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बुधवार, 16 सितंबर 2020

1888..ये सितंबर और शामें...

 ।। भोर वंदन ।।
"उषे!बतला यह सीखा हास कहाँ?
इस नीरस नभ में पाया है
तूने यह मधुमास कहाँ ?
अन्धकार के भीतर सोता
था इतना उल्लास कहाँ ?
सूने नभ में छिपा हुआ था
तेरा यह अधिवास कहाँ ?
अपने ही हँसने पर तुझको
क्षण भर है विश्वास कहाँ ?"
रामकुमार वर्मा 
बीते दिनों के दौरान कई ऐसी बातें हुई हैं कि बहुत सवाल खड़े हुए और 
हम सभी सवाल, बवाल में उलझे रहें,नज़रें गड़ाये रहे कभी टीवी चैनलों पर 
तो कभी अख़बारों में..पर बहुत कुछ बिखरा लगता है... 
पर..मायूस न हो..लीजिए पेश  खिदमत  है शब्दों के रूप प्रतिरूपों को..
रचनाकारों के नाम क्रमानुसार पढ़ें..✍️
आ० प्रतिभा कतियार जी
आ० राहुल उपाध्याय जी
आ० आकिब जावेद जी
आ० सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी जी
आ० सुधा देवरानी जी
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सितम्बर का प्यार

ठीक उस वक़्त जब आप देख रहे होते हैं
ढलता हुआ सूरज
और महसूस करते हुए अपने भीतर
उतरता हुआ कोई गहराता अकेलापन
चाय की प्यालियों के ठीक बगल में बैठकर
चुपके से मुस्कुराता है सितम्बर का प्यार




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तुम भाषा नहीं बीवी हो

तुम भाषा नहीं बीवी हो
कि एक से ज़्यादा आ गई
तो जीवन में परेशानियाँ बढ़ जाएँगी

देखो नई वाली कितनी अच्छी है
सब काम फटाफट
बिना रोक-टोक के हो जाते हैं
घर-बाहर, ऑफ़िस-स्कूल, आस-पड़ोस 
सब जगह फ़िट हो जाती है..
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पक्षियों की चहचहाट
के मध्य मद्धम मद्धम
हवा में घुल रही
पुष्पो की महक
जिसमें नज़र आती है
तुम्हारे साथ बिताए
हुए सम्पूर्ण पल..


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पड़ोसी मुल्‍क के पाव-पाव सेर वाले एटम बम और 

हमारे ढाई-ढाई सौ ग्राम के वरिष्‍ठ पत्रकार, है कोई समानता ?

जैसे पड़ोसी मुल्‍क में पाव-पाव भर तथा आधा-आधा सेर के ‘परमाणु बम’ हैं, उसी प्रकार हमारे यहां ढाई-ढाई सौ ग्राम और 
आधा-आधा किलो के ‘वरिष्‍ठ पत्रकार’ हैं।
आप चाहें तो पूछ सकते हैं कि इन वरिष्‍ठ पत्रकारों की 
तुलना पड़ोसी मुल्‍क के परमाणु बमों से क्‍यों ?
तो इसका जवाब यह है कि जितने खतरनाक पड़ोसी मुल्‍क के 
‘चवन्‍नी छाप’ परमाणु बम ...
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सोसाइटी में कोरोना की दस्तक


Covid 19 fear ; lockdown
माफ कीजिएगा इंस्पेक्टर साहब ! आपसे एक रिक्वेस्ट है कृपया आप 
सोसाइटी के गेट को बन्द न करें और ये पेपर मेरा मतलब नोटिस....
हाँ ...इसे भी गेट के बाहर चिपकाने की क्या जरूरत है  आप न इसे हमें दे दीजिए हम सभी को वॉर्न कर देंगे, और इसे यहाँ चिपकाते हैं न...ये सोसाइटी ऑफिस के बाहर ....यहाँ सही रहेगा ये ....
आप बेफिक्र रहिए....सोसायटी के प्रधान राकेश चौहान ने 
जब कहा तो इंस्पेक्टर साहब बोले; 
चौहान जी मुझे ये नहीं समझ मे नहीं आ रहा

🌺🌺
।। इति शम ।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह 'तृप्ति'...✍️










4 टिप्‍पणियां:

  1. अति रुचिकर एवं अनंदकर प्रस्तुति। उत्साह और सद्विचारों के साथ अच्छे सिन को शुरुवात।
    हृदय से आभार व आप सबों को सादर प्रणाम।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत ही प्यारा रचना संकलन

    जवाब देंहटाएं

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