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शुक्रवार, 29 अक्टूबर 2021

3196....अजीब हैं हम भी...।

शुक्रवारीय अंक में
मैं श्वेता आप सभी का 
स्नेहिल अभिवादन करती हूँ।
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चुराकर जीवन से कुछ पल,
सारी परेशानियों को भूलकर 
प्रकृति को महसूस कीजिए
शीतऋतु के हिंडोले झूलकर-

भोर पलक छूकर मुस्कुराई/ किरणें चमकीली रसधार।
मंत्र खुशी का सुन लो तुम भी/ पाखी गाये जीवन सार।
पैर पटकती जल पर किरणें/  दरिया से करती है प्यार।
धरा की धानी चुनरी विहंसी/ अंगड़ाती पुरवाई बयार।
ऋतु की पाती आती -जाती/ समय न ठहरे झरे बहार।
निशा करतल से फिसला चाँद/ डूबा सागर जागा संसार।

 #श्वेता सिन्हा
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आइये आज की रचनाओं के संसार में-

प्रांतर में प्रातः

पीत दुकूल बादल का ओढ़े
रवि का थाल चमकता था।
रजत वक्ष पर रश्मिरथी के
पहिये का पथ झलकता था।

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नियति के समक्ष बेबस एक पिता की
मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति-

ज़ख्म मेरा रो रहा है

अस्पताल में ज़िंदगी से जूझ रही नवजात की मार्मिक तस्वीर साझा करने की हिम्मत नहीं मुझमें

दूध की चाहत अधर को, पर दवाई पी रहे,
अंग उलझे तार नस-नस, ज़िंदगी ये जी रहे।

क्या ख़ता थी मेरी ईश्वर, जो सज़ा मुझको दिया,
रातदिन सब पूजते फिर, क्यूँ दगा मुझको दिया?

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किराए पे लड़की


पढ़ेगी वो क्या ? ये शहर के उजाले, 
चकाचौंध उसको किए जा रहे हैं ।
करज में हैं डूबे जो माँ बाप इसके, 
मुझे भी परेशाँ किए जा रहे हैं ।।

यही मैं नियत देखती आ रही हूँ, 
कि गाँवों की प्रतिभा शहर ज्यों ही आती ।
ये झिलमिल सी दुनिया औ रंगी दीवारें, 

उसे नित भरम में डुबोती है जाती ।।

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चाँद और इश्क



दिल लगा जब से इसके दिलजले ख्वाबों से l
तन्हा रह गए हम भरी सितारों की महफ़िल में ll

जोरों से दिल हमारा भी खिलखिला उठा तब ।
पकड़ा गया चाँद जब चोरी चोरी निहारते हुए ll


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नयी सोच

दादू ! हम दूध पीते हैं न। एक छोटी सी बछिया को उसकी माँ के थन से जबरन अलग कर उसे रूखा-सूखा घास खिलाते हैं और उसके हिस्से का दूध खुद पी जाते हैं, क्या ये गलत नहीं है दादू ? कोई पाप भी नहीं है ?    हमें इन गलतियों का पाप क्यों नहीं लगता दादू?।     


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 चालाकी

आयोजन स्थल के थोड़ा पहले चौराहा पड़ा। जहाँ पानी वाला नारियल का ठेला लगा था। गाड़ी रोककर चालक उतरा साठ रुपया का नारियल पानी पी लिया। जब हम आयोजन स्थल पर पहुँचे तो वह मुझसे नारियल वाला पैसा मांगने लगा।

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और चलते-चलते एक विचार-

 जनता अपराधी फिल्मी कलाकारों को जेल ले जाती वैन के पीछे बेतहाशा दौड़ती है। उनके संगीन अपराध के बावजूद उनको अपना हीरो मानती है सहानुभूति जताती है , अपराधी चुनाव जीत जाते हैं। 

मीडिया जिसे चाहे नायक और देशभक्त बना देती है और जिसे चाहे खलनायक जैसा देशद्रोही बना देती है।

ऐसी मानसिकता, स्तरहीन वैचारिकी दुर्दशा के लिए और इस माहौल के लिए हम लोग ही जिम्मेदार हैं।

शातिर लोग भावुक लोगों की संवेदनाओं का व्यापार कर रहे हैं... नेताओं और मीडिया की कठपुतली जैसे हम इमोशनल बेवकूफ ऐसा न सिर्फ़ होने दे रहे हैं बल्कि इसमें अपनी शान भी समझ रहे,आपस में सिरफुटौव्वल कर रहे हैं....अजीब नहीं हैं हमलोग...?

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आज के लिए इतना ही 
कल का विशेष अंक लेकर
आ रही हैं प्रिय विभा दी।

7 टिप्‍पणियां:

  1. ठण्ड लगने लगी
    सच में..
    पीत दुकूल बादल का ओढ़े
    रवि का थाल चमकता था।
    बेहतरीन अंक
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. बिलकुल हमलोग अजीब हैं अजायबघर में कैद रखने योग्य

    असीम शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका
    श्रमसाध्य प्रस्तुति हेतु साधुवाद

    जवाब देंहटाएं
  3. सुंदर रचनाएँ और उनसे भी सुंदर मोहक भूमिका और सार्थक उपसंहार। बधाई, आभार और शुभकामनाएं🌹🌹🌹

    जवाब देंहटाएं
  4. सुन्दर सराहनीय अंक, शानदार रचनाएँ, मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार श्वेता जी ।

    जवाब देंहटाएं
  5. सही कहा बहुत ही अजीब हैं हम लोग...फिल्मी कलाकारों के बच्चों तक के लिए जनता का इतना अपनापन और प्यार सचमुच विचारणीय है...जहाँ देश के लिए शहीद जवान के परिवारवाले उसकी पेंशन तक के लिए दर दर की ठोकरें खाते हैं किसी को फर्क ही नहीं पड़ता....।

    निशा करतल से फिसला चाँद/ डूबा सागर जागा संसार।
    अरुणोदय की मनमोहक शब्दचित्रण के साथ लाजवाब प्रस्ततुतीकरण एवं उत्कृष्ट लिंक संकलन।
    मेरी रचना को शामिल करने हेतु तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार श्वेता जी!

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत बढ़िया प्रिय श्वेता । भूमिका की मनमोहक पंक्तियों से सजी और सार्थक चर्चा से लिंक संयोजन की इति श्री बहुत अच्छी लगी। अभी समाचारों में सुना" मन्नत में मायूसी, आर्यन की रिहाई कल तक के लिए टली!" सच में नैतिकता को अपनी ठोकर पर किए मीडिया जिसे चाहे मिटादे और जिसे चाहे नायक बना दे। बहुत साल पहले बहुत कश्मीर में एक साथ कई जवान शहीद हो गए पर उनकी खबर अखबार के सबसे पिछले पृष्ठ पर थी और सबसे पहले पेज पर कुछ और वाहियात खबरों के साथ बहुत बड़े चकोर खाने में मायावती की एक करोड़ की जूतियों की ख़बर चमक रही थी। आम घरों के चिराग़ सर्वोच्च बलिदान देकर भी राष्टीय अखबार के पहले पन्ने पर स्थान नहीं पा सके पर एक राजनेत्री हीराजड़ित जूती पहनकर रातोरात स्टार बन गई। सो राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों को बिसराकर हम जाने क्या क्या देखकर सुनकर किस मानसिकता की राह हो लिए खुद नहीं जानते।
    आज के सभी रचनाकारों को बधाई। और तुम्हें भी शुभकामनाएं ।

    जवाब देंहटाएं

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