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गुरुवार, 10 सितंबर 2020

1882..फिर देख फिर समझ लोकतंत्र

सादर अभिवादन
आज हम भाई रवीन्द्र जी की जगह
कोई बात नहीं
मै हूँ न
मैं वो सवाल हूँ , 
जिसका कोई जवाब नहीं…
तू गर मुझमे हो ! 
जिंदगी का कोई ख्वाब नहीं…..

चलिए चलें रचनाओं की ओर..

सांध्य सुंदरी बन के अप्सरा
भू लोक पर आई
देख धरा का रूप सलोना
मन ही मन सकुचाई

हरित रंग की ओढ़े चूनर
सतरंगी फूलों के झूमर
मादक सी पछुआ बयार से
धान फसल हरषाई


हिरण्य झुमका हेमांगी का
मंजुल शुभ रत्न जड़ा है।
रात रूपसी रूप देखकर
जड़ होके समय खड़ा है।
है  निसर्ग सौंदर्य बांटता
ज्ञान बांटता ज्यों ज्ञानी।।


जिन्दगी इस हद तक
घिसटती जाएगी
फिर से गाड़ी पटरी पर
लौट न पाएगी |
हुआ है जीवन एक ऐसा  बोझा
जिसे सर पर भी उठा नहीं पाते
किसी मशीन का ही
सहारा लेना पड़ता है


होठों ने चाहा था कह देना
मन की हर पीड़ा
कि फिर न रहे कोई दर्द,
सिर झुका रहा देर तक
इस आस में कि रख दोगे तुम हाथ
और दोगे सांत्वना
दोगे साहस जीवन जीने का,
सब मिल करते रहे प्रतीक्षा
पर तुम नहीं आए
तुम नहीं आए।


और एक तू बेशरम है
सब कुछ देखते सुनते हुऎ 
अभी तक दलाली के पाठ को नहीं सीख पाता है
तेरे सामने सामने कोई तेरा घर नीलाम कर ले जाता है

'उलूक'
जब तू अपना घर ही नहीं बेच पाता है 
तो कैसे तू
पूरे देश को नीलाम करने की तमन्ना के
सपने पाल कर 
अपने को भरमाता है ।
....
आज बस
कल की कल
सादर

10 टिप्‍पणियां:

  1. मै हूँ न!
    –बहुत बड़ा सम्बल है ये तीन शब्द!
    –सस्नेहाशीष अशेष शुभकामनाओं के संग
    –सराहनीय प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  2. उम्दा प्रस्तुती |मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार सहित धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर पुष्प गुच्छ सा संकलन । मेरी रचना को मान देने के लिए सादर आभार यशोदा जी !

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुंदर प्रस्तुति,कुछ भी हो आप सब संभाल ही लेते हो साधुवाद।
    सभी रचनाकारों को बधाई।
    मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
  5. सुंदर सारगर्भित रचना का समूह
    बेहतरीन प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं

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