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बुधवार, 25 सितंबर 2019

1531..सावन भादों बीत रहा है ...


।।भोर वंदन।।
"जाग गया है दिनकर 
गुलाबी लिबास से ढ़ँकी 
प्राची सुन्दरी 
अपने अधखुले नेत्रों से 
समस्त सृष्टि को निहारती है-
कमलिनी शनैः-शनैः पुष्पित हो रही है !!"
नीरजा हेमेन्द्र 
ख्याल भी है हमें दहर के हसद औ तशवीश की पर हर सुबह 
कुछ सुखन ढूंढने का प्रयास कर आते हैं 
जो अधखुले नेत्रों से समस्त सृष्टि को निहारती है.. 
इसी के साथ अब नज़र डाले आज की लिंकों पर..✍

मेरा शहर..... अमरेंद्र "अमर जी


   मदमस्त हवाओ से भरा 
ये मेरा शहर 
आज मेरे लिए ही बेगाना क्यू है 
हर तरफ
महकते फूल, चहकते पंक्षी 
फिर मुझे ही 
झुक जाना  क्यू है ..

🔆♦️🔆





अंगारे आँगन में
सुलग-दहक रहे हैं, 
पानी लेने परदेश 
जाने की नौबत क्यों ?
न्यायपूर्ण सर्वग्राही 
राम राज्य में 

🔆♦️🔆






भावों के उद्गार में,भाषा है वरदान।
मन की गांठें खोल दे,रिश्तों की है जान।।
******************************
भली-बुरी हर बात में,भाषा है आधार
मधुर वाणी बने सदा,मनुज गले का हार.


🔆♦️🔆



मैं निशा की चांदनी
मांग अंधेरा सजा है
भोर के आने से पहले
नर्तनों का गीत हो
तांडव की बेला हो जैसे,
कांपते हांथों से..

🔆♦️🔆




सावन भादों बीत रहा है असमंजस के भावों में
लौट चलो ऐ शह्र के लोगों अपने अपने गांवों में..
🔆♦️🔆
हम-क़दम का नया विषय
🔆♦️🔆

।।इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍

9 टिप्‍पणियां:

  1. जिन पेड़ों को काट रहे हो उसने तुम को पाला है
    सारा बचपन तुमने बिताया उन पेड़ों की छावों में..

    हम मनुष्यों का स्वार्थ इतना प्रबल हो गया है कि भावना,संवेदना ही नहीं आत्मा भी मर गयी है। स्वहित में किसी को काट रहे हैं, किसी को कुचल रहे हैं , किसी की मासूमियत की हत्या कर रहे हैं और फिर ठहाके लगा रहे हैं।
    पेड़ की बात करूं तो हमारे शहर में भद्रजनों का एक मोहल्ला है नाम है बदली कटरा पिछले दिनों एक मॉल के सामने लगे वर्षों पुराने कदम के पेड़ को मैंने सुबह कुछ लोगों द्वारा चुपके-चुपके काटते देखा मैंने सोशल मीडिया पर वह फोटो पोस्ट किया , तो एक पावरफुल माननीय प्रतिनिधि का फोन आया - " शशि भाई इस प्रकरण को न उछाले, हम यहां बिजली का ट्रांसफार्मर लगवाने जा रहे हैं।"
    एक दिन देखा कि सुबह सभ्य समाज के लोग वहां खड़े मुस्कुरा रहे थें और कुल्हाड़ी से आखरी प्रहार उस पेड़ के तने पर दिया जा रहा था, पेड़ धराशाई हो गया। वहां मॉल का जनरेटर रखा हुआ है। मोहल्ले के एक बुजुर्ग को इस पेड़ को कटता बहुत दुख हुआ था। इसी के छाव में उन्होंने अपना बचपन गुजारा था।
    सो, उन्होंने ही मुझे इसकी सुरक्षा के लिए कुछ करने को कहा था। लेकिन सत्ता के समक्ष एक मामूली पत्रकार कितना संघर्ष करें । जब भद्र लोग ही संवेदनहीन होकर अपने ही आश्रयदाता की मौत पर ताली बजा रहे हो..।

    प्रस्तुति की यह रचना मुझे विशेष करके अच्छी लगी और भी पेड़ों के कटने के कई संस्करण याद हैं। विशेषकर 20 वर्षों तक शास्त्री पुल पर मैं जिस पेड़ के नीचे गर्मी, बरसात और जाड़े में खड़ा रहता था। वह पेड़ काट दिए गए ।अब वहां यात्री निवास बना है, जो धूप में तपता है।

    सभी को सादर प्रणाम।

    जवाब देंहटाएं
  2. बेहतरीन रचनाएँ..
    आभार..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुंदर संकलन पमृमी जी भुमिका मन को लुभाती ,सभी रचनाएं बहुत सुंदर।
    सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति पम्मीजी. सभी रचनाएँ उत्कृष्ट हैं. रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएँ.
    मेरी रचना को इस पटल पर प्रदर्शित करने के लिये सादर आभार.

    जवाब देंहटाएं
  5. संस्करण के स्थान पर संस्मरण पढ़ा जाए।

    जवाब देंहटाएं

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