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गुरुवार, 3 अक्टूबर 2019

1539...गिरा हुआ चश्मा उसका फिर, उसके हाथों में थमवाया....


सादर अभिवादन। 

कल देश के दो महान सपूतों महात्मा गांधीजी एवं भूतपूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्रीजी की जयंती देश-दुनिया में धूमधाम से मनायी गयी। 
यादगार बनाने के लिये महात्मा गाँधीजी की 150 वीं जयंती पर अनेक सरकारी योजनाओं की भी घोषणा की गयी है और भारत सरकार बापू को याद करने की कोई कोर-कसर नहीं छोड़ना चाहती। 
लोग गांधीवाद को केवल आदर्श रूप में ही न स्वीकारें बल्कि उसका व्यावहारिक पक्ष भी आत्मसात करने का मानस तैयार करें ताकि मानवता के पक्ष में सामाजिक मूल्यों की स्थापना हो सके -

हमारे सम्बद्ध ब्लॉग' मुखरित मौन' पर हमारे ब्लॉग की चर्चाकार श्वेता सिन्हा जी की गाँधीजी और शास्त्रीजी पर कल सायं लिखी गयी टिप्पणी-

 आज राष्ट्रपिता की
150वीं जयंती है।
कोई भी व्यक्ति महान पैदा नहीं होता है
उसके विचार और कर्म की शुद्धता
ही उसे आम लोगों से अलग देखने पर मजबूर करती है।
करोड़ों भारतवासियों के जीवन में बदलाव
लाने का आजीवन प्रयास करने वाले

बापू को सादर प्रणाम।
उनके द्वारा बतलाया गया
सत्य और अहिंसा का मार्ग समाज में शांति और सद्भावना का संदेश है ऐसा विश्व भी मानता है

हमारे पूर्व प्रधानमंत्री 
शास्त्री जी की 115वीं जयंती
का उत्सव देश मना रहा।
सरलता,सादगी,विनम्रता,कर्मठता और जनकल्याणकारी भावना उनके उत्कृष्ट व्यक्तित्व को विशेष बनाता है।
हमारे राष्ट्र नायक को सादर प्रणाम।
   ★★★      

आइये अब आपको आज की पसंदीदा रचनाओं की ओर ले चलें -  


Gopesh Jaswal

टॉमी को, खुलवा मजबूरन,
उसके पीछे, दौड़ाना था,
लेकिन एक भले मानुस को,
जान बचाने आ जाना था.
टॉमी को इक घुड़की देकर,
बाबा से फिर दूर भगाया,
गिरा हुआ चश्मा उसका फिर,
उसके हाथों में थमवाया.




झूठ की 
बढ़ गयी है 

हर
तरफ 
आबादी

अहिंसा 
को
डर है 

खुद के 
कत्ल 
हो 
जाने का 

लिंचिंग 
हो जाने 
की
हुई है 

जब से 
उसके
लिये 
घर घर में 
मुनादी 



Dr. Harimohan Gupt

मेरा कुछ ऐसा विचार है,
मानव के ही कर्म ओर गुण जिन्दा रहते,
मिट्टी की यह देह मरे, मर जाये तो क्या?
जग के सम्मुख, वाणी के स्वर ,
मानवता जिन्दा रहती है।
जब तक हममें,
सत्य अहिंसा, क्षमा, दया का भाव,
धरा पर धर्म कहाये
विश्व बन्धु का पाठ,परस्पर प्रीति बढा कर,
सुख समृद्धि शान्ति हित जीवन,
सन्तत ऐसी फसल उगाये।
हिन्दू, मुसलमान, ईसाई,
हरिजन को भी गले लगा कर,
कहें परस्पर भाई भाई।





इंसानियत सिसक रही
प्राणी मात्र निराश दुखी
गरीब कमजोर निःसहाय
हर तरफ मूक हाहाकार
कहारती मानवता,
झुठ फरेब
रोता हुवा बचपन,
डरा डरा भविष्य
क्या इसी आजादी का
चित्र बनाया था
अब तो छलकाई
आंखों से रो दो
जैसे देश रो रहा है।






महात्मा गाँधी की जीवन शैली और उनके द्वारा किए गए सत्य के प्रयोग के कारण उनकी काफी आलोचना होती है। यूँ तो मैं भी गाँधीवाद को जितना जान पाई हूँ अपने पिता के जीवन से जाना है। लेकिन इस बात को लेकर बिल्कुल विश्वास रखती हूँ कि गाँधीवाद न सिर्फ आज की ज़रुरत है बल्कि समाज के सकारात्मक उत्थान के लिए आवश्यक है। आज समाज में भ्रष्टाचार, दुराचार, असहनशीलता, अकर्मण्यता, दुराभाव, द्वेष, हिंसा, बलात्कार, मॉब लिंचिंग इत्यादि बढ़ते जा रहे है। इस स्थिति में न सरकार प्रभावी हो पा रही है न सामजिक संस्थाएँ कुछ कर पा रही है।

और चलते-चलते आइये पढ़ते हैं एक अलग तासीर की तुलसी पर अनीता सैनी जी की नवीनतम रचना - 


ख़ुशी का ख़ज़ाना खनका आँगन में, 
खिली कच्ची चंचल धूप अंतरमन में,  
खिलखिलाया मन का कोना-कोना,  
चित्त ने किया सुन्दर शृंगार जब-जब, 
लहराया तुलसी का पौधा मन में हर बार। 


हम-क़दम का नया विषय


आज बस यहीं तक 
फिर मिलेंगे अगली प्रस्तुति में। 

रवीन्द्र सिंह यादव 


9 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात भाई रवीन्द्र जी..
    बेहतरीन प्रस्तुति..
    साधुवाद..
    सादर...

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति। आभार रवीन्द्र जी।

    जवाब देंहटाएं
  3. शानदार सामायिक भुमिका के साथ स्नेही श्वेता जी की सारगर्भित विवेचना ।
    बहुत सुंदर लिंको का चयन।
    सभी रचनाएं सार्थक सुंदर।
    सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
    मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय से आभार।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
  4. आदरणीय डा० हरिमोहन गुप्त जी के लेखने बहुत प्रभावित किया ।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति जिसमें महात्मा गाँधी जी और शास्त्री जी के विचारों और जीवन पर आधारित रचनाएँ ली गयीं हैं |
    भूमिका में रखे गये विचार बहुत कुछ कहते हैं |
    बधाई आदरणीय रवीन्द्र जी |
    सादर आभार मेरी रचना को इस सुन्दर प्रस्तुति में शामिल करने के लिये |

    जवाब देंहटाएं
  6. आदरणीय रवींद्र जी बहुत सुंदर और सखरगी प्रस्तुति सभी रचनाएँ एक विशेष संदेश प्रेषित कर रही। सराहनीय अंक।
    बहुत-बहुत आभार मेरी प्रस्तुति की पंक्तियों को शामिल करने के लिए।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
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    And those blintzes. My gosh, the blintzes. It's like a little crepe egg roll. Six of them came in a box, and we fought over that last one. I will find every country that eats these and get them ever single time.

    जवाब देंहटाएं

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