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बुधवार, 19 अगस्त 2020

1860..जीवन गुलजार होता है..


।। भोर वंदन ।।
“अल्फाज जो उगते, मुरझाते, जलते, बुझते
        रहते हैं मेरे चारों तरफ,
अल्फाज़ जो मेरे गिर्द पतंगों की सूरत उड़ते
        रहते हैं रात और दिन
इन लफ़्ज़ों के किरदार हैं, इनकी शक्लें हैं,
रंग रूप भी हैं-- और उम्रें भी!”
गुलज़ार
 जन्मदिन की हार्दिक बधाई के संग, ये गुलज़ार-मयी सफ़र, यूँ ही चलता रहे।
साकारात्मक अभिव्यक्ति के साथ आज शुरुआत करते हैं.. ब्लॉग सागर लहरें से...✍️
⚜️⚜️



मर कर किसने देखा है जीवन क्या होता है
जीवन जी कर देखो जीवन गुलजार होता है।।
खिलता है फूल काटों में काटों की फिक्र नही करता
सबके  सुख -दुख में सदा भागीदार होता है।।
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 काव्य कूची...
रिक्त कुम्भ है जग पनघट पर
फिर आस लगी है श्यामल की
काया निस दिन गणित लगाती
जोड़ घटाने में है उलझी 
गुणा भाग से बूझ पहेली..
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कमल उपाध्याय की अफवाह..
वो भी अपने वजूद को लेकर व्याकुल हैं,
विशाल समंदर में कहा कोई उनकी है सुनता,
जबकि उनसे ही समंदर है,
उनके बिना समंदर बस मरुस्थल..
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चिड़िया को
जब देखता हूँ 
तब स्वतंत्रता का 
अनायास 
स्मरण हो आता है
जब चाहे 
उड़ सकती है ..
⚜️⚜️

अश्क बहे जो मेरे तो कोई गम न था।
आसमां के अश्कों ने भी मेरा आंगन धो डाला,
उसके आने के दीदार में।
ये तो मुझे लगा कि मैं रोया था।
⚜️⚜️

हम-क़दम का नया विषय
यहाँ देखिए
⚜️⚜️

।। इति शम ।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह ‘तृप्ति’..✍️


7 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर प्रस्तुति ,हमारी रचना को शामिल करने के लिए धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुंदर प्रस्तुति। सुंदर व नवीन दृष्टिकोण। ह्रदय से आभार। . आप सबों को प्रणाम।

    जवाब देंहटाएं
  3. ब्लॉगर मित्रों की सुन्दर ,ज्ञानवर्धक रचनाओं के सार -संक्षेप के साथ उनके लिंक्स भी प्राप्त हुए ।बेहतरीन प्रस्तुतिकरण के लिए हार्दिक बधाई और आभार ।

    जवाब देंहटाएं

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