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रविवार, 21 फ़रवरी 2021

2046.....सम्मान से अधिक प्रोत्साहन देना आवश्यक है -



जय मां हाटेशवरी......
सादर नमन......
एक मुहावरा है
अल्लाह मेहरबान तो गदहा पहलवान। 
सवाल उठता है कि पहलवानी से गदहे का क्या ताल्लुक।
पहलवान आदमी होता है जानवर नहीं।
 दरअसल,  मूल मुहावरे में  गदहा नहीं गदा शब्द था।
फारसी में गदा का अर्थ  होता है भिखारी।
अर्थात यदि अल्लाह मेहरबानी करें तो 
कमजोर भिखारी भी ताकतवर हो सकता है।
हिन्दी में गदा शब्द दूसरे अर्थ में प्रचलित है,
आमलोग फारसी के 
गदहा शब्द से परिचित नहीं थे।
गदहा प्रत्यक्ष था। 
इसलिए गदा के बदले गदहा प्रचलित हो गया।
 इसी तरह एक मुहावरा है
 अक्ल बड़ी या भैंस
अक्ल से भैस का क्या रिश्ता।
 दरअसल, इस मुहावरे में भैंस नहीं वयस शब्द था।
वयस का अर्थ होता है उम्र।
मुहावरे का अर्थ था अक्ल बड़ी या उम्र।
उच्चारण दोष के कारण वयस
पहले वैस बना फिर  धीरे-धीरे भैंस में बदल गया
और प्रचलित हो गया।
 मूल  मुहावरा था अक्ल  बड़ी या वयस।
 इसी वयस शब्द से बना है वयस्क।
एक मुहावरा है
धोबी का कुत्ता  न घर का न घाट का
मूल मुहावरे में 
कुत्ता नहीं कुतका शब्द था।
कुतका लकड़ी की खूँटी को कहा जाता है
जो घर के बाहर लगी रहती थी। 
उस पर गंदे कपड़े लटकाए जाते थे।
धोबी उस कुतके से गंदे कपड़े उठाकर
घाट पर ले जाता और कपड़े धोने के बाद धुले कपड़े
उसी कुतके पर टाँगकर चला जाता।
इसलिए यह कहावत बनी थी 
धोबी का कुतका ना घर का ना घाट का।
कालक्रम में कुतके  का प्रयोग  बंद  हो गया।
लोग इस शब्द  को भूल  गए और 
कुतका  कुत्ता  में बदल गया और
लोग कहने लगे धोबी का कुत्ता ना घर का ना घाट का ? 
जबकि बेचारा  कुत्ता धोबी के साथ घर में भी रहता है और
घाट पर भी जाता है। फेसबुक से साभार।

अब पेश है..... मेरी पसंद...... सब का मंगल हो🙏

सम्मान से अधिक प्रोत्साहन देना आवश्यक है -सतीश सक्सेना
लोग कहते थे कि इतनी टिप्पणियां कोई एक व्यक्ति कर ही नहीं सकता यह असंभव ही था कि एक व्यक्ति इतने ब्लॉगों पर जाकर पढ़े और टिप्पणी करे ! कुछ कहते थे कि उन्होंने कोई सॉफ्टवेयर बनवाया है जो इतनी टिप्पणी रोज करता है और कई उनकी मजाक बनाते थे कि वे किसी ब्लॉग को पढ़ते नहीं है बस खुद के ब्लॉग पर टिप्पणी पाने के लिए वे सबके ब्लॉग पर नियमित टिपियाते हैं ! मगर सच्चाई यही थी कि उनकी टिप्पणी पाने पर एक जोश महसूस होता था कि मैंने कुछ अच्छा लिखा है जो कनाडा से उड़नतश्तरी ने आकर कमेंट दिया है ! हिंदी ब्लॉगिंग को बढ़ाने में समीर लाल का योगदान अमर और सैकड़ों लेखनियों के लिए जीवन दायक रहा , इस योगदान के लिए वे हमेशा वंदनीय रहेंगे

दोहागीत "फीके हैं त्यौहार"
आपाधापी की यहाँ, भड़क रही है आग।
पुत्रों के मन में नहीं, माता का अनुराग।।
बड़ी मछलियाँ खा रहीं, छोटी-छोटी मीन।
देशनियन्ता पर रहा, अब कुछ नहीं यकीन।।
छल-बल की पतवार से, कैसे होंगे पार,
भाई-भाई में नहीं, पहले जैसा प्यार।।

उफ्फ… भावनाओं का आहत होना
मेरी भावनाएं पता नहीं कैसी हैं आहत ही नहीं होतीं। पूरा जोर लगाने के बाद भी नहीं। यह तब भी खामोश रहती हैं, जब बीवी इन्हें बड़ी निर्ममता से आहत करती है।  कई दफा तो मैं रास्ता चलते लोगों से इस बात पर भिड़ जाता हूं कि वे मेरी भावनाओं को आहत करें। इस बहाने थोड़ा फेमस होने का बहाना मुझे भी मिल जाए। मैंने देखा है, जिनकी भावनाएं आहत होती हैं वे रातों-रात प्रसिद्धि के शिखर पर जा बैठते हैं। हर किसी की जुबान पर बस उन्हीं के चर्चे होते हैं।

अधरों के मृगजल - -

कविता, सभी विसंगतियों को एक बिंदु पर मिलाने का प्रयास, हर सुबह एक निःशर्त अनुबंध उजाले के साथ, हर रात गाढ़ अंधकार से एक अंध समझौता, टूटती बिखरती गिरती संभलती बढ़े जाए हर हाल में सांसों की सरिता, अनसुलझे समीकरण में कहीं, जीवन लिखे जाता है,

और अंत में अंतिमा
 जैसे मुझे पता था कि वहां पहुँचते ही सब खत्म हो जायेगा. इसलिए मैं उस जगह से बस कुछ कदम दूर पर ही रुक गयी. यह रुकना फिर देर तक रुके रहना बनता गया. मैंने इस तरह के सुख को कभी महसूस नहीं किया था. यह कित्ता बड़ा सुख था कि जहाँ पहुंचने की शदीद इच्छा है उस जगह के मुहाने पर पहुंचकर ठहरे हुए होना. आश्वस्ति यह कि बस दो कदम बढ़ाये और पहुँच गए. लेकिन उसके बाद क्या? उसके बाद फैला एक निर्जन सन्नाटा और कुछ उदासी कि अब इस तरह कुछ कदम बढ़ाकर पहुँचने की जगह कोई नहीं बची.

अटकन चटकन
कुंती के स्वभाव की चर्चा आसान है, परन्तु लोगों के गलत व्यवहार ने उसे बचपन से चिढ़ने का कारण दिया, बड़ी बहन के विरुद्ध खड़ा किया - इसे हंसकर टाला नहीं जा सकता । एक चेहरे के प्रति यह रवैया कितना खतरनाक होता है, इस कहानी के माध्यम से समझा जा सकता है, समझने की ज़रूरत है । रंग रूप में भेद करते हुए घर के,आसपास के लोगों ने कुंती के मन को खतरनाक बना दिया, उसका उद्देश्य ही रहा - सुमित्रा का अपमान ! जबकि सुमित्रा की सारी सोच कुंती के प्रति थी, कुंती की पसंद,कुंती का सुख ... लेकिन कुंती का मन मंथरा हो चुका था, यूँ कहें कैकेई ! 
धन्यवाद..

8 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात..
    बेहतरीन अंक
    आभार आपका
    सादर...

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  2. अच्छे लिंकों का संयोजन है आदरणीय कुलदीप ठाकुर जी।
    आप ही पाँच लिंकों की चर्चा में मेरे ब्लॉग उच्चारण की पोस्ट ले लेते हो।
    धन्यवाद आपका।

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  3. सभी रचनाएँ अपने आप में अद्वितीय हैं मुग्ध करता हुआ पांच लिंकों का आनंद, मुझे शामिल करने हेतु असंख्य आभार - - नमन सह।

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  4. खूबसूरत भूमिका के साथ बहुत सुंदर प्रस्तुति ।

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  5. वहुत खूबसूरत प्रस्तुति
    आभार
    सादर

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  6. सुन्दर और सार्थक लिंकों का चयन। सभी रचनाकारों को बधाई।

    जवाब देंहटाएं

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