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गुरुवार, 16 दिसंबर 2021

3234 ..तिलिस्म टूटते ही, टूट जाता है सब मायाजाल

सादर अभिवादन
टाईम-टेबल फिर गड़बड़ा जाता
पर एन टाईम पर रवीन्द्र जी ने कहा
मैं दिल्ली से बाहर हूँ कोई और दिन आ जाऊँगा
सो वे रविवार को आएंगे
वर्षांत होने को है..किसी पाठक के मन मे
कुछ गुड़गुड़ा रहा हो तो कहिएगा
रचनाएँ....



सहसा रुख़ बदलना पहचाने न कोई,
मन की अगम गहराई जाने न
कोई। कौन डूबे कहां, किस
अंध घाटी के अंदर,
कहना नहीं
आसान,
इसी
पल में है समाहित सारा ब्रह्माण्ड - -




बला है, कहर है, आफत है  यह  जवानी,
चेहरे  पर  चार  चाँद  लगाती  है  जवानी,
दीवानगी के संग दिखाती है खास अदाएँ,
चलने  में अपनी शान दिखाती  है जवानी।




वशीकरण तो कुछ पल का होता है,,
या फिर कुछ दिन का।
तिलिस्म टूटते ही,
टूट जाता है सब मायाजाल।
दूर होता है मन का वहम,
और झूठे प्रेम की चाल।
परंतु प्रेम अनंत हैं,




मेरी ही आत्मा पर जमा रहा कालिख है...
न न .. अब और नहीं
और नहीं लादूँगा खुद पर 'कुछ होने' का बोझ
नहीं तो ..!
मेरा जादूगर बदल देगा मुझे उस सुनहरी छड़ी में
जिसकी छुअन से सच झूठ में बदल जाता है...




कड़क की ठंड है लेकिन,
गुलाबी धूप भी फैली।
आओ बैठें आंगन में,
चाहे गात हो मैली।
रजाई छोड़ हम आये,
लगती धूप अब प्यारी।

...
कुछ ओशो के बारे में
ओशो (मूल नाम रजनीश) (जन्मतः चंद्र मोहन जैन, ११ दिसम्बर १९३१ - १९ जनवरी १९९०), जिन्हें क्रमशः भगवान श्री रजनीश, ओशो रजनीश, या केवल रजनीश के नाम से जाना जाता है, एक भारतीय विचारक, धर्मगुरु और रजनीश आंदोलन के प्रणेता-नेता थे। ... चन्द्र मोहन जैन का जन्म भारत के मध्य प्रदेश राज्य के रायसेन शहर के कुच्वाडा गांव में हुआ था।

तुम विचार कर रहे हो, तो तुम क्या विचार कर सकते हो? तुम अज्ञात पर कैसे विचार कर सकते हो? तुम केवल ज्ञात पर विचार कर सकते हो। तुम इसे बार-बार चबा सकते हो, लेकिन यह ज्ञात है। यदि तुम जीसस के बारे में कुछ जानते हो, तो तुम इस पर बार-बार चिंतन कर सकते हो; अगर तुम कृष्णा के बारे में कुछ जानते हो, तो तुम इस पर बार-बार चिंतन कर सकते हो; तुम संशोधन, बदलाहट, सजावट किए जा सकते हो - लेकिन यह तुम्हें अज्ञात की ओर ले जाने वाला नहीं है। और "ईश्वर" अज्ञात है।
आज बस इतना ही
सादर

7 टिप्‍पणियां:

  1. सभी को सुप्रभात और प्रणाम।
    बढ़िया अंक है प्रिय दीदी! आपकी तुरत फुरत रेसिपी बढ़िया जम जाती है। अच्छी रचनाएँ हैं सभी। और प्रेम पर ओशो के विचार जगजाहिर है। वे प्रेम के लिए ज्यादा जाने गए। उनकी विलक्षण प्रतिभा ने उन्हें विश्व में अनूठी पहचान दिलाई और एक अनजाने गांव के चंद्रमोहन जैन, ओशो बन विख्यात हुए। हर विषय पर उनका चिन्तन हैरान करता है। बाकि सब ठीक है पर उनके स्वच्छंद दैहिकता। के नितांत नए प्रयोग से वे बड़े वर्ग द्वारा अमान्य घोषित किए गए। क्योंकि भारतवर्ष की संस्कृति की मान्यताएं मर्यादाओं और कर्त्तव्यों में बंधी है। यहां अपने लिए सोचने वाला व्यक्ति स्वार्थी है। सामाजिक और पारिवारिक कर्तव्यों से बाहर व्यक्ति का कैसा अस्तित्व पर ओशो ने व्यक्तिवाद को प्राथमिकता दी। विवादित होने के बावजूद वे सबसे ज्यादा पढ़े और सुने गए। पर मुझे लगता है यदि उन्होंने अपनी विचारधारा को भोगविलास की तरफ न मोड़ा होता तो वे सदी के बुद्ध अथवा महावीर भले न होते पर उनका रूतबा बहुत ऊंचा होता। क्योंकि सन्यास नाम है सभी प्रकार के विकारों और लालसाओं का त्याग। एक विलासी व्यक्ति खुद को भगवान घोषित करे तो वह काल और समाज से नहीं खुद से छल करता है। और उसका हश्र ओशो सरीखा होना निश्चित है। जल्द ही ओशो पर एक विस्तृत लेख लिखने की इच्छुक हुं। आज के सभी शामिल रचनाकारों को बधाई और आपको आभार भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए 🙏🙏

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  2. सभी रचनाओ का संगम सुंदर है... ओशो को समझना मानों आत्म साक्षात्कार की ओर बढ़ना है। रेनू दी की टिप्पणी अत्यंत खास है। उनके लेख का ििइंतजार रहेगा।
    मेरी रचना को स्थान देने जे लिए सादर आभार

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  3. बहुत सुंदर सराहनीय अंक । हर रचना अर्थपूर्ण । बहुत बहुत शुभकामनाएं 💐💐

    जवाब देंहटाएं

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