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शुक्रवार, 18 सितंबर 2020

1890..सच में ! कल भाग गई थी कविता

 शुक्रवारीय अंक में

आप सभी का स्नेहिल

अभिवादन।

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दूसरों को आईना दिखाने की होड़ में,

देख पाते नहीं हम सूरत कभी अपनी।


स्वर्ग बन जाती कब की अपनी धरती,

जो होती एक-सी हमारी कथनी-करनी।

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मेरे शहर की भोर में

होती नहीं आजकल

सोंधी सुगंध रोटी की, 

न ही दाल-भात में सनी दुपहरी

और न ही गोल रोटी की तरह

 चाँद को निहारती सुखभरी नींद,

चौक-चौराहों पर,बाज़ार-दोराहों पर

उदास और मायूस ...

ऊपर से बेखौफ़ और 

भीतर ही भीतर सहमी आँखें

वस्तुओं के दाम ऊँचे स्वर में 

तोलती-मोलती,

सबकी नज़रें बचाकर

बार-बार ज़ेब की रेज़गारी टोहती

चुनती-बीछती मिलती हैं 

चुटकीभर जरूरतें

 

और आपके शहर में....?

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आइये आज की रचनाएँ पढ़ते हैं-

पूछो न हिसाब मुझसे


बेवफ़ा हूँ मैं, ये सारी दुनिया कहती है

दिया न गया, कोई मुनासिब जवाब मुझसे ।


अँधेरे को समझना होगा नसीब अपना 

नाराज़ है 'विर्क', प्यार का आफ़ताब मुझसे ।


अमरत्व

इस ब्रह्माण्ड में

सब कुछ

परिवर्तित होता है

विलीन नहीं


कल भाग गयी थी कविता

कानफोड़ू जयकारों से

न चाहकर भी भरमाते हुए

सच में ! कल भाग गई थी कविता

आज लौटी है 

विद्रुप सन्नाटों के बीच

न जाने क्या खोज रही है .


श्राद्ध भोज बंद होना चाहिए

श्राद्ध क्या है ? 

श्रद्धा से किया गया कर्म को श्राद्ध कहते हैं | 

जिस काम में श्रद्धा नहीं है वह श्राद्ध नहीं है | 

परिवार में किसी की मृत्यु होने पर उनकी 

आत्मा की शांति के लिए लोग श्रद्धा पूर्वक 

भगवान से दिवंगत आत्मा की 

शांति के लिए प्रार्थना करते हैं |


तरक़्क़ी की महक ...

अबोध मन को समझाना न झुँझलाना तुम

आश्वासन की पटरी पर अंधा बन न लेटा करे।

तरक़्क़ी की महक फैलाती दौड़ती है लौहपथगामिनी !

उत्साह के झोंके की रफ़्तार को यों न बाँधा करे।



ग़लत पता ...

हो सके तो सजल ज़िन्दगी का

आभास छोड़ जाना, मुझे

ज्ञात है रस्मे दुनिया

का फ़रेब, कुछ

मरहमी

स्पर्श

अनायास छोड़ जाना, ग़लत ही

सही कोई ठिकाना, मेरे

पास छोड़ जाना।

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आज बस इतना ही
कल का अंक पढ़ना न भूले

कल आ रही हैं विभा दीदी अपनी 

चमत्कारिक प्रस्तुति के साथ
-श्वेता


17 टिप्‍पणियां:

  1. अद्भुत प्रस्तुति...
    आभार..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. ब्रेड पिज्जा के शहर में दाल-भात में सनी दुपहरी मना रही हूँ
    क्या खूब भूमिका लिखा गया है.. काश छुटकी तू पास होती... ताप थोड़ा छन कर आई.. पूरा ले लेती

    बेहद सराहनीय प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  3. शानदार..
    स्वर्ग बन जाती कब की अपनी धरती,
    जो होती एक-सी हमारी कथनी-करनी।
    सादर नमन..

    जवाब देंहटाएं
  4. श्राद्ध भोज बंद होना चाहिए का लिंख किसी और पन्ने पर ले जा रहा है।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. http://www12.widgetserver.com/ पर। चिट्ठाकार को एड रिमूवर साफ़्टवेयर चलाना चाहिये।

      हटाएं
  5. जीवन के कई पहलुओं को स्पर्श करती हुई, कई अलग-अलग रचनाओं से सजी आज की आपकी प्रस्तुति बेहतरीन है।
    ख़ासकर एक संदेशात्मक आलेख मन को कुछ ज्यादा ही स्पर्श किया। हर युवापीढ़ी को वह आलेख पढ़नी चाहिए, वर्तमान ना सही, भविष्य तो कम से कम निखरने की उम्मीद रहेगी।
    सच में आडंबरयुक्त श्राद्ध भोज बन्द होनी ही चाहिए।

    "ये लोग अन्धविश्वासी भी हैं इसीलिए इन रीतियों का पालन अक्षरश: करते हैं."- पाँच सौ % सही कथन।
    "श्रद्धा सुमन अर्पित करना अच्छी बात है."- श्रद्धा सुमन में श्रद्धा लोगों ने बिसरा कर बस सुमन की अर्थी ही अर्पित करना जान गए हैं हम।
    प्रसंगवश -
    महाभारत युद्ध होने का था, अतः श्री कृष्ण ने दुर्योधन के घर जा कर युद्ध न करने के लिए संधि करने का आग्रह किया, तो दुर्योधन द्वारा आग्रह ठुकराए जाने पर श्री कृष्ण को कष्ट हुआ और वह चल पड़े, तो दुर्योधन द्वारा श्री कृष्ण से भोजन करने के आग्रह पर कहा कि
    ’’सम्प्रीति भोज्यानि आपदा भोज्यानि वा पुनैः’’
    हे दुयोंधन - जब खिलाने वाले का मन प्रसन्न हो, खाने वाले का मन प्रसन्न हो, तभी भोजन करना चाहिए।
    लेकिन जब खिलाने वाले एवं खाने वालों के दिल में दर्द हो, वेदना हो।
    तो ऐसी स्थिति में कदापि भोजन नहीं करना चाहिए।
    हिन्दू धर्म में मुख्य 16 संस्कार बनाए गए है, जिसमें प्रथम संस्कार गर्भाधान एवं अन्तिम तथा 16वाँ संस्कार अन्त्येष्टि है। इस प्रकार जब सत्रहवाँ संस्कार बनाया ही नहीं गया तो सत्रहवाँ संस्कार तेरहवीं संस्कार कहाँ से आ टपका।
    इससे साबित होता है कि तेरहवी संस्कार समाज के चन्द चालाक तथाकथित ब्राह्मण नामक प्राणी के दिमाग की उपज है।
    किसी भी धर्म ग्रन्थ में मृत्युभोज का विधान नहीं है।
    हमें जानवरों से सीखना होगा कि जिसका साथी बिछुड़ जाने पर वह उस दिन चारा नहीं खाता है। जबकि 84 लाख योनियों में श्रेष्ठ मानव, जवान आदमी की मृत्यु पर हलुवा पूड़ी खाकर शोक मनाने का ढ़ोंग रचता है .. शायद ...

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत सुंदर प्रस्तुति..
    शुभकामनाएँँ

    जवाब देंहटाएं
  7. काफी दिन के बाद दिखी दी...
    मन प्रसन्न हुआ..
    अच्छी प्रस्तुति...
    सादर नमन..

    जवाब देंहटाएं
  8. सही कहा ... सारे शहरों का एक जैसा ही हाल है । स्वर्ग के लिए प्रतीक्षारत .... हार्दिक आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  9. संकलन की सारी रचनायें एक से बढ़कर एक है श्वेता जी .. बहुत खूब

    जवाब देंहटाएं
  10. बेहतरीन प्रस्तुति श्वेता दी।मेरी रचना को स्थान देने हेतु सादर आभार।

    जवाब देंहटाएं
  11. सबसे पहले सुस्वागतम् प्रिय श्वेता! पांच लिंक मंच पर बहुत दिन के बाद तुम्हारी उपस्थिति से अपार हर्ष हुआ। बेहतरीन रचनाओं के साथ भूमिका में तुम्हारी संवेदनशील रचना पढ़कर संतोष हुआ कि तुमने कलम उठाई तो सही। यही कहना चाहती हूँ---
    दौलतमंद मस्त हैं,
    आम आदमी पस्त है//
    उसका मसला हर दिन रोटी दाल है,
    दूसरासंकटकाल में भी मालामाल है//
    सभी रचनाकारों का हार्दिक अभिनंदन है। सुबोध जी ने श्राध कर्म पर सशक्त तर्क के साथ अपनी बात रखी। दिखावे और पाखण्ड से दूर हमारे पूर्वजों ने अपने पितृ पुरुषों के प्रति श्रद्धा जताने के लिए ही इस श्राद्ध पक्ष की शुरुआत की होंगी पर कालांतर में इसमें विकृतियाँ आती गई। और मैं श्राद्ध कर्म बन्द होना चाहिए वाले रचनाकार की कई बातों से सहमत नहीं। मैंने अपने यहाँ और आसपास देखा है कि लोग तथा शक्ति ,क्षमता श्राद्ध कर्म करते हैं, उधार लेकर करते मैंने किसी को नहीं देखा। हाँ,शायद किसी क्षेत्र में ऐसी परम्परा हो इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता। इस प्रस्तुति के लिए तुम्हेँ सस्नेह शुभकामनायें 🌹🌹🌷🌷

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. रचनाकार महोदय ने श्राद्ध कर्म बन्द करने बात ही नहीं की, बल्कि उनके आलेख का शीर्षक ही है - "श्राद्ध भोज बन्द हो"। उन्होंने श्राद्ध के नाम पर ढोंग और आडंबरयुक्त भोज के बहिष्कार करने की बात कही है। मैं तो कहता हूँ कि भोज के साथ-साथ तोंदिलों को दान (तथाकथित सेजिया दान) करने की प्रथा भी बेमतलब है और पिण्डदान जैसी प्रथा भी। सोचने वाली बात है कि विश्व के 15 से 16% हिन्दू का तो तथाकथित पुनर्जन्म में पिण्डदान के तिल, जौ, चावल इत्यादि के बने लड्डू से अंगों का निर्माण हो जाता है तो फिर विश्व की 84 से 85% आबादी का अंग निर्माण कैसे होता होगा भला ???
      रही बात कर्ज़ लेकर श्राद्ध करने या दहेज़ देने की बात तो ये तो आम बात है। प्रेमचन्द की कई कहानियों में ऐसे निरीह पात्र मिल जाएंगे। आसपास तो अनगिनत जीवित पात्र मिलते हैं ऐसे। वो सौभाग्यशाली हैं जिनके इर्दगिर्द ऐसे निरीह पात्र नहीं हैं .. शायद ...
      अगर कुछ बातें तर्कसंगत या उचित रही भी होगी हमारे पुरखों के सनातनी सोचों में तो हमारे वर्तमान की हुआँ-हुआँ वाली संस्कृति ने श्रद्धा-सुमन से श्रद्धा गायब कर के केवल मृत सुमन को अर्पित करने की तरह हर सही संभावनाओं को भी अपभ्रंश कर के चौपट कर दिया है .. शायद ...

      हटाएं
    2. जी , मुझे इन सब बातों का ज्ञान नहीं, जब हम बच्चे थे तो हमारे यहाँ मात्र मेरी बड़ी दादी जी का श्राद्ध किया जाता था, क्योकि  मेरे परिवार के अनुसार  बाकी दिवंगतों की आत्मा शांति गया जी में करवाइ गई थी,जिससे उनका श्राद्ध  नहीं किया जाता था।     सुबह -सुबह हमारी माता जी देहरी लीप कर वहाँ कुछ हल्दी लगे चावल  बड़ी श्रद्धा से रखती और साथ में  वहाँ तोरी के पीले फूल सजाती। फिर कहती कि देहरी ना लाँघना, बड़ी अम्मा आयेगी आज, उनका दिन है। सादा सा भोजन करवाया जाता उनके नाम पर। कहने का भाव ये कि  बच्चों के मन में दिवंगत परिजनों के प्रति श्रद्धा का ये पहला भाव था, जो बोया गया था। बहुत आडंबर मैंने नहीं देखा |श्रद्धा और आस्था किसी भी तर्क से परे हैं। हाँ इतना जरुर  मेरा भी मत है - हम दिवंगतों के प्रति कुछ करें तो ऐसा करें जो समाज और मानवता के कल्याण हित हो। और भावी पीढी  इस तरह की बात से दूर है। कोई कवायद ही नही करनी  पड़ेगी  ये रस्म रिवाज खुद खत्म हो जाने वाले हैं। वो दिन  दूर नही। और मुझे लगता है लोग अपनेपरिवार बच्चों के लिए बहुत कुछ करते हैं। पाखण्ड से दूर रह   अपने दिवंगत परिजनों  के  नाम पर कुछ करना  कोई बुरी बात नहीं, हां कर्ज लेकर कुछ उनके नाम पर करेंगे, ये उचित नहीं है। दूसरे यदि कोई जीते जी अपनों को खुशी नही देता तो उनके श्राद्ध का कोई महत्व नहीं। 

      हटाएं
  12. स्वर्ग बन जाती कब की अपनी धरती,
    जो होती एक-सी हमारी कथनी-करनी।
    सुन्दर सार्थक भूमिका के साथ लाजवाब प्रस्तुति सभी लिंक्स बेहद उम्दा...।
    सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।
    सही कहा सखी रेणु जी ने भूमिका में श्वेता जी की रचना पढी आजकल आपकी सुन्दर रचनाओं के लिए तरस गये हैं, बहुत दिनों से आप नहीं दिखी सब सकुशल तो है न ?
    अब मौन त्यागकर आ भी जाइये अपने सुन्दर सृजन के साथ, हमें आपका इंतजार है।

    जवाब देंहटाएं

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