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बुधवार, 2 जून 2021

3047..भोर से उदीप्त है स्नेह से प्रदीप्त है

सादर अभिवादन..
माह जून का दूसरा दिन..
बारिश बस 
अब-तब में आ जाएगी..
अपनी और परिवार के प्रति
सावधानी आवश्यक है..

ग्यारह बजने को है
नई कोई रचना नहीं 
एक नया ब्लॉग आया है
वह भी कॉपी प्रोटेक्टेड
फिर भी ले आए..

इस दुनिया को उतना ज्ञान की जरूरत नहीं है
जितना इस मुश्किल समय में प्रेम की है

अजेय भास्कर की किरणों से ,
अनंत समय की वीथिका में ,
सहिष्णु  धारा  सा बहता जीवन ,

भोर से उदीप्त है स्नेह से प्रदीप्त है ,
रात्री की नीरवता में गुनता है  स्निग्धता



जो भी लगाता ऊंची बोली
बनता में उसका हमजोली
समय संग ,रुख बदला करता
यह न समझना में टिकाऊ हूं
मैं बिकाऊ हूं ,मैं बिकाऊ हूं


अभाव में
एक दूसरे पर शक करते हुए
लड़ते-मरते हैं
कमजोर प्राणी
समझ ही नही पाते


मैं तो चिल्लाऊंगा सिस्टम कोलैप्स हो गया
मेरी गुड़िया नहीं रही, मेरी पत्नी नहीं रही
मैं तो भड़काउंगा सब बिना इलाज हो गया
सुबह ही डॉक्टर ने माना कोविड नहीं
...
आज बस

सादर

 

3 टिप्‍पणियां:

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