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शनिवार, 30 अक्तूबर 2021

3197.. स्वच्छता


हाज़िर हूँ...! पुनः 
उपस्थिति दर्ज हो...

दशहरा के बाद.. बिहार में (मुझेअन्य राज्य का अनुभव नहीं) जंग शुरू हो जाता है। स्पेशल ट्रेन चालू होने के बाद भी ट्रेन के छत पर भीड़, पायदान में लटके लोग। वाशरूम का रास्ता ब्लॉक कर रखा.. जुगाड़ से टिकट जुटाए जुझारू बिहारी। देश के किसी कोने में हों लौटेंगे छठ में।

    जब गाँव से इतना प्यार है तो बिहार वृद्धाश्रम क्यों बनता जा रहा..; जिनके बच्चे विदेश जा बसे या जिनके घर में छठ नहीं होता..., मकड़जाल में उलझे वृद्ध की पथराई आँखें तलाश रही..

स्वच्छता

सभी बच्चों को ईनाम के रूप में पिकनिक पर अगले दिन ले जाना तय हुआ। वैसे तो जो उन्होंने किया था। वो हर ईनाम से परे था। जितनी प्रशंसा करो उतनी ही कम है।

स्वच्छता

अगर उन्होंने अच्छा किया, तो उन्हें उसके स्वादिष्ट गाजर के केक का एक अतिरिक्त टुकड़ा दिया जाएगा। सफाई का दिन अच्छा चल रहा है और बच्चों ने मोपिंग का आनंद लिया। और फर्श को साफ़ कर रहा है। जल्द ही खाने का समय हो गया। रिकी और रिया गाजर केक के काटने का इंतजार नहीं कर सकते थे।

स्वच्छता

रविवार के दिन सभी अजय के मोहल्ले में गए. सबके हाथ में एक-एक टोकरी और झाटू थे। सड़क पर झाडू लगाकर उन्होंने कूड़ा इकट्ठा किया। नालियों की सफ़ाई की और पानी का रास्ता बनाया।

ना मैं गंदगी करूंगा, न ही करने दूंगा

वर्तमान समय में स्वच्छता हमारे लिए एक बड़ी चुनौती है। यह समय भारत वर्ष के लिए बदलाव का समय है, बदलाव के इस दौर में यदि हम स्वच्छता के क्षेत्र में पीछे रह गए तो आर्थिक उन्नति का कोई महत्व नहीं रह जाएगा। साथ ही हमें इसे एक बड़े स्तर पर भी देखने की जरूरत है ताकि हमारे पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाया जा सके।


प्रकृति के अनसुलझे जटिल रहस्यों के आगे उसे कई बार चमत्कृत होना पड़ा। बड़ी मात्रा में प्रकृति और उसकी शक्तियां मनुष्य के नियंत्रण से बाहर ही रहीं। मनुष्य प्रकृति की देखी-अनदेखी शक्तियों से डरा और उसे प्रसन्न करने के लिए उसकी वंदना में ऋचा गीत लिख डाले। दुर्दम्य प्रकृति को उसने उस मात्रा में अपने अनुकूल बना लिया जितना कि उसके जीवन रक्षा के लिए आवश्यक था।

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पुन: भेंट होगी...

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5 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात !
    स्वच्छता के ऊपर सुंदर सार्थक कथाओं तथा सारगर्भित आलेख से सजा पठनीय और सराहनीय अंक ।
    साहित्य और पर्यावरण विषय पर सारे निबंध बहुत ही ज्ञानवर्धक और सामयिक हैं, सुधा सिंह का निबंध निश्चय ही सराहनीय और तथ्यपरक है ।
    आदरणीय दीदी, आपकी मेहनत से लगाए गए सभी सूत्रों पे जाकर बहुत ही रुचिकर जानकारियां मिलीं,आपके श्रम को मेरा सादर नमन और वंदन ।

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  2. एकल परिवार के सुख की काल्पनिक अनुभूति को जीने की चाह मेंं अपने बुजुर्गों की उपेक्षा आज के दौर का सहज चलन बनता जा रहा है।
    विचारणीय भूमिका दी।
    विषय आधारित कहानी,लेख,निबंध सभी सराहनीय हैं।
    आपके वैचारिकी मंथन से सजी श्रमसाध्य प्रस्तुति सदैव विशेष होती है।
    प्रणाम दी
    सादर।

    जवाब देंहटाएं

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