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शनिवार, 18 दिसंबर 2021

3246... वंचना

 

हाज़िर हूँ...! पुनः उपस्थिति दर्ज हो...

वंचना

उच्चतम न्यायालय द्वारा उन्हें उम्र कैद की सजा सुनाई जाती है मगर न्यायालय की प्रक्रिया में भी कभी-कभी कुछ तत्व स्वार्थवश या लापरवाही के कारण अपराधियों के साथ नरमी बरतते हैं, जिससे अपराधियों का मनोबल बढ़ता है। अदालत का आदेश निचली अदालत के लोग ‘सीन एंड फाइल’ लिख कर रिकॉर्ड रूम में भेज देते हैं। अतः जिस निचली अदालत की तरफ से लोगों के खिलाफ वारंट जारी होना चाहिए था, वहाँ तक फाइल पहुँचती ही नहीं। परिणामस्वरूप मुजरिम खुले में घूमते  रहते हैं। न्याय-व्यवस्था का यह विद्रूप भारत में ही संभव है। 

वंचना

लाचार बेटी को उसके बच्चों सहित अनमने भाव से अपनी भव्य अट्टालिका में स्वीकार तो लिया, रोगग्रस्त अनुज का इलाज भी करवाया एवं बेटी को एक निजी कम्पनी में नौकरी पर लगवा दिया किन्तु बिना किसी मोह में पड़े वसीयत को जस का तस छोड़ दिया और दो वर्षों बाद चल बसे। विशाखा एक किराये के मकान में रहने लगी। माँ से संपर्क बना रहा।

पार्थक्य और एकांत

कविता समूची प्रकृति और मनुष्यता के उत्पीड़न और विनाश में लगी सबसे बलशाली ताकतों के ‘पाप’ (नैतिक) और ‘अपराध’ (सामाजिक-संवैधानिक) के खिलाफ़ हमेशा  कोई न कोई ‘फतवा’ जारी करती रहती है और अपने जीवन को बार-बार दांव पर लगाती है। वह हर बार कोई न कोई जोखिम या खतरा मोल लेती है और हर बार किसी संयोग या चमत्कार से बच निकलने पर अपना पुनर्जीवन हासिल करती है और एक बार फिर सांस लेना शुरू करती है। फिर से किसी नये जोखिम भरे दायित्व का बोझ उठाने के लिए।

कविता

मुझे सहारा मिले न कोई तो मेरा बल टूट न जाए,

यदि दुनिया में क्षति-ही-क्षति हो,

(और) वंचना आए आगे,

मन मेरा रह पाये अक्षय, मेरी चाह यही है।

वंचना

बंदी जख्मों में... 

जो चिंगारी लगी 

उस अंगार से सुलगती  

धुंआ - धुंआ  होती 

गहरी सुकोमल  आद्रता 

आहूत होती ज़िन्दगी 

प्राणों से ऊष्मा को धुआं कर गयी

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पुनः भेंट होगी...
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7 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय दीदी
    सादर नमन
    सदाबहार प्रस्तुति
    सादर...

    जवाब देंहटाएं
  2. उत्कृष्ट रचनाओं का संकलन । बहुत बहुत शुभकामनाएं आदरणीय दीदी 🙏💐

    जवाब देंहटाएं
  3. वंचना यानि धोखा देना,ठगना।
    अनूठे शब्द पर आधारित आज के अंक में विस्तृत,सूक्ष्म समीक्षाएँ,लंबी कहानी रवींद्र नाथ टैगोर जी की अद्भुत कविता का अनुवाद और एक मर्मस्पर्शी कविता।
    दी कितना कुछ समेट लाती हैं आप।
    हमेशा की तरह बेहतरीन संकलन।

    प्रणाम
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
  4. वंचना और प्रवंचना इस युग की विद्रूप विशेषताएं हैं। निशब्द हूं आज के अंक पर। पहला लिंक ही मर्म को छू गया। सादर आभार और शुभकामनाएं प्रिय दीदी।

    जवाब देंहटाएं

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