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शनिवार, 20 फ़रवरी 2021

2045.. वापसी

     

     13 दिसम्बर 2019 को उड़ान भरने वाला पक्षी 22 फरवरी 2021 को पुनः अपने शजर पर.. पुरे चौदह महीने आठ दिन प्रवासी भूमि पर रहने का अनुभव मिला-जुला रहा... कभी ख़ुशी...

हाज़िर हूँ...! उपस्थिति स्वीकार हो...

शायद ही किसी ने ना कहा हो तुम

लौट आना

 सीप सँजोती है स्वाति नक्षत्र की बूँद, रात करती है रखवाली नींद की, तृण सँजोता है शबनम के कतरे को, हारिल संभालता है लकड़ी, ख़ुद को तुम यों ही सँभालना। तुम लौट आना। कृष्ण रह सके न मुरली बिना, दीप जले न बिन बाती, बीज कुछ नही माटी बिना, संदेश बिना ज्यों पाती। कृष्ण का मुरली से, दीप का ज्योति से, अटूट नाता है। बीज माटी बिना, कब पनप पता है ? पत्र निरर्थक संदेश बिना, कोरा काग़ज़ बन जाता है। कुछ इन जैसा, रिश्ता निभाना।

लौट आया मधुमास

''कल की बात कल रही, आज भोर हँस रही

हवाओं के हिंडोल पे, पुष्प गंध बस रही

उड़ रही हैं दूर तक, धूप की तितलियाँ

तू भी भर उड़ान मन ,

खोल दे वितान मन।

कभी-कभी चलते-चलते क्षण भर को हौसला थकता भी है।

वापसी

भारतीय साहित्य की कुछ आधारभूत विशेषताएं रही हैं। परिवार भाव उनमें से एक है। मध्यकालीन काव्य 'रामायण' और उससे पहले 'महाभारत' और समस्त पौराणिक वाङ्मय में एक भरा-पूरा परिवार देखते हैं। उस समय लोग सुख या दुख का भोग परिवार के साथ करते थे। तब व्यक्ति अपने परिवार का एक अटूट अंग था।

 कविता में छंद-वापसी

कुछ समय पहले जयपुर की सुप्रतिष्ठित पत्रिका 'कृतिओर' में भी इस विषय पर लंबी बहस चली थी। कहने का मतलब कि छंद पर बहसें बराबर चल रही हैं। दरअसल यह बहस कम होती है और लोगों को अपने पक्ष में करने का उद्योग अधिक।

सम्मान वापसी

महत्वपूर्ण बात यह कि हमारे देश में काव्यात्मक शैली अधिक लोकप्रिय रही है। एक श्लोक या दोहे में ऐसी बात कही जाती है जिसमें ज्ञान और विज्ञान समा जाता है। गद्यात्मक रचनायें अधिक गेय नहीं रही जबकि प्रगतिशील और जनवादी इस विधा में अधिक लिखते हैं। जनवादी और प्रगतिशील भारतीय समाज के अंधविश्वास और पाखंड पर प्रहार करते हैं पर उससे बचने का मार्ग वह नहीं बताते। उनकी प्रहारात्मक शैली समाज में चिढ़ पैदा करती है।

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पुन: भेंट होगी...

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9 टिप्‍पणियां:

  1. स्वागतम..
    शब्द ही नहीं सूझ रहे,
    13 दिसम्बर और 22 फरवरी
    एक लंबा प्रवास..
    बेहतरीन अंक..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. जी दी प्रणाम,
    आपने कभी महसूस ही होने नहीं दिया दी घर से बाहर या घर पर आपकी उपस्थित सदैव निर्बाध रही है अपने दायित्वों के प्रति,आपकी कर्मठता अनुकरणीय है।
    प्रवासी पक्षी का अपने वृक्ष के सूने नीड़ को अपनी चहचहाहट से फिर से खिलखिलाने का हार्दिक स्वागत है:)
    प्रस्तुति सदा की तरह अनूठी है।

    सादर।

    जवाब देंहटाएं
  3. आ रही है दीदी..
    विश्वास ही नहीं हो रहा..
    भारी पड़ रहे हैं दो दिन
    ईश्वर से प्रार्थना
    मौसम और माहौल को
    दुरुस्त रक्खे..
    सादर नमन..

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  4. आभासी रिश्तों की खूबसूरती ही यही कि कभी दुरी का एहसास ही नहीं होता।
    अपने देश में स्वागत है दी ,सादर नमन

    जवाब देंहटाएं
  5. वतन वापसी मुबारक हो आदरणीय दीदी। अभिनंदनम्, सुस्वागतम!!! हमेशा की तरह शानदार प्रस्तुति 🙏🙏❤❤❤❤🌹🌹🌹💕💕💕❤❤❤❤❤❤❤

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