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गुरुवार, 20 अगस्त 2020

1861...नौकरियों के विज्ञापन...


सादर अभिवादन। 



गुरुवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है। 


 आँकड़े कहते हैं 
केन्द्र सरकार 
साल में सवा लाख 
नौकरियों के विज्ञापन 
प्रकाशित करती है 
2.5 से 3 करोड़ 
आवेदन मिलते हैं 
यदि प्रत्येक परीक्षार्थी 
न्यूनतम 100 रूपये 
आवेदन शुल्क
के साथ आवेदन करता है 
तो.... 
सरकार को कितनी रकम मिली?
-रवीन्द्र 


आइए अब पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-



 मेरी फ़ोटो


लोक तंत्र को कर रहे, नेता आज हलाल,

लोक खड़ा हो देखता, करता नहीं मलाल;

करता नहीं मलाल, पेट की चिंता भारी ,

छूट चुके सब काम, लोक की यह लाचारी;



 जहां फुटपाथ बिछौना आसमां छत है

 वह जिन्दगी की क्या बात करे।

 काश हमारे भी आँगन में  सूर्य मुखी खिलता

तन की थकन मिटाने को कोई बिछौना होता

पांव के नीचे धरती सर पर  छत  अम्बर का

किस्मत में सूखी रोटी नमक प्याज ही लिखता।

 

अनायास ही खुल गए स्मृति के बंद किवाड़

मंदिर जाने के मार्ग में पड़ता था एक घर

टूटी-फूटी ईंटों से झांकता कुटिया का कोना

ढिबरी की रोशनी में मंजीरों का स्वर मधुर

एक साधु अपने में मगन गाता रहता भजन






My photo
 झूठ   कब   पायदार   है   इतना,
दो क़दम चल के गिर ही जाना है।
ज़िन्दगी    दायमी   नहीं    प्यारे,
एक  दिन मौत सबको  आना है।

 




पहनकर बैठी लाल चुनरिया 

और लाल रंग की चोली। 

पास मेरे तू आजा साजन

नव दुल्हनियाँ बोली। 

*****



 हम-क़दम का नया विषय यहाँ देखिए

आज बस यहीं तक 
फिर मिलेंगे अगले मंगलवार। 

रवीन्द्र सिंह यादव


6 टिप्‍पणियां:

  1. सरकार को मिलने वाली रक़म का हिसाब लेकर जनता को क्या फायदा होने वाला है... राजतंत्र में सवाल वर्जित है...

    सराहनीय प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  2. बेहतरीन प्रस्तुति
    आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह बेहतरीन प्रस्तुति।
    बेहद सुंदर

    जवाब देंहटाएं
  4. सुन्दर प्रस्तुति,हमारी रचना को शामिल करने के लिए आभार।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत ही सुंदर वकमल भावों की प्रस्तुति। सभी रचनाएँ मन को सुखद संदेश देती हुई व समाज के प्रति जागरूक करती हुई।
    पढ़ कर आनंद आया। आप सबों को प्रणाम।

    जवाब देंहटाएं
  6. आजकल लेखन पर भी कोरोना हावी है. पर जीवन किसी के रोके रुकता नहीं.
    यह संकलन भी कहता यही.
    बहुत-बहुत धन्यवाद, रवीन्द्र जी.

    जवाब देंहटाएं

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