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गुरुवार, 3 जून 2021

3048...सांत्वना के निरंतर दोहराए जाने वाले बर्फीले शब्दों से दूर...

शीर्षक पंक्ति: आदरणीया डॉ. शरद सिंह जी की रचना से 

सादर अभिवादन।

गुरुवारीय अंक में आपका स्वागत है।

अदालत की एक टिप्पणी आई है-

"ब्लैक फ़ंगस के रोगियों में 

दवा की अपर्याप्त उपलब्धता के चलते 

बुज़ुर्गों की बजाय 

युवाओं का जीवन 

बचाना प्राथमिकता हो..." 

भारतीय चिंतन धारा को इस टिप्पणी से बहस का नया विषय मिला है। 

आइए अब आपको आज की पसंदीदा रचनाओं की ओर ले चलें-

ग़ज़ल... डॉ.राजीव जोशी 

संभाल कर वो पुरानी यादें

गले लगाना भी जानता हूँ।

गले लगा कर तुम्हारी यादें

उमर बिताना भी जानता हूँ।


दूर, बहुत दूर | कविता | डॉ शरद सिंह

अख़बारों की

कराहती सुर्खियों से दूर

मृतक आंकड़ों की

चींखों से दूर

सांत्वना के निरंतर

दोहराए जाने वाले

बर्फीले शब्दों से दूर

 

'मॉकटेल'-सी नाक ...सुबोध सिन्हा 

पश्चाताप के

ताप से

पके-अधपके

देह के

बुढ़ापे पर,

लगाती हुई

पक्की मुहर,

पनप ही

आती हैं

अनायास

अनचाही,

अनगिनत

झुर्रियाँ काली मिर्च-सी।


प्रारब्ध...संदीप कुमार शर्मा 

कोई है

जो जाग रहा है

हम तीनों में

होले से

झांकता हुआ

मन

की अधखुली खिड़की

से आती

मीठी वायु में

उसके एक

पल्ले पर सिर

टिकाए।

 

मुहावरेदार दोहे...सुजाता प्रिये 

झूठ के पुल हैं बांधकर,यहां झूठ के पुतले।

झपट्टा मार झोली भरे,झांसे देकर निकले।

टके में तीन तरबूज बिके,टके तीन सेर फूट।

टाल-मटोल कुछ लोग करे,लोग पड़े लोग कुछ टुट।


चलते-चलते पढ़िए सिगरेट से जुड़े विभिन्न पहलू-

सिगरेट...डॉ.जेन्नी शबनम

धीरे-धीरे फूँक-फूँककर

सिगरेट को इन्सान राख बनाता है

सिगरेट धीरे-धीरे अपनी गिरफ्त में लेकर

इन्सान को राख के ढेर तक पहुँचाती है

अंतिम सत्य - दोनों का राख में तब्दील होना

तय वक़्त पर दोनों ख़ाक होते हैं

एक दूसरे के ये अद्भुत यार

एक दूजे को जलाकर ख़ाक में मिलते हैं

जबतक जीते हैं दोनों यारी निभाते हैं।


आज बस यहीं तक 

फिर मिलेंगे अगले गुरुवार। 

रवीन्द्र सिंह यादव  


14 टिप्‍पणियां:

  1. ये क्या बात हुई
    जगह-जगह आई कैम्प लगा कल वृद्धों की आँखों को दुनिया पुनः दिखाना...और अब सुप्रीम कोर्ट यह कह रहा है
    अदालत की एक टिप्पणी आई है-
    "ब्लैक फ़ंगस के रोगियों में
    दवा की अपर्याप्त उपलब्धता के चलते
    बुज़ुर्गों की बजाय
    युवाओं का जीवन
    बचाना प्राथमिकता हो..."
    न्याय सभा से अन्याय के सुर..
    आभार.. ये भारत है
    सब संभव है
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. ब्लैक फंगस समाज के सभी अंगों में पनपे ढकोसलों के विषाणु ही तो है। विषाणु न्याय सभा और चाय सभा में कोई भेदभाव नहीं करते।😀🙏

      हटाएं
    2. "जेहि विधि राखे राम, ताहि विधि रहिए -
      सीताराम सीताराम कहिए" ...
      (फंगस, सभा, मत सोचिए .. 😂🙏😂)...

      हटाएं
  2. बहुत आभार आपका आदरणीय रवींद्र जी। मेरी रचना को स्थान देने के लिए बहुत आभारी हूं। सभी रचनाओं का चयन शानदार है खूब बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  3. फंगस तो सिस्टम में हैं...उससे कौन बचाएगा।

    जवाब देंहटाएं
  4. नमन संग आभार आपका "पाँच लिंकों का आनन्द" के मंच पर अपनी प्रस्तुति में मेरी रचना को स्थान देने के लिए .. वैसे आपने अपनी भूमिका में वाकई चिंतन धारा के लिए एक नए मार्मिक विषय की ओर ध्यानाकर्षित किया है। पर आपने "न्यायालय" को स्पष्ट नहीं किया है। अगर यह भी स्पष्ट कर देते कि - "सर्वोच्च न्यायालय" या किसी राज्य का "उच्च न्यायालय"। यूँ तो यशोदा बहन "सुप्रीम कोर्ट" घोषित कीं हैं, पता नहीं कितना सत्य है ...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. महोदय मेरी टिप्पणी पर ध्यान आकर्षित करने के लिए सादर आभार। मेरी टिप्पणी दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा व्यक्त की गई राय के संदर्भ में है।

      https://www.bhaskar.com/national/news/delhi-high-court-told-the-center-instead-of-the-elderly-we-have-to-save-the-youth-they-are-the-future-of-this-country-although-this-is-a-very-cruel-decision-128548561.html

      हटाएं
  5. सदैव की तरह इस बार भी बेहतरीन रचनाओं की प्रस्तुति।

    "दूर, बहुत दूर"
    ....इस रचना ने मेरे मन की वर्तमान इच्छाओं को दिखायी है। बहुत बेहतरीन रचना है।

    जवाब देंहटाएं
  6. रवीन्द्र सिंह यादव जी, मेरी कविता की पंक्ति को शीर्षक पंक्ति बनाने के लिए हृदय से आभार एवं धन्यवाद 🙏

    जवाब देंहटाएं
  7. सभी लिंक्स पठनीय सामग्री से परिपूर्ण हैं...

    मेरी कविता को "पांच लिंकों का आनन्द" में शामिल करने के लिए हार्दिक धन्यवाद रवीन्द्र सिंह यादव जी 🙏

    जवाब देंहटाएं
  8. सार्थक सूत्रों से सज्जित अंक, सादर शुभकामनाएं रवीन्द्र सिंह यादव जी ।

    जवाब देंहटाएं
  9. बेहतरीन लिंकों के साथ सुंदर प्रस्तुति रविंद्र जी। पर भूमिका में कथित न्याय पालिका की अन्यायपूर्ण और असंवेदनशील टिप्पणी पर पर हैरान भी ,परेशान भी। सशक्त प्रशासन वही है जो जो अपने अपनें बच्चों, बुजुर्गों और महिलाओं को पर्याप्त सुरक्षा देने के प्रति प्रतिबद्ध हो। युवाओं का बचना जरुरी है क्योंकि वे राष्ट्र का भविष्य और वर्तमान हैं पर बुजूर्गों के प्रति ये क्रूर मानसिकता दुखद है। आखिर मंगल। पर शहर बसाने का सपना देखने वाले राष्ट्र में कया संसाधनों की इतनी कमी है कि वह ऐसा निर्णय लेने के लिए तत्पर हैं !!

    जवाब देंहटाएं

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