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सोमवार, 28 अक्टूबर 2019

1564.... कालजयी रचनाएँ

सादर अभिवादन
आज सोमवार को आपको प्रतीक्षा रहती थी
विषय पर रचित रचनाओं की
पर अफसोस आज वो नहीं,,

आज पढ़िए कुछ कालजयी रचनाएँ
दूध में दरार पड़ गई...स्मृतिशेष अटल बिहारी वाजपेयी
ख़ून क्यों सफ़ेद हो गया?
भेद में अभेद खो गया।
बँट गये शहीद, गीत कट गए,
कलेजे में कटार दड़ गई।
दूध में दरार पड़ गई।

खेतों में बारूदी गंध,
टूट गये नानक के छंद
सतलुज सहम उठी, व्यथित सी बितस्ता है।
वसंत से बहार झड़ गई
दूध में दरार पड़ गई।

अपनी ही छाया से बैर,
गले लगने लगे हैं ग़ैर,
ख़ुदकुशी का रास्ता, तुम्हें वतन का वास्ता।
बात बनाएँ, बिगड़ गई।
दूध में दरार पड़ गई।
........

हममें कोई कुछ, कोई कुछ,... अदम गोंडवी
हममें कोई हूण, कोई शक, कोई मंगोल है
दफ़्न है जो बात, अब उस बात को मत छेड़िए

ग़र ग़लतियाँ बाबर की थीं; जुम्मन का घर फिर क्यों जले
ऐसे नाज़ुक वक़्त में हालात को मत छेड़िए

हैं कहाँ हिटलर, हलाकू, जार या चंगेज़ ख़ाँ
मिट गए सब, क़ौम की औक़ात को मत छेड़िए

छेड़िए इक जंग, मिल-जुल कर ग़रीबी के ख़िलाफ़
दोस्त, मेरे मज़हबी नग्मात को मत छेड़िए

...............
मौसम का मिजाज़ ...अनुलता राज नायर
मौसम का मिजाज़ खरा नहीं लगता
सावन भी इन दिनों हरा नहीं लगता.

एक प्यास हलक को सुखाये हुए है
पीकर दरिया मन, भरा नहीं लगता.

चमकता है सब चाँद तारे के मानिंद
सोने का ये दिल खरा नहीं लगता.

अपने ही घर में अनजान से हम
अपना सा कोई ज़रा नहीं लगता

हैवानों से भरी ये दुनिया तेरी है
कि कोई भी इंसा बुरा नहीं लगता.

सुनता नहीं वो मेरी, इन दिनों
कहते है जिसको खुदा,बहरा नहीं लगता.
....
तीन रचनाएँ हैं
आपको अवश्य पसंद आएगी
दीपावली की अशेष शुभकामनाएँ
सादर



8 टिप्‍पणियां:

  1. सभी को नमन..
    शुभकामनाएं..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. सस्नेहाशीष व असीम शुभकामनाओं के संग शुभ दिवस छोटी बहनाअच्छी लगी प्रस्तुतीकरण

    जवाब देंहटाएं
  3. सादर नमन सभी को।बहुत सुंदर प्रस्तुति दीदीजी।

    जवाब देंहटाएं
  4. पर्वों के दौरान जब अधिकांश ब्लौगों पर पर्व-विशेष रचनाएं मिलती हैं.... कालजयी रचना....पढ़ना अच्छा लगा।
    आभार आप का।

    जवाब देंहटाएं

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