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शुक्रवार, 17 दिसंबर 2021

3235.....रसमयी किलकारियां

शुक्रवारीय अंक में 
आप सभी का
स्नेहिल अभिवादन।
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शरद में 
अनगिनत फूलों का रंग निचोड़कर
बदन पर नरम शॉल की तरह लपेटकर
ओस में भीगी भोर की 
नशीली धूप सेकती वसुधा,
अपने तन पर फूटी
तीसी की नाजुक नीले फूल पर बैठने की
कोशिश करती तितलियों को 
देख-देखकर गुनगुनाते
भँवरों की मस्ती पर
बलाएँ उतारती है...
खेतों की पगडंडियों पर
अधखिले तिल के गुलाबी फूलों को
हथेलियों में भरकर
पुचकारती बासंती हवाओं की
गंध से लटपटाई वसुधा
सोचती है....
इन फूलों और
गेहूँ की हरी बालियों की
जुगलबंदी बता रही है
खेतों में शरद ने खिलखिलाहट
बो दिए हैं 
अबकी बरस
गेहूँ के साथ फूल भी खिलखिलायेंगे
तुम सुन रहे हो न
आने वाले समय का आलाप
उम्मीद का यह गीत
कितना मीठा है न...।

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आइये आज की रचनाएँ पढ़ते है-





ये पुलक ये मस्तियाँ  सब ख़ास इक अंदाज है
क्यों करें कल पर मनन जब खुशनुमा सब आज है
हो खिलौनों की कमी पर जो मिला वो खास है
राजसी हैं ठाठ अपने मुस्कुराती आस है

सेवानिवृत्ति

चन्द छुट्टियाँ आपकी 
घर गृहस्थी की तमाम उलझनें
बड़ी समझदारी से सुलझाते हम
प्यार-प्यार में दूर हो गये एक दूसरे से
बिन लड़े-झगडे़ बिन रूठे-मनाये ही
हमेशा...
मानते तो हैं न आप भी ।


विभावरी

चंद्र फूल री क्यारी महकी 
रजनी उजलो रंग भरे
चाँद कटोरो मोदो पड़गो
प्रीत रंग रा तार झरे।
पता ऊपर मांडे मांडणा 
रात सखी म्हारी जागे।।






उन्हीं पांवों को 
अब रिश्तों के बंधन 
ने लिए हैं जकड़|
भावनाओं पर लगने लगे हैं, 
अब मर्यादा के पहरे|
जिन नयन ने सजाएं थे 
अनगिने-स्वप्न, 
उन नयनों में भर दिए गये






कभी कभी मैं भी आख़िरी बार रोना चाहता हूँ और इतना रोना चाहता हूँ कि आँसुओं की धार में सारे दुःख, दर्द, तकलीफ़ और यादें सब बह जाएं। मैं आँसुओं के ख़त्म हो जाने तक रोते रहना चाहता हूँ। पर मैं जानता हूँ आख़िरी बार रोने जैसा कुछ नही होता। एक बार रो लेने के बाद दोबारा रोना न आए ऐसा नही हो सकता। आँसू कभी सूखते नही बस जम जाते हैं और यादों की गर्मी मिलते ही फ़िर बहने लगते हैं।


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आज के लिए इतना ही
कल का विशेष अंक लेकर आ रही हैं
प्रिय विभा दी।
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9 टिप्‍पणियां:

  1. चंद्र फूल री क्यारी महकी
    रजनी उजलो रंग भरे
    चाँद कटोरो मोदो पड़गो
    प्रीत रंग रा तार झरे।
    पता ऊपर मांडे मांडणा
    रात सखी म्हारी जागे।।
    बेहतरीन..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत ही सुंदर सराहनीय भूमिका।
    शरद ऋतू का अनछुआ-सा एहसास बहुत ही सुंदर।
    सभी को हार्दिक बधाई।
    समय मिलते ही सभी रचनाओं पर उपस्थित रहूंगी।
    मुझे स्थान देने हेतु बहुत बहुत शुक्रिया श्वेता दी।
    सादर स्नेह

    जवाब देंहटाएं
  3. इन फूलों और
    धान की हरी बालियों की
    जुगलबंदी बता रही है
    खेतों में शरद ने खिलखिलाहट
    बो दिए हैं
    अबकी बरस
    धान के साथ फूल भी खिलखिलायेंगे/
    तुम सुन रहो न/आने वाले समय का आलाप/
    उम्मीद का यह गीत/कितना मीठा है न...।////
    बहुत सुंदर प्रिय श्वेता। ये मौसम इतना शानदार है कि कवियों की कल्पना सरपट दौड़ने लगती है। इस मोहक भूमिका के लिए ढेरों बधाइयां। सभी रचनाएं बहुत प्यारी हैं। आज के अंक में शामिल सभी रचनाकारों को बधाई और शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं
  4. प्रिय श्वेता ।

    शरद में केवल वसुधा ही नहीं सकती नशीली धूप , आज कल मैं भी लेती धूप का आनंद , भले ही जाना पड़ता है सोसाइटी के पार्क में ,हँसी की बात एक तरफ भूमिका में शरद का बहुत सुंदर वर्णन किया है ....
    आज की प्रस्तुति में लिए गए लिंक बेहतरीन हैं --
    हमें अंदाज़ा नहीं होता कि विभावरी ( रात ) में भी जो उड़ती थीं तितलियां बन कर ,रहस्यमयी किलकारियों के साथ कब सेवानिवृत्ति ले लेती हैं पता ही नहीं चलता ।
    सस्नेह

    जवाब देंहटाएं
  5. अनगिनत फूलों का रंग निचोड़कर
    बदन पर नरम शॉल की तरह लपेटकर
    ओस में भीगी भोर की
    नशीली धूप सेकती वसुधा,
    अपने तन पर फूटी
    तीसी की नाजुक नीले फूल पर बैठने की
    कोशिश करती तितलियों को
    देख-देखकर गुनगुनाते
    भँवरों की मस्ती पर
    बलाएँ उतारती है...
    कितने कोमल शब्दों को पिरोकर बना कितना सुंदर और मनमोहक गीत! प्रकृतिक सुंदरता को चार चांद लगाता बहुत ही खूबसूरत गीत.....
    बहुत ही उम्दा प्रस्तुति!
    मेरी रचना को पांच लिंकों में शामिल करने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद और आभार🙏🙏🙏

    जवाब देंहटाएं
  6. उम्मीद का यह गीत
    कितना मीठा है न...।

    "उम्मीद का गीत" हमेशा मीठा ही होता। प्रकृति के सुन्दर रगों को समेटे बहुत ही सुन्दर भुमिका के साथ बेहतरीन रचनाओं का चयन आदरणीया श्वेता जी। सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं 🙏

    जवाब देंहटाएं
  7. ओस में भीगी भोर की
    नशीली धूप सेकती वसुधा,
    अपने तन पर फूटी
    तीसी की नाजुक नीले फूल पर बैठने की
    कोशिश करती तितलियों को
    देख-देखकर गुनगुनाते
    भँवरों की मस्ती पर
    बलाएँ उतारती है...
    अद्भुत एवं लाजवाब भूमिका के साथ शानदार प्रस्तुति । सभी लिंक बेहद उत्कृष्ट।
    मेरी रचना को स्थान देने हेतु हृदयतल से धन्यवाद श्वेता जी!
    सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं

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