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शनिवार, 19 सितंबर 2020

1891... जिज्ञासा

सभी को यथायोग्य

प्रणामाशीष

एक पल में टूट जाए सांस के ये धागे

तू जो मुंह फेरे सखी देह प्राण त्यागे

 पल पल तू देख मुझे ज़िंदगी गुजार दूँ

दूसरा उदाहरण

नायक नायिका के भाई का कत्ल करता है, जेल जाता है। नायिका के परिवार पर दबाव डलवाता है कि उसको निर्दोष साबित करने वाले पेपर पर हस्ताक्षर हो। नायिका के घर ,जेल से आता है और नायिका के कनपटी पर पिस्टल रखता है लेकिन नायिका की आँखों में उसे भय नहीं दिखलाई देता है जिसकी वजह से उसका चैन छीन जाता है और वह इश्क ... हाऊ... कैसे....

कवि और कविताएँ

चातक हैं, केकी हैं, सन्ध्या को निराश हो सो जाता है,

हारिल हैं – उड़ते –उड़ते ही अन्त गगन में खो जाता हैं ।

कोई प्यासा मर जाता हैं कोई प्यासा जी लेता हैं

कोई परे मरण जीवन से कडुवा प्रत्यय पी लेता हैं,

रहस्यवाद की अवस्थाएं

जिज्ञासा में साधक के मन में अज्ञात सत्ता के प्रति आकर्षण व उत्कंठा का भाव जागृत होता है। यह स्थिति न्यूनाधिक समस्त छायावादी कवियों के काव्य में पाई जाती है। दूसरी स्थिति में अज्ञात के प्रति आकर्षण एवं उत्कंठा तीव्र होने लगती है। साधक की आत्मा उस अज्ञात रहस्यमयी सत्ता को पाने के लिए व्याकुल हो उठती है। खोज का परिणाम होता है-मिलन। इस स्थिति में साधक की आत्मा अपने साध्य के साथ एकाकारता का अनुभव कर समस्त सुख-दुखों एवं साधना-पथ में आने वाली तमाम कठिनाइयों से ऊपर उठ कर एक चरम आनंद की उदात्त अनुभूति में डूब जाती है।

अथातो बसंत जिज्ञासा

 रसिक वह है जो नाट्य रस का आस्वाद लेने में सक्षम है। जिसमें सुरुचि, शिष्टता और बौद्धिक क्षमता है। रस जिनका और अधिक विस्तार करता है। लेकिन जबसे सिनेमाघरों और सड़कों पर सीटियां बजाने और फब्तियां कसने वालों को रसिक समझा जाने लगा है, तबसे किसी को रसिक कहना 'काव्यशास्त्रीय' नहीं 'जोखिम' की बात हो गई है।

अब जबकि जान गया हूँ

जबकि जान गया हूँ आकाश से की गई प्रार्थना व्यर्थ है

मेघ हमारी भाषा नहीं समझते

धरती माँ नहीं

तो भी सुबह पृथ्वी पर खड़े होने के पहले अगर उसे प्रणाम कर लूँ तो...

यदि आकाश के आगे झुक जाऊँ तो

बादलों से कुछ बूँदों की याचना करूँ तो

अपनी केवल धार 

कहने को तो वे भी कहती ही आई हैं कि हमने आपको केवल सभ्यता दी, विज्ञान दिया, और तंत्र दिया। संसाधन और क्षमताएं तो सब आपके पास थीं ही। दिमाग़ आपका था, ज्ञान हमने दिया। शक्ति आपके पास थी, लेकिन सोई हुई। हमने आपको सदियों की नींद से जगाया। आपको बताया कि आपके अतीत में गर्व करने को क्या है, और शर्म करने को क्या!

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भेंट होगी...

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9 टिप्‍पणियां:

  1. अब मैं जान गई हूँ..
    किसी विषय-विशेष पर आपसे
    अच्छा शोध कोई नहीं कर सकता..
    सादर नमन..

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत ही बढ़ियाँ..विशेष विषय पर प्रस्तुति।
    धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  3. सराहनीय रचनाएँँ है सारी हमेशा की तरह बेहतरीन अंक दी।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
  4. वाह !कई जिज्ञासाओं को शांत करती तो कई को जगाती महत्वपूर्ण प्रस्तुतिआदरणीय दीदी | जिज्ञासा मानव का सहज गुण है| शैशवकाल से जीवन की अंतिम साँस तक जिज्ञासाएं प्रबल रहती हैं | जिज्ञासा के बूते ही मानव ने शून्य से शिखर का सफ़र तय किया है | तो अणु से परवाणु तक की यात्रा की है | आज की प्रस्तुति में सभी रचनाएँ एक से बढ़कर एक हैं | अज्ञेय जी की मार्मिक रचना के साथ अरुण कमल जी की अत्यंत प्रसिद्द रचना ' अपनी केवल धार ' पढ़ना बहुत अच्छा लगा | मेरा विशेष आग्रह
    है कि रहस्यवाद की अवस्थाएं जानिये और साथ में 'अथातो बसंत जिज्ञासा' जैसा शानदार व्यंग पढेंगे तो सभी को बहुत अच्छा लगेगा |सभी को शुभकामनाएं और आपको आभार और बधाई इस बेमिसाल प्रस्तुति पर |

    जवाब देंहटाएं

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