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बुधवार, 9 सितंबर 2020

1881..बातों की क्या कहिये,बातों से है ...

।। प्रातः वदंन ।। 
"मैं क्या जिया? मुझको जीवन ने जिया
- बूँद-बूँद कर पिया, 
मुझको पीर पथ पर ख़ाली प्याले-सा छोड़ दिया 
 मैं क्या जला? 
 मुझको अग्नि ने छला"
 धर्मवीर भारती
जीवनदर्शन के विभिन्न आयामों को दर्शाती पंक्तियों के साथ अब आनंद ले
 साहित्य के विभिन्न रूप को ..और मेरी प्रस्तुत करने की कोशिश..
पढें ✍️
⚜️⚜️



मौत का है सिलसिला पर, ज़िन्दगी अपनी जगह
दर्द का अम्बार है और शायरी अपनी जगह

आज ये अम्बर पटा है और ज़मीं दुश्मन बनीं
चार सू है तीरगी पर रौशनी अपनी जगह
बेवजह क्यों रोकते हो, निभ नहीं सकती अगर..
⚜️⚜️
मोहब्बत में नहीं है फर्क जीने और मरने का ,
उसी को देख के जीते हैं ,जिस काफ़िर पे  दम निकले। 



हमारा वक्त विरोधा -भासों का  वक्त है वैसे वक्त कब किसी का सगा हुआ है 
आज वर्ल्ड इकनोमिक फोरम जो खुद अमीरी का पोषक है 
अमीरी को दुनिया के लिए सबसे बड़ा खतरा (गरीबी )बता रहा है..

⚜️⚜️




जुड़ते हैं यहाँ जो प्यार से बंध के,
करते हैं भरोसा प्यार से बढ़ के।
एक पल में ऐसा होता है क्या?-
रिश्ते भी दिलों के क्यूँ रिसते...
⚜️⚜️
कमल उपाध्याय की अफ़वाह..  कुछ पल
कमल - डीडी न्यूज़ पर
बैंड स्टैंड के किनारे एक पत्थर पर बैठकर , एक नज्म को रंग रूप देने की 
जद्दोजहद में लगा था। वैसे तो मुंबई में ठंड नही पड़ती लेकिन आजकल 
तापमान २०° चल रहा था। हम जैसे बॅाम्बे में पले बढ़े और 
मुंबई में रहनेवालों के लिए इस तापमान को ही 
ठंड का विकराल रूप मान लिया जाता है।


⚜️⚜️



बातों की क्या कहिये,बातों से है अनंत-अथाह संसार,

जन्म से मृत्यु तक शब्दों से बंधा है जीने का आधार।



ये बातें तोतली जुबां मा,पा,डा से,शुरू जो होती हैं तो,

बुढ़ापे की बेचैन,अनमनी बुदबुदाहट पे ही,ठहरती हैं।

।। इति शम ।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह 'तृप्ति'...✍️



10 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर प्रस्तुति पम्मी जी सभी लिंक सुंदर पठनीय।
    सभी रचनाकारों को बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  2. मेरी रचना " ये बातें " को पाँच लिंकों का आनंद में स्थान देने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद पम्मी सिंह 'तृप्ति' जी !🙏 😊

    जवाब देंहटाएं

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