुत करने की कला आपसे सीखनी है।
    हर रचना पर आपके बहुमल्य विचार आपके अपनत्व की खुशबू से भरी लग रही।
    नयी पुरानी रचनाओं का सुंदर तारतम्य सराहनीय है।

    इस वक़्त,
    ढपली और झुनझुने का गीत
    यदि जान भी लोगे तो क्या करोगे
    ये सियासत की खुमारी है
    बलात्कार का आनंद लेता पितृसत्तात्मक समाज
    और यह बदलाव के ढोंग
    समय साक्षी रहना तुम...
    फिर भी
    उम्मीदों की पिटारी लिए
    काश कि तुम आ जाते
    नयी सोच...
    फिर हम मुस्कुरा कर कहते
    "नववर्ष मंगलमय हो।"
    ----////-----

    और हाँ दी ब्रेक के बाद ब्रेकफेल नहीं हुआ है बल्कि और दक्षता आ गयी है।
    अगले पाक्षिक विशेषांक की प्रतीक्षा रहेगी।

    सप्रेम
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय श्वेता
      तुम स्वयं इतना अच्छा लिखती हो , वैसा तो मैं कभी भी न लिख पाऊँगी । सारे लिंक्स पर जा कर मेरी प्रस्तुति को सफल कर दिया है । और बखूबी सभी लिंक्स को जोड़ कर बता भी दिया है कि कितना अच्छे से जोड़ती हो ।
      प्यारी प्रतिक्रिया के लिए बहुत सारा स्नेह ।

      हटाएं
  8. वाह लाजबाव अंदाज , खूबसूरत संकलन

    जवाब देंहटाएं
  9. प्रिय  दीदी ,  सबसे पहले -- आपका स्वागत और अभिनन्दन ! इस  के साथ देर से  पहुँचने के लिए क्षमायाचना |बहुत कोशिश की पर आते-आते यही समय हो आया |बिना सभी रचनाएँ देखे टिप्पणी  करना उचित नहीं समझती | और आपके द्वारा  संयोजित  लिंक  बहुत रोचक और सार्थक  हैं | और आपने स्वयं ही साप्ताहिक से पाक्षिक होने का निर्णय ले लिया | भला क्यों ?जब वापसी की है तो हर सप्ताह  बने रहिये | बहुत लम्बी छुट्टी ले ली आपने |आज की रचनाओं की कहूँ तो हर रचना मुकम्मल  है | कवितायें बहुत बढिया रहीं तो अरुण जी के लेख से -- नारी दुर्दशा के बावजूद  नेताओं   की विद्रूप  हँसी जी  जला  कर रख गयी | सभी पाठकों को इस  अत्यंत  संवेदनशील मुद्दे पर अपनी राय जरुर रखनी चाहिए |प्रिय श्वेता की रचना कहीं ना कहीं इस आलेख की  विषय वस्तु को पूर्णता देती है | दिखावटी लोगों ने  बदलाव समाज में नहीं प्रायः अपनी स्थितियों में सुधार किया है | और अब तो दुस्साहसी नेता अति संवेदनशील निंदनीय कर्मों को भी आनंद से जोड़ने लगे  हैं | बाकी नए साल के लिए सभी को अग्रिम शुभकामनाएं  और बधाई | मेरी पुरानी रचना को भी ढूंढ लिया आपने इसी मंच  पर लिखी गयी और पाठकों द्वारा  खूब औ पढ़ी   गयी |आपको आभार और प्यार पुनः शुरुआत के लिए |आपको सस्नेह प्रणाम और हर सप्ताह  आपका इन्तजार रहेगा | सादर  

    जवाब देंहटाएं
  10. प्रिय  दीदी ,  सबसे पहले -- आपका स्वागत और अभिनन्दन ! इस  के साथ देर से  पहुँचने के लिए क्षमायाचना |बहुत कोशिश की पर आते-आते यही समय हो आया |बिना सभी रचनाएँ देखे टिप्पणी  करना उचित नहीं समझती | और आपके द्वारा  संयोजित  लिंक  बहुत रोचक और सार्थक  हैं | और आपने स्वयं ही साप्ताहिक से पाक्षिक होने का निर्णय ले लिया | भला क्यों ?जब वापसी की है तो हर सप्ताह  बने रहिये | बहुत लम्बी छुट्टी ले ली आपने |आज की रचनाओं की कहूँ तो हर रचना मुकम्मल  है | कवितायें बहुत बढिया रहीं तो अरुण जी के लेख से -- नारी दुर्दशा के बावजूद  नेताओं   की विद्रूप  हँसी जी  जला  कर रख गयी | सभी पाठकों को इस  अत्यंत  संवेदनशील मुद्दे पर अपनी राय जरुर रखनी चाहिए |प्रिय श्वेता की रचना कहीं ना कहीं इस आलेख की  विषय वस्तु को पूर्णता देती है | दिखावटी लोगों ने  बदलाव समाज में नहीं प्रायः अपनी स्थितियों में सुधार किया है | और अब तो दुस्साहसी नेता अति संवेदनशील निंदनीय कर्मों को भी आनंद से जोड़ने लगे  हैं | बाकी नए साल के लिए सभी को अग्रिम शुभकामनाएं  और बधाई | मेरी पुरानी रचना को भी ढूंढ लिया आपने इसी मंच  पर लिखी गयी और पाठकों द्वारा  खूब औ पढ़ी   गयी |आपको आभार और प्यार पुनः शुरुआत के लिए |आपको सस्नेह प्रणाम और हर सप्ताह  आपका इन्तजार रहेगा | सादर  

    जवाब देंहटाएं
  11. एक आग्रह और है दीदी | फेसबुक से  रश्मि प्रभा  जी की पोस्ट से पता चला --कि हमारे परम आदरणीय   वरिष्ठ कवि और ब्लॉगर आदरणीय कैलाश जी शर्मा का स्वर्गवास हो गया है | वर्षा जी के बाद उनके जाने का बहुत दुःख हुआ | आपसे निवेदन है कि उनकी रचनाओं और ब्लॉग से नए पाठकों को अवगत कराएं और मासिक तौर पर ही सही एक बार हमकदम को भी लाने का प्रयास करें |सस्नेह|

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. ओह्ह...
      आदरणीय कैलाश शर्मा जी के निधन का समाचार दुखद है दी।
      सादर श्रद्धांजलि
      नमन।

      हटाएं
    2. प्रिय रेणु ,
      तुम जैसे पाठकों की प्रतिक्रिया मिलने के बाद प्रस्तुति सार्थक हो जाती है । तुम्हारी भावनाओं की कद्र करती हूँ , लेकिन अभी अपने को प्रति सप्ताह के लिए तैयार नहीं कर पा रही हूँ , जब हो सकेगा तो साप्ताहिक शुरू कर दूँगी । अभी के लिए पाक्षिक ही सही ।
      कैलाश शर्मा जी के ब्लॉग की मैं नियमित पाठिका रही हूँ । बीच में ब्लॉगिंग छूटी तब से नहीं जा पाई थी । फेसबुक पर ही पढ़ लेती थी उनकी रचनाएँ । उनके ब्लॉग से अगली कड़ी में अवश्य परिचय कराऊँगी ।
      हमकदम क्या है इससे मैं ही परिचित नही हूँ । इस बारे में यशोदा जी संज्ञान लें ।
      तुम जैसी जागरूक पाठक का हमेशा अभिनंदन है जो कुछ नया करने के लिए प्रेरित करे ।
      सस्नेह

      हटाएं
  12. अपने वही चिरपरिचित अंदाज में अद्भुत तारतम्य के साथ उत्कृष्ट लिंको से सजी लाजवाब पाक्षिक हलचल प्रस्तुति.। मेरी रचना को यहाँ स्थान देने हेतु तहेदिल से धन्यवाद।
    सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. शुक्रिया सुधा जी ,
      आप की प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहता है । कुछ नए सुझाव भी दें जिससे यहाँ पाठकों को भी पहुंचने का और पढ़ने का लालच बना रहे ।
      आभार 🙏

      हटाएं
  13. लंबी प्रतिक्षा के बाद आपकी प्रस्तुति देख बहुत खुशी हो रही है।अद्भूत तारतम्यता के साथ उत्कृष्ट लिंकों का संयोजन हमेशा की तरह बहुत सुंदर।
    शुभकामनाएँ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय पम्मी ,
      प्रस्तुति पसंद करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया ।

      हटाएं
  14. वाह! सभी लिंक बेहद उम्दा। इनके बीच स्वयं को देखना बहुत सुखद। आपका आभार दी !!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. शुक्रिया ऋता ,
      इस बहाने फिर से तुम्हारा ब्लॉग खंगाल आयी ।

      हटाएं
  15. क्या बात है, ब्रेक के बाद भी निखार है। बढ़िया लिंक्स, शानदार हलचल

    जवाब देंहटाएं
  16. सुप्रभात !
    आदरणीय दीदी,प्रणाम 🙏
    बड़े भाई बीमार चल रहे अतः थोड़ा व्यस्त हूं, आपका ये शानदार अंक,मुझे अपनी तरफ खींच लाया ।आनंदित हूं आपकी उपस्थिति देखकर । एक सुंदर, नवीन और विविध रचनाओं से सज्जित अंक लाने के लिए शुक्रिया । सटीकता से प्रेरित आपकी ऊर्जावान प्रतिक्रिया, ब्लॉग पर मिलती है, मनोबल बढ़ने के साथ साथ, नव सृजन का आधार भी बनती हैं ।
    आपको और सभी रचनाकारों को मेरी हार्दिक शुभकामनाएं 🙏🙏

    जवाब देंहटाएं

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