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शुक्रवार, 2 अगस्त 2019

1477.....न भूखों का कोई धर्म बने

स्नेहिल नमस्कार
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"रोटी" के रोटी बनकर उदरस्थ होने तक के सफ़र में कितने पड़ाव आते है न। माटी में मिले बीज के अंकुरण,प्रस्फुटन,निराई,गुड़ाई,कटाई से लेकर 
बाज़ार से चक्की और फिर घर आने तक किन-किन हाथों का स्पर्श मिला यह कितने लोग सोचते होंगे..?
सभी माँ या पत्नी के अपनेपन के स्नेहिल स्पर्श का स्वाद महसूस करते है।
पेट भरने वाले गेहूँ के दानों का कोई धर्म नहीं होता है।
इन दानों को पैदा करने वाले किसान कभी नहीं सोचते कि ये अनाज किस जात के लोगों का पेट भरेगा।
जो भूखे इसे खायेंगे वो किस संप्रदाय के होंगे।
फिर,
विकृत सोच के लोग समाज में क्यों हैं
जो रोटी का धर्म भी बाँटना चाहते है?

इंसान बँटे,भगवान बँटे,
जाति,धर्म के नाम बँटे
सरहद में संस्कृतियों की
हृदय के सम्मान बँटे 
और क्या-क्या बाँटोगे?
बाँट चुके टुकड़ों में मन
रहम करो ऐ इंसानों
न भूखों का कोई धर्म बने
जब हाथ उठे तो पेट भरे
कोई न फिर मज़हब पूछे 
सबमें रोटी और नान बँटे
#श्वेता
★★★★★
आइये आज की रचनाएँ पढ़ते हैं।


आदरणीय विश्वमोहन जी

काट डालो न
कोख में ही
इनके सिऊंठे!
जनने से पहले
इनको।
★★★★★★

आदरणीय बलवीर राणा 'अडिग'जी

कहर बन जाता है सावन
डूब जाता बह्मपुत्र का रंगमत तीर
सहम जाता है जीवन
लील जाता है बांस की झोपड़ियों को
जिनमें सजती हैं बिहू बालाएं
मांझी की पतवार किनारे में भयभीत
ब्रह्मपुत्र के इस बिकराल का
जीवन ध्वस्त करना
★★★★★★


आदरणीया मीना भारद्वाज जी

लकीरों को छोड़ नव जागरण ला
तू नहीं किसी से कम पहले स्वयं को समझा
दुनिया उसी की है जो वक्त की धारा मोड़ दे
छोड़ व्यर्थ प्रलाप , व्यर्थ रोना छोड़ दे 

★★★★★★



आदरणीय अवतार सिंह 'पाश' जी

सबसे ख़तरनाक वो गीत होता है
जो मरसिए की तरह पढ़ा जाता है
आतंकित लोगों के दरवाज़ों पर
गुंडों की तरह अकड़ता है
सबसे ख़तरनाक वो चांद होता है
जो हर हत्‍याकांड के बाद
वीरान हुए आंगन में चढ़ता है
लेकिन आपकी आंखों में
मिर्चों की तरह नहीं पड़ता।

★★★★★★

आदरणीया प्रीति 

सिवाय छलनी देह और कुचली आत्मा के!
तो क्या हर बलत्कृत औरत को
उसके दोस्त, परिवार वालों और प्रेमी 
की तिरस्कृत निग़ाहों के 

तिल-तिल मार डालने से बहुत पहले
सारा स्नेह, ममता, मोह त्याग 
स्वतः ही मर जाना चाहिए सदैव? 
या फिर यूँ हो कि
न्याय की प्रतीक्षा कर गुज़र जाने से बेहतर 
किसी रोज़ वो भी 
पथरीले बीहड़ में छलाँग लगाए 

★★★★★★★

आदरणीया रितु जी
अनुभव


मैं तो बस अपने अनुभव बांटती
जीवन के उतार-चाढाव के कुछ 
किस्से सुनाती कई बार गिरी ,गिर-गिर 
के संभली यही तो मैं कहना चाहती 
बेटा चलना थोड़ा संभलकर 
तुम ना करना मेरे जैसी नादानी

★★★★★★

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हमक़दम का विषय है
मेंहदी

कल का अंक पढ़ना न भूलेंं
कल एक विशेष विशेषांक लेकर आ रही हैं
विभा दी।


11 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात !
    बहुत खूबसूरत संकलन एक प्रभावशाली भूमिका के साथ..
    स्नेहिल आभार इस बेजोड़ संकलन मेन मुझे सम्मिलित करने के लिए ..

    जवाब देंहटाएं
  2. व्वाहहहह...
    बेहतरीन...
    नए रचनाकारों से परिचय का सौभाग्य मिला..
    अप्रतिम अंक..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुंदर संकलन
    सारे लिंक्स उम्दा
    सस्नेहाशीष छूटकी

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत समसामयिक सोच के साथ यथोचित रचनाओं का संकलन ... इसके लिए इन सोचों को नमन .. मन से ...
    मेरी भी एक चुनौती ... एक सवाल ...

    "भला किसने धरती बाँटी
    मानव तक बाँटे
    देश-धर्म के नाम पर ...
    सूरज, चाँद, सितारे
    हवा, बादल भी तो
    दिखलाए वो बाँट कर ..."

    जवाब देंहटाएं
  5. शानदार भुमिका बंध के साथ, शानदार प्रस्तुति। अच्छे लिंको की प्रस्तुति।
    सभी रचनाकारों को बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत ही सुन्दर हलचल प्रस्तुति 👌
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  7. होता है।
    इन दानों को पैदा करने वाले किसान कभी नहीं सोचते कि ये अनाज किस जात के लोगों का पेट भरेगा।
    जो भूखे इसे खायेंगे वो किस संप्रदाय के होंगे।
    फिर,
    विकृत सोच के लोग समाज में क्यों हैं
    जो रोटी का धर्म भी बाँटना चाहते है?
    दमदार भूमिका के साथ लाजवाब प्रस्तुतिकरण उम्दा लिंक संकलन...

    जवाब देंहटाएं
  8. सबसे खतरनाक है सपनो का मर जाना -- का उद्घोष करने वाले हरमन अजीज़ क्रन्तिकारी कलमकार की अमर रचना और बलत्कृत औरतें जैसी मार्मिक रचना आजके अंक में पाकर अचम्भित हूँ | बहुत आभार प्रिय श्वेता इसी रचनाएँ पढवाने केलिए | आजके सभी रचनाकारों को सस्नेह शुभकामनायें |सुंदर सार्थक अंक के लिए आभार और बधाई | सस्नेह --

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत ही प्यारी कविताएं हैं। आभार।
    I am also available on Reddit

    जवाब देंहटाएं

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