सादर अभिवादन
दिन भर ब्लॉगों पर लिखी पढ़ी जा रही 5 श्रेष्ठ रचनाओं का संगम[5 लिंकों का आनंद] ब्लॉग पर आप का ह्रदयतल से स्वागत एवं अभिनन्दन...
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रविवार, 31 अक्टूबर 2021
3198...नित तोड़ के चढ़ैबै हम श्याम तुलसी।
शनिवार, 30 अक्टूबर 2021
3197.. स्वच्छता
हाज़िर हूँ...! पुनः उपस्थिति दर्ज हो...
दशहरा के बाद.. बिहार में (मुझेअन्य राज्य का अनुभव नहीं) जंग शुरू हो जाता है। स्पेशल ट्रेन चालू होने के बाद भी ट्रेन के छत पर भीड़, पायदान में लटके लोग। वाशरूम का रास्ता ब्लॉक कर रखा.. जुगाड़ से टिकट जुटाए जुझारू बिहारी। देश के किसी कोने में हों लौटेंगे छठ में।
जब गाँव से इतना प्यार है तो बिहार वृद्धाश्रम क्यों बनता जा रहा..; जिनके बच्चे विदेश जा बसे या जिनके घर में छठ नहीं होता..., मकड़जाल में उलझे वृद्ध की पथराई आँखें तलाश रही..
सभी बच्चों को ईनाम के रूप में पिकनिक पर अगले दिन ले जाना तय हुआ। वैसे तो जो उन्होंने किया था। वो हर ईनाम से परे था। जितनी प्रशंसा करो उतनी ही कम है।
अगर उन्होंने अच्छा किया, तो उन्हें उसके स्वादिष्ट गाजर के केक का एक अतिरिक्त टुकड़ा दिया जाएगा। सफाई का दिन अच्छा चल रहा है और बच्चों ने मोपिंग का आनंद लिया। और फर्श को साफ़ कर रहा है। जल्द ही खाने का समय हो गया। रिकी और रिया गाजर केक के काटने का इंतजार नहीं कर सकते थे।
रविवार के दिन सभी अजय के मोहल्ले में गए. सबके हाथ में एक-एक टोकरी और झाटू थे। सड़क पर झाडू लगाकर उन्होंने कूड़ा इकट्ठा किया। नालियों की सफ़ाई की और पानी का रास्ता बनाया।
ना मैं गंदगी करूंगा, न ही करने दूंगा
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पुन: भेंट होगी...
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शुक्रवार, 29 अक्टूबर 2021
3196....अजीब हैं हम भी...।
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मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति-
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दादू ! हम दूध पीते हैं न। एक छोटी सी बछिया को उसकी माँ के थन से जबरन अलग कर उसे रूखा-सूखा घास खिलाते हैं और उसके हिस्से का दूध खुद पी जाते हैं, क्या ये गलत नहीं है दादू ? कोई पाप भी नहीं है ? हमें इन गलतियों का पाप क्यों नहीं लगता दादू?।
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आयोजन स्थल के थोड़ा पहले चौराहा पड़ा। जहाँ पानी वाला नारियल का ठेला लगा था। गाड़ी रोककर चालक उतरा साठ रुपया का नारियल पानी पी लिया। जब हम आयोजन स्थल पर पहुँचे तो वह मुझसे नारियल वाला पैसा मांगने लगा।
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और चलते-चलते एक विचार-
जनता अपराधी फिल्मी कलाकारों को जेल ले जाती वैन के पीछे बेतहाशा दौड़ती है। उनके संगीन अपराध के बावजूद उनको अपना हीरो मानती है सहानुभूति जताती है , अपराधी चुनाव जीत जाते हैं।
मीडिया जिसे चाहे नायक और देशभक्त बना देती है और जिसे चाहे खलनायक जैसा देशद्रोही बना देती है।
ऐसी मानसिकता, स्तरहीन वैचारिकी दुर्दशा के लिए और इस माहौल के लिए हम लोग ही जिम्मेदार हैं।
शातिर लोग भावुक लोगों की संवेदनाओं का व्यापार कर रहे हैं... नेताओं और मीडिया की कठपुतली जैसे हम इमोशनल बेवकूफ ऐसा न सिर्फ़ होने दे रहे हैं बल्कि इसमें अपनी शान भी समझ रहे,आपस में सिरफुटौव्वल कर रहे हैं....अजीब नहीं हैं हमलोग...?
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कल का विशेष अंक लेकर
आ रही हैं प्रिय विभा दी।
गुरुवार, 28 अक्टूबर 2021
3195...कूड़ा समेटने वाला हमेशा घबराता है शर्माता है...
बदलते जाते हैं
कूड़ा लिख ‘उलूक’ परेशानी एक है साथ में डस्टबिन क्यों नहीं ले कर के आता है
सारे कूड़े पर बैठे हुऐ कूड़े
अपने अपने दाँत निपोर कर दिखाते हैं
कूड़ा समेटने वाला हमेशा घबराता है शर्माता है
पर्यावरण के पाठ में और उसी विषय की किताब में
कूड़ा ही होता है
जो गालियाँ कई सारी हमेशा खाता है
चाँदनी पे वर्क चाँदी का चढ़ा कर,
एक सौदागर हूँ सपने बेचता हूँ.
पक्ष वाले ... सुन विपक्षी ... तू भी ले जा,
आइनों के साथ मुखड़े बेचता हूँ.
ज़िन्दगी की भी कैसी हाय बेचारगी
रोने को विवश ज़ब्त करने में लाचार
गूँगे कतरों में डूबे रहे दरिया की तरह
भीतर की तबाही के सहके अत्याचार ।
अम्बर के आँचल तले
नहीं मिली है छाँव
कुचली दुबकी है खड़ी
नित्य माँगती ठाँव
आज थमा दो डोर को
पीत पड़े अब गात।।
वह बोला- "सचमुच मम्मी! मेरी कोई गलती नहीं? सबसे बड़ी दुश्मन तो आप ही हैं मेरी। माँ तो बच्चों की पहली गुरु होती है और उसकी दी हुई सीख बच्चों को जीवन में हर पग पर मार्गदर्शन करते हैं। पर आपने तो अपनी औलादों को ग़लत सही का पाठ पढ़ाया नहीं, हमेशा उनकी बड़ी से बड़ी गलती को भी दूसरों पर मढ़ती रही हो। आपकी नजर में पूरी दुनिया ही आपके बेटों के भोग का सामान है....है न?
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आज बस यहीं तक
फिर मिलेंगे अगले गुरुवार।
रवीन्द्र सिंह यादव
बुधवार, 27 अक्टूबर 2021
3194 ..मन का हो तो अच्छा न हो तो और अच्छा...
।। उषा स्वस्ति ।।
"उठो सोनेवालो, सबेरा हुआ है,
वतन के फकीरों का फेरा हुआ है।
जगो तो निराशा निशा खो रही है
सुनहरी सुपूरब दिशा हो रही है
चलो मोह की कालिमा धो रही है,
न अब कौम कोई पड़ी सो रही है।
तुम्हें किसलिए मोह घेरे हुआ है?
उठो सोनेवालो, सबेरा हुआ है।"
अज्ञात
चलिए आज शुरुआत करते हैं ब्लॉग नया सवेरा की खास पेशकश...✍️
मन का हो तो अच्छा न हो तो और अच्छा...
उपजाऊ या बंजर
केवल ज़मीन ही नहीं
बल्कि ...
हमारा मन भी होता है ।
जहाँ जो रोपा जाए
या तो वह खूब बढ़ता..
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झिल्ला !
दुई छुटकी तीर हैं। जोड़ो जोड़ो कित्ते झिल्ला ? उंगलियों के पोरों पर राबिया ने गिनती गिनना शुरू किया। एक ...दुई...तीन ....। तीन के बाद राबिया आंखें मटकाने लगी ।
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कुत्तों के भौंकने से हाथी अपना रास्ता नहीं बदलता है
आदमी काम से नहीं चिन्ता से जल्दी मरता है
गधा दूसरों की चिन्ता से अपनी जान गंवाता है
धन-सम्पदा चिन्ता और भय अपने साथ लाती है
धीरे-धीरे कई चीजें पकती तो कई सड़ जाती है
विपत्ति के साथ आदमी में सामर्थ्य भी आता है..
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जुलूस का मशाल वाही - -
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