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बुधवार, 20 नवंबर 2019
1587..आँगन को टेढ़ा क्यूँ कहें...
7 टिप्पणियां:
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मैं गीत की उड़ान हूँ
जवाब देंहटाएंमैं गीत की उठान हूँ
मैं दर्द का उफान हूँ
मैं उदय का गीत हूँ
मैं विजयका गीत हूँ
सुबह-सुबह का गीत हूँ
व्वाहहहह...
लाजवाब...
सादर...
भूमिका में शानदार पँक्तियाँ
जवाब देंहटाएंसराहनीय प्रस्तुतीकरण
बेहद प्रेरक शिक्षाप्रद पंक्तियाँ भूमिका की।
जवाब देंहटाएंअगहनी विहान मन भा गया।
सभी सूत्र बेजोड़ हैं।
सुंदर सुगढ़ प्रस्तुति पम्मी जी।
बहुत सुन्दर अंक।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर संकलन,बेहतरीन रचनाएं।
जवाब देंहटाएंवाह!!खूबसूरत संकलन 👌
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
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