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मंगलवार, 15 सितंबर 2020

1887...प्रतिबिम्ब को है अस्तित्व का संशय...


शीर्षक पंक्ति: आदरणीय शांतनु सान्याल जी की रचना से

सादर अभिवादन। 

मंगलवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।

कोई खड़ा सहरा में 
खड़ा कोई गुलशन में,
देखा है और देखेंगे 
है कितना दम दुश्मन में।

#रवीन्द्र_सिंह_यादव

आइए अब आपको आज की पसंदीदा रचनाओं की ओर ले चलें-



जैसे थे वैसे ही खड़े रहे 
 एक सजग प्रहरी की तरह 
जाने कितने पक्षियों का आसरा बने 
 एक पालक की तरह। 

 डॉ. जेन्नी शबनम
 शिक्षा पद्धति ऐसी है कि बच्चे हिन्दी बोल तो लेते हैं परन्तु समझते अंग्रेजी में हैं। हिन्दी में अगर कोई स्क्रिप्ट लिखना हो तो रोमन लिपि में लिखते हैं। पर इसमें दोष उनका नहीं है; दोष शिक्षा पद्धति का है क्योंकि हिन्दी की उपेक्षा होती रही है। सभी विषयों की पढ़ाई अंग्रेजी में होती है, तो स्वाभाविक है कि बच्चे अंग्रेजी पढना, लिखना और बोलना सीखेंगे। हिन्दी एक विषय है जिसे किसी तरह पास कर लेना है, क्योंकि आगे काम तो उसे आना नहीं है चाहे आगे की पढ़ाई हो या नौकरी या सामान्य जीवन।  

मेरी फ़ोटो


तुम बुझा कर प्यास चल दीं लौट कर देखा नहीं,  
हममुनिस्पेल्टीके नल से बारहा रिसते रहे.

कागज़ी फोटो दिवारों से चिपक कर रह गई
और हम चूने की पपड़ी की तरह झरते रहे.


 

प्रतिबिम्ब को है
अस्तित्व का
संशय,
हिसाब मांगता रहा हृदय,  -
कभी थी उत्सुकता
सुबह की दस्तक
की,

alt="HINDIDIWAS2020"


इन्टरनेट पर जहाँ कहीं भी
अंग्रेजी हो मजबूरी,
वहाँ छोड़कर हो प्रयास कि
हिंदी से हो कम दूरी....


आज बस यहीं तक 
फिर मिलेंगे आगामी गुरूवार। 

#रवीन्द्र_सिंह_यादव

7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  2. असंख्य धन्यवाद - - सुन्दर प्रस्तुति एवं संकलन, तहे दिल से आपका शुक्रिया - - नमन सह।

    जवाब देंहटाएं
  3. सभी लिंक लाजवाब हैं ...
    आभार मेरी गज़ल को जगह देने के लिए ...

    जवाब देंहटाएं
  4. यहाँ प्रस्तुत सभी रचनाओं को मैं पढ नहीं सका लेकिन जिन-जिन रचनाओं को मैंने पढा वे रचनाएं सराहनीय योग्य है। रचनाएं अपनी सार्थकता प्रदर्शित करने में सफल रही। इनके रचनाकारों का अभिनंदन और आपका भी इस प्रस्तुति को हमारे साथ साझा करने के लिए।

    जवाब देंहटाएं
  5. सुप्रभात
    मेरी रचना शामिल की धन्यवाद |उम्दा प्रस्तुति |

    जवाब देंहटाएं

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