---

बुधवार, 6 मई 2020

1755.... माँ...माँ ! गीता, कुरान थी ,गुरु ग्रन्थ शब्द ज्ञान थी

आज का यह अंक पम्मी जी की माताश्री 
स्मृतिशेष श्रीमति मंजू सिंह को समर्पित है

मानसिक व्यथा अति प्रबल
उद्विग्न मन विरक्त प्रतिपल
जीवन मृत्यु शाश्वत सत्य-
मौन शब्द..क्षण क्षण, विकल विकल...

पम्मी सिंह 'तृप्ति'..


माँ 
सृष्टि के समग्र सृजन का 
मूल आधार है
ममता,करूणा,दया,समर्पण
त्याग,बलिदान, सेवा
जैसे भारी-भरकम शब्दों के लिए
एक शब्द है
माँ।
किसी कवि ने सच ही कहा है : 
जन्म दिया है 
सबको माँ ने 
पाल-पोष कर बड़ा किया..
कितने कष्ट 
सहन कर उसने, 
सबको पग पर खड़ा किया..
माँ ही 
सबके मन मंदिर में, 
ममता सदा बहाती है..
बच्चों को 
वह खिला-पिलाकर, 
खुद भूखी सो जाती है..


सुनो न माँ ....श्वेता सिन्हा

तेरे तन पर गढ़ियाती उम्र की लकीर
मेरी खुशियों की दुआ करती है
तू मौसम के रंगों संग घुल-घुलकर
मेरी मुस्कान बनकर झरती है
तेरे आशीष के जायदाद की वारिस 
तेरे नेह की पूँजी सँभाल नहीं पाती हूँ
कैसे बताऊँ माँ तुम क्या हो?
चाहकर भी,शब्दों में साध नहीं पाती हूँ।


माँ तू सो जा तुझे नींद आती होगी .......आई लव यू माँ

माँ तू सो जा तुझे नींद आती होगी,
मुझे खिलाती रहती हो तुम  क्या खाती होगी

हर मुसीबत से बच कर यहाँ तक  आया,
शायद  माँ दुआ में हाथ उठाती होगी.

मैं खुश हूँ यहाँ कोई फ़िक्र नहीं है मुझे,
माँ को वहां मेरी याद हर पल आती होगी . 



माँ की याद में ......आई लव यू माँ

माँ !
शहर नहीं, सड़क  नहीं,
तू हमारा गाँव थी ।
पीपल, बरगद, पाकड़,
तू नीम की छाँव थी ।

माँ !
गीता, कुरान थी ,
गुरु ग्रन्थ शब्द ज्ञान थी ।
तू घर की शान थी ।
आन, मान ,अभिमान  थी ।



माँ रेशम का तार ......आई लव यू माँ

यहाँ वहां सारा जहाँ, नापे अपने पाँव ।
माँ के आँचल सी, नहीं और कही भी छावं ।

रिश्तों का इतिहास  है, रिश्तों का भूगोल  ।
संबंधों में जोड़ का , माँ है फेविकोल ।



मेरी माँ अनपढ़ है ....आई लव यू माँ

मेरी माँ,
अनपढ़ है ।
वह पढ़ नहीं सकती ।


मगर जब भी मै गावं जाता हूँ,
वह मुझसे लिपटकर
अपने आंसुओ की कलम  से ,
लिखती है कुछ ख़ुशी के गीत ।



माँ भूखी रहती है .....आई लव यू माँ

माँ भूखी रहती है
खिलाने के लिए,
मेहनत मजदूरी करती है
पढ़ाने के लिए .

सादगी में रहती है
अच्छा पहनाने के लिए,
लाल-पीली होती है
सही राह दिखाने के लिए.
..
आज बस
कल पुनः भाई रवीन्द्र जी आएँगे
सादर

हम-क़दम का नया विषय

यहाँ देखिए
सादर





13 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत भावुक कर देने वाला अंक आदरणीय दीदी। कहते हैं ,ईश्वर खुद हर जगह नहीं रह सकता इसीलिए उसने माँ बनाई। माँ बेटी का नाता अटुट है , जिंदगी के साथ भी और जिंदगी के बाद भी। सखी पम्मी जी को मेरी संवेदनाएं । अहम ईश्वर ये वज्र सा आघात सहने की शक्ति दे । माँ की महिमा को समर्पित ये अंक पांच लिंकों की संवेदनशीलता का परिचायक है। दिवंगत माँ को अश्रुपूरित नमन-----मेरी दादी , जो मेरी माँ ही थी ,के लिए लिखी गयी कुछ पंक्तियाँ उन्हें समर्पित हैं ---
    बोलो माँ ! आज कहाँ तुम हो ,

    है अवरुद्ध कंठ ,सजल नयन
    बोलो ! माँ आज कहाँ तुम हो ?
    कम्पित अंतर्मन -कर रहा प्रश्न -
    बोलो माँ आज कहाँ तुम हो ?

    जिसमें समाती थी धार
    मेरे दृग जल की,
    खो गई वो छाँव
    तेरे आँचल की ;
    जीवन रिक्त स्नेहिल स्पर्श बिन
    बोलो ! माँ आज कहाँ तुम हो ?

    हुआ आँगन वीरान माँ तुम बिन -
    घर बना मकान माँ तुम बिन ,
    रमा बैठा धूनी यादों की -
    मन श्मशान बना माँ तुम बिन -
    किया चिर शयन -चली मूँद नयन -
    बोलो ! माँ आज कहाँ तुम हो ?

    तेरा अनुपम उपहार ये तन -
    साधिकार दिया बेहतर जीवन --
    तेरी करुणा का मैं मूर्त रूप -
    तेरे स्नेहाशीष संचित धन ;
    ले प्राणों में थकन निभा जग का चलन-
    बोलो माँ ! आज कहाँ तुम हो !!!!!!
    भगवान उन्हें अपने श्री चरणों में स्थान दे । सादर🙏🙏🙏🙏🙏

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बेहतरीन प्रतिक्रिया
      आभार
      सादर

      हटाएं
    2. बोलो माँ!आज कहाँ हो तुम?
      बहुत सुंदर मन भावविह्वल करती अभिव्यक्ति दी।

      हटाएं
  2. हर माँ को नमन

    सस्नेहाशीष संग असीम शुभकामनाएं छोटी बहना

    संग्रहनीय प्रस्तुतीकरण

    जवाब देंहटाएं
  3. माँ,
    सुनो न!
    रचती तुम भी हो
    और
    वह.
    ईश्वर भी!
    सुनते है,
    तुमको भी,
    उसीने रचा है!
    फिर!
    उसकी
    यह रचना,
    रचयिता से
    अच्छी क्यों!
    भेद भी किये
    उसने
    रचना में,
    अपनी !
    और,
    तुम्हारी रचना!
    .....................
    बिलकुल उलटा!
    फिर भी तुम
    लौट गयी
    उसी के पास !
    कितनी
    भोली हो तुम!
    माँ, सुन रही हो न......
    माँ............!!!

    जवाब देंहटाएं
  4. अति सुन्दर प्रस्तुति मां को समर्पित हर रचना विह्वल करती है

    जवाब देंहटाएं
  5. शब्द कम पड़ रहे..आप सभी के भावविह्वल अभिव्यक्ति के लिए हृदय से आभार।
    यशोदा दी का विशेषकर धन्यवाद 🙏

    जवाब देंहटाएं
  6. भावविह्वल करती बहुत ही हृदयस्पर्शी रचनाएं माँ पर....सचमुच माँ का स्थान कोई नहीं ले सकता...भगवान पम्मी जी को इस क्षति में धैर्य और साहस दे...उनकी माँ को अपने श्रीचरणों में स्थान दें।

    जवाब देंहटाएं
  7. देर से प्रतिक्रिया देने के लिए क्षमा चाहती हूँ , " माँ " के मान में लिखी एक एक रचना अंतःकरण में उतर गई ,वैसे तो माँ की माहिम को समेटना नामुमकिन हैं फिर भी उनको समर्पित ये श्रद्धांजलि रूपी पुष्प हृदयस्पर्शी हैं। आदरणीय पम्मी जी की माँ को मेरी बिनम्र श्रद्धांजलि ,परमात्मा उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे।

    जवाब देंहटाएं

आभार। कृपया ब्लाग को फॉलो भी करें

आपकी टिप्पणियाँ एवं प्रतिक्रियाएँ हमारा उत्साह बढाती हैं और हमें बेहतर होने में मदद करती हैं !! आप से निवेदन है आप टिप्पणियों द्वारा दैनिक प्रस्तुति पर अपने विचार अवश्य व्यक्त करें।

टिप्पणीकारों से निवेदन

1. आज के प्रस्तुत अंक में पांचों रचनाएं आप को कैसी लगी? संबंधित ब्लॉगों पर टिप्पणी देकर भी रचनाकारों का मनोबल बढ़ाएं।
2. टिप्पणियां केवल प्रस्तुति पर या लिंक की गयी रचनाओं पर ही दें। सभ्य भाषा का प्रयोग करें . किसी की भावनाओं को आहत करने वाली भाषा का प्रयोग न करें।
३. प्रस्तुति पर अपनी वास्तविक राय प्रकट करें .
4. लिंक की गयी रचनाओं के विचार, रचनाकार के व्यक्तिगत विचार है, ये आवश्यक नहीं कि चर्चाकार, प्रबंधक या संचालक भी इस से सहमत हो।
प्रस्तुति पर आपकी अनुमोल समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक आभार।